DUSU Chunav Result: कांग्रेस के हाथ से छिटक रहा युवाओं का भी साथ! जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव में एनएसयूआई की हार कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। युवा वर्ग का साथ छूटना और पिछले प्रदर्शन को भी दोहरा न पाना चिंता का विषय है। पार्टी की सक्रियता और वरिष्ठ नेताओं के प्रचार के बावजूद निराशा हाथ लगी। राजनीतिक विश्लेषकों ने पार्टी नेतृत्व को जमीनी स्तर पर काम करने की सलाह दी है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव में एनएसयूआई को मिली शिकस्त प्रदेश कांग्रेस के लिए भी झटके से कम नहीं है। इसका सीधा आशय यही है कि अब युवा वर्ग भी हाथ का साथ छोड़ रहा है।
आलम यह है कि प्रदेश कांग्रेस द्वारा सक्रिय भूमिका अदा करने पर भी एनएसयूआई पिछला परिणाम तक बरकरार नहीं रख सकी। पिछले साल एनएसयूआई की झोली में चार में से दो सीटें गई थीं जबकि इस बार एक ही सीट मिल पाई है।
एनएसयूआई के बेहतर प्रदर्शन को लेकर प्रदेश कांग्रेस लगातार सक्रिय थी। रणनीति बनाने का दायित्व प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव, एनएसयूआई अध्यक्ष वरूण चौधरी, वरिष्ठ नेता कन्हैया कुमार व अनिल भारद्वाज पर था। प्रदेश कार्यालय में अक्सर बैठकें की जा रही थीं।
पार्टी ने डूसू व एनएसयूआई के 40 से 50 पूर्व छात्र नेताओं को भी सक्रियता से जुटने को कहा था ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्र-छात्राओं को एनएसयूआई के पक्ष में मतदान करने को कहा जा सके।
प्रदेश कांग्रेस के सभी 258 ब्लाक एवं 14 जिला अध्यक्षों को भी अपने अपने क्षेत्र में रहने वाले कम से कम 25-25 छात्र छात्राओं के साथ बैठक करने को कहा गया था। यही नहीं, देवेंद्र यादव सहित वरिष्ठ नेता सचिन पायलट भी नार्थ कैंपस के कालेजों में प्रचार के लिए पहुंचे।
कैंपस से इतर कालेजों की जिम्मेदारी क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेसियों के पास थी। लेकिन सब बेमानी रहा। राजनीतिक जानकारों की मानें तो पार्टी नेतृत्व को गंभीरता से विचार करने एवं जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
डूसू चुनाव में तीन सीटों पर एबीवीपी की जीत का मतलब यह कतई नहीं है कि युवा वर्ग एनएसयूआई और कांग्रेस की नीतियों से छिटक गया है। सच तो यह है कि एबीवीपी पैसे और पावर के दम पर जीती है। एबीवीपी उम्मीदवारों के समर्थन में पुलिस और प्रशासन ने भी अपनी शक्तियों को दुरुपयोग किया है। यहां तक कि लिंगदोह समिति की सिफारिशों का भी ख्याल नहीं रखा गया। फिर भी हमें खुशी है कि इन हालातों के बावजूद हम एक ही सीट पर जीतकर भी सबसे ज्यादा वोट ले पाए। - देवेंद्र यादव, अध्यक्ष, दिल्ली कांग्रेस
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