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    चरम मौसमी घटनाएं बिगाड़ रहीं शहर की सूरत, दिल्ली के बुनियादी ढांचे को जलवायु सुरक्षा की जरूरत

    Updated: Sat, 13 Jul 2024 09:50 PM (IST)

    अत्यधिक गर्मी व सर्दी भीषण लू और भारी वर्षा की मार झेल रही दिल्ली सहित अन्य शहरों को जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित बनाना जरूरी हो गया है। सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण के अनुसार बदलती जलवायु के बीच शहरों का भविष्य कैसा हो सकता है इसकी लगातार झलक देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हवा नमी को ज्यादा धारण कर रही है।

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    28 जून को एक ही दिन की भारी वर्षा से किशनगंज अंडरपास में भरा पानी, डूबे वाहन और परेशान लोग।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। चरम मौसमी घटनाओं के चलते दिल्ली एवं अन्य शहरों की बदहाली लगातार देखने को मिल रही है। कभी भीषण लू तो कभी शीत लहर, कभी भारी वर्षा और बाढ़... से ज्यादातर शहरों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो रहा है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) का विश्लेषण बताता है कि ऐसा इसलिए क्योंकि हमने शहरों के बुनियादी ढांचे की कोई क्लाइमेट प्रूफिंग नहीं की है। मतलब ये कि उसे जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाना होगा।

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    सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण के अनुसार, पिछले तीन दशकों यानी 1982-2011 की तुलना में पिछले एक दशक (2012-2022) में देश के 64 प्रतिशत से अधिक तहसीलों में भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है। भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि इस बात की एक झलक है कि बदलती जलवायु में हमारे शहरों का क्या भविष्य हो सकता है। दिल्ली जैसे शहरों को लगातार भीषण लू के बाद कम समय में भीषण वर्षा का सामना करना पड़ रहा है।

    जलवायु परिवर्तन से क्या हुआ बदलाव

    जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन हुआ है, गर्म हवा की नमी को धारण करने की क्षमता भी बढ़ी है, जिससे वर्षा वाले दिनों की संख्या घटी है। ऐसे में, जब कभी वर्षा होती है तो बहुत ज्यादा भारी बारिश होती है। इसके अलावा एक ही जिले के भीतर मानसूनी वर्षा के बहुत अलग पैटर्न भी उभर रहे हैं।

    दिल्ली में कहीं तेज और कहीं हल्की बारिश

    उदाहरण के लिए एक जून से 10 जुलाई तक, पश्चिम दिल्ली में सामान्य से 99 प्रतिशत कम वर्षा हुई, जबकि उत्तर पश्चिम दिल्ली के समीपवर्ती जिले में 122 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। वर्षा का यह असमान वितरण बुनियादी ढांचे और समुदायों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह हमारे बुनियादी ढांचे को जलवायु-परिवर्तन से सुरक्षित बनाने (क्लाइमेट-प्रूफिंग) की जरूरत को रेखांकित करता है।

    दिल्ली करती है भीषण लू और बारिश का सामना

    सीईईडब्ल्यू के सीनियर लीड विश्वास चितले ने बताया कि दिल्ली जैसे शहरों को पहले भीषण एवं लंबे समय तक चलने वाली लू और फिर कम समय में भीषण वर्षा, हवा की नमी धारण करने बढ़ी हुई क्षमता का सामना करना पड़ता है। वर्षा का ऐसा असंतुलित वितरण बुनियादी ढांचे और लोगों पर गंभीर प्रभाव डालता है। यह स्थिति हमारे बुनियादी ढांचे की क्लाइमेट-प्रूफिंग की अति महत्वपूर्ण जरूरत को रेखांकित करती है।

    13 जुलाई को देश के कई हिस्सों बारिश का था अलर्ट

    चितले के अनुसार, मौसम विभाग ने 13 जुलाई तक देश के विभिन्न हिस्सों में भारी वर्षा के लिए ऑरेंज और रेड अलर्ट जारी किए। इसमें उत्तर-पूर्वी राज्य एवं सिंधु-गंगा मैदान के राज्य जैसे बिहार और पश्चिमी तट के शहर जैसे मुंबई भी शामिल हैं। हाल ही में, दिल्ली में 28 जून को एक ही दिन में जितनी वर्षा हुई, वह जून की सामान्य वर्षा की लगभग दोगुनी थी।

    वहीं, सीईईडब्ल्यू के सीनियर प्रोग्राम लीड नितिन बस्सी कहते हैं, स्थानीय स्तर पर बहुत भारी वर्षा (24 घंटों में 115 से 204 मिमी से ज्यादा) से आ सकने वाली वाली शहरी बाढ़ का प्रभाव घटाने के लिए, दिल्ली को जलवायु जोखिम आधारित नियोजन (प्लानिंग) से लाभ होगा। ऐसी प्लानिंग का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और भू उपयोग-भूमि परिवर्तन नीतियों के साथ तालमेल होना भी जरूरी है।

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    सीईईडब्ल्यू के अनुसार, जलवायु जोखिम आधारित नियोजन (प्लानिंग) के तीन प्रमुख बिंदु-

    पहला: मौजूदा जल निकासी क्षमता कम से कम तीन दशक के दौरान एक दिन की सर्वाधिक वर्षा से आई चरम बाढ़ को संभालने में अपर्याप्त है, इसे कैसे उस क्षमता तक लाया जाए।

    दूसरा: हर मौसम के अनुसार, हॉटस्पॉट चिह्नित होने चाहिए ताकि वहां उसी के अनुरूप मौसम की मार से बचाव के उपाय किए जा सकें।

    तीसरा: लघु, मध्यम और दीर्घकालिक अवधि के प्रमुख कार्यों की रूपरेखा तैयार होनी चाहिए। ऐसी प्लानिंग का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और भूमि उपयोग-भूमि परिवर्तन नीतियों के साथ तालमेल होना भी जरूरी है। भू परिवर्तन नियम कानून में भी बदलाव की जरूरत है। आसानी से हो जाने वाला भू उपयोग परिवर्तन बिगाड़ रहा इको सिस्टम।