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    भारत में भूकंप को लेकर पहली बार हो रहा ऐसा प्रयास, जल्द लागू होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम

    By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Wed, 05 Apr 2023 05:47 AM (IST)

    सिस्टम बनाने के लिए ताइवान की अत्याधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया जा रहा है। एनसीएस की कोशिश एक ऐसा सिस्टम तैयार करने की है जिससे जमीन के भीतर फाल्ट ल ...और पढ़ें

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    भारत में भूकंप को लेकर पहली बार हो रहा ऐसा प्रयास, जल्द लागू होगा अर्ली वार्निंग सिस्टम

    नई दिल्ली, संजीव गुप्ता। वह दिन दूर नहीं, जब मौसम की ही तरह भूकंप को लेकर भी देश में अर्ली वार्निंग सिस्टम लागू होगा। हालांकि ये सिस्टम पूर्वानुमान तो नहीं बता पाएगा, लेकिन भूकंप से होने वाले जान-माल का नुकसान कम करने के लिए अग्रिम चेतावनी जरूर दे देगा। जापान व ताइवान की आधुनिक तकनीकों के साथ पहली बार राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) इस परियोजना पर काम कर रहा है। इसके लिए देश भर में संबंधित उपकरणों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है। एनसीएस विज्ञानियों के अनुसार, इस दिशा में लगातार काम चल रहा है।

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    हाल ही में व‌र्ल्ड बैंक के सहयोग से एनसीएस की एक टीम जापान से लौटी है। सिस्टम बनाने के लिए ताइवान की अत्याधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया जा रहा है। एनसीएस की कोशिश एक ऐसा सिस्टम तैयार करने की है, जिससे जमीन के भीतर फाल्ट लाइन पर भूकंप की पहली हलचल (पी-वेव) होते ही केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में संकेत आ जाएं। इसके बाद भूकंप के झटके (एस-वेव या सरफेस वेव) लगने से पहले कुछ ही सेकेंडों में इसका अलर्ट जारी कर दिया जाए।

    पी-वेव से मिलेगा अलर्ट

    विज्ञानियों के अनुसार, भूकंप आने के दौरान सबसे पहले पी-वेव उठती हैं, जो काफी तेजी से आती हैं। इसके बाद अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार से उठने वाली एस-वेव भारी नुकसान पहुंचाती हैं। अर्ली वार्निंग सिस्टम पी-वेव की पहचान कर तुरंत ही नियंत्रण कक्ष को इसकी सूचना भेज देता है। इस सूचना में यह भी शामिल रहता है कि धरती कहां तक हिलेगी और भूकंप का आकार क्या होगा?

    अभी तक लगे हैं सिस्मोग्राफी व एक्सिललोग्राफी उपकरण

    एनसीएस के मुताबिक, फिलहाल देशभर में भूकंप की गतिविधियों पर निगाह रखने के लिए जमीन के नीचे 152 सिस्मोग्राफी एवं एक्सिलरोग्राफी उपकरण लगे हैं। दिसंबर 2023 तक इनमें 100 की वृद्धि और की जाएगी। इसी तरह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में अभी ऐसे 25 उपकरण लगे हैं। 15 और लगाए जाएंगे। दोनों ही जगह नए उपकरणों में कुछ डेटा रिसीविंग स्टेशन भी स्थापित किए जाएंगे। डेटा रिसीविंग स्टेशन की मदद से एनसीएस के नियंत्रण कक्ष में संभावित भूकंप के संकेत प्रमाणिक तौर पर जल्दी ही मिल जाएंगे। संकेत मिलते ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की सहायता से सभी संबंधित राज्य सरकारों, जिला प्रशासन, अस्पतालों, स्थानीय निकायों सहित राज्यों के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सूचना जारी कर दी जाएगी।

    चंद मिनटों में हो सकते हैं यथासंभव उपाय

    एनसीएस विज्ञानियों के अनुसार, हालांकि पी-वेव और एस-वेव के बीच समय का अंतराल कुछ मिनटों का ही होता है, लेकिन तब भी बिजली आपूर्ति बंद करके, गैस आपूर्ति रोक कर, पेट्रोल पंपों पर एहतियात बरतकर, अग्निशमन विभाग को अलर्ट मोड पर रख कर राज्य और जिला स्तर पर बचाव के यथासंभव उपाय किए जा सकते हैं। अस्पतालों को भी अलर्ट मोड पर रखा जा सकता है। इसी स्थिति के अभ्यास के लिए जगह जगह माक ड्रिल भी की जा रही है।

    अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम जारी

    कुछ समय पहले उत्तराखंड सरकार ने आइआइटी रुड़की के साथ मिलकर राज्य स्तर पर अर्ली वार्निंग सिस्टम शुरू किया था, लेकिन वह एक माडल से ज्यादा नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर जिस अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम किया जा रहा है, वह इससे कहीं आगे अत्याधुनिक तकनीकों से समृद्ध होगा। इस परियोजना को 2023-24 यानी दो वर्ष में संपूर्ण किया जाना है। पूरा प्रयास है कि भारत को जोखिम रहित क्षेत्र बनाने के क्रम में यह अर्ली वार्निंग सिस्टम 2024 में शुरू कर दिया जाए। (डा ओपी मिश्रा, निदेशक, एनसीएस)