DUSU चुनाव परिणाम को चुनाव समिति ने बताया अस्थायी, अदालत की निगरानी में जारी है प्रक्रिया
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव 2025 के नतीजों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने अस्थायी घोषित किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के सख्त दिशानिर्देशों के बाद यह फैसला लिया गया। शिकायतों की जांच और ऑडिटेड खातों की जमा करने तक परिणाम प्रोविजनल रहेंगे। अदालत के फैसले और खातों के जमा होने तक परिणाम अस्थायी रहेंगे। चुनाव प्रक्रिया सुचारु रही और आचार संहिता का पालन किया गया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव 2025 के नतीजों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने आधिकारिक अधिसूचना में “प्रोविजनल” यानी अस्थायी करार दिया है। यह कदम दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा चुनाव प्रक्रिया पर सख्त दिशानिर्देश लागू किए जाने के बाद उठाया गया है।
अधिसूचना के अनुसार, “परिणाम प्रोविजनल हैं और यह शिकायतों की जांच तथा निर्वाचित उम्मीदवारों द्वारा आडिटेड खातों की जमा करने की शर्त पर आधारित हैं।” आमतौर पर उम्मीदवार एक सप्ताह के भीतर आडिटेड अकाउंट जमा करते हैं, लेकिन इस बार मामला अदालत में विचाराधीन होने के कारण यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है।
मुख्य चुनाव अधिकारी प्रो. राज किशोर शर्मा ने कहा, “जब तक अदालत शिकायतों पर फैसला नहीं देती और आडिटेड अकाउंट जमा नहीं होते, परिणाम प्रोविजनल रहेंगे। हालांकि, इस बार चुनाव प्रक्रिया सुचारु रही। उम्मीदवार सहयोगी रहे और आचार संहिता का पालन किया गया। कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं हुई।
इस साल डूसू चुनावों को कई उल्लंघनों की शिकायतों के चलते अदालत की सख्त निगरानी में आयोजित किया गया। हाई कोर्ट ने लिंगदोह समिति की सिफारिशों और चुनाव आचार संहिता के कड़े अनुपालन पर जोर दिया।
17 सितंबर को अदालत ने परिणाम घोषित होने के बाद पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विजय जुलूस पर सख्त रोक लगाने के आदेश दिए। यह नियम इस बार चुनाव दिशा-निर्देशों में जोड़ा गया, ताकि पिछली बार की तरह सार्वजनिक व्यवधान न हो।
इससे पहले 10 सितंबर को अदालत ने चुनाव प्रचार के दौरान “एंटी-डीफेसमेंट गाइडलाइंस” के उल्लंघन को प्रथम दृष्टया सही पाया था।
पिछले वर्ष भी उठा था विवाद
गौरतलब है कि 2024 में भी डूसू चुनाव लंबे समय तक विवादों में घिरे रहे थे। उस दौरान बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को पोस्टर, बैनर, होर्डिंग और स्प्रे पेंट से खराब किया गया था। हाई कोर्ट ने तब मतगणना की प्रक्रिया को लगभग एक महीने तक रोक दिया था और विश्वविद्यालय को सभी अवैध प्रचार सामग्री हटाने के बाद ही आगे बढ़ने की अनुमति दी थी।
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