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    DUSU Election में तीन सीटों पर NSUI को मिली पटखनी, आपसी गुटबाजी और जमीनी प्रचार में कमी पड़ी भारी

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 10:22 PM (IST)

    दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव 2025-26 में एनएसयूआई का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पुरानी रणनीति और प्रचार में कमी के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा। केवल उपाध्यक्ष का पद ही वे जीत पाए। अध्यक्ष पद की उम्मीदवार जोसलीन चौधरी की हार सबसे बड़ी निराशा रही क्योंकि जमीनी स्तर पर उन्हें कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिला। आंतरिक कलह और संगठनात्मक कमजोरियों ने भी एनएसयूआई की हार में योगदान दिया।

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    आपसी गुटबाजी और जमीनी प्रचार में कमी एनएसयूआई को पड़ी भारी।

    उदय जगताप, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) 2025-2026 चुनाव में स्टूडेंट्स यूनियन आफ इंडिया (एनएसयूआई) कमाल नहीं दिखा सकी। पहले जैसी रणनीति और प्रचार के लिए जमीनी लड़ाई की कमी ने उन्हें मैदान से बाहर कर दिया। एकमात्र उपाध्यक्ष का पद उनके हिस्से आया। अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पदों पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।

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    एनएसयूआइ की सबसे ज्यादा फजीहत अध्यक्ष पद की उम्मीदवार जोसलीन चौधरी की हार से हुई है। जोसलीन का प्रचार शुरुआत में अच्छा चला था। लेकिन, बाद में वह वापसी नहीं कर सकीं। कालेजों में वह प्रचार करने गईं, लेकिन कार्यकर्ताओं का पूरी तरह सहयोग उन्हें नहीं मिला।

    यही भी कहा जाता रहा है कि वह पैराशूट प्रत्याशी हैं और संगठन में आने के कुछ ही दिन के अंदर उन्हें टिकट दे दिया गया। इससे जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता उनके साथ नहीं आए। एनएसयूआइ की कार्यकर्ता उमांशी लांबा बागी होकर चुनाव लड़ीं थी। उन्होंने 5,522 वोट हासिल किए।

    उन्होंने खुद को पीड़ित बताकर पेश किया। एनएसयूआइ पदाधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए। इससे संगठन की छवि को धक्का लगा। हालांकि, उमांशी के वोट काटने का असर आर्यन मान को मिले वोटों पर असर नहीं डाल सका। जोसलीन को 16196 के बड़े अंतर से हार मिली।

    कई पूर्व पदाधिकारियों ने कहा, जोसलीन का प्रचार इंटरनेट मीडिया पर तो अच्छा था, लेकिन, जमीन पर मुद्दे समझाने में वह सफल् नहीं रहीं। उनके सवा लाख इंस्टाग्राम फालोअर थे। पर लोकप्रियता का फायदा उन्हें नहीं मिला। वह राजस्थान से आईं थी, इसको खूब प्रचारित किया गया।

    इससे स्थानीय जाट समुदाय का समर्थन उन्हें नहीं मिला। जबकि डूसू चुनाव में जाट व गुर्जर समुदाय का वोट महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हीं समुदायों के अध्यक्ष पिछले 10 साल से बनते रहे हैं। आर्यन मान जाट समुदाय से हैं और वह स्थानीय हैं। इसका फायदा उनको मिला। चुनाव से पहले एनएसयूआइ को संगठनात्मक नुकसान झेलना पड़ा।

    राष्ट्रीय अध्यक्ष की खोज का एक पत्र जारी हुआ। इससे बड़े पदाधिकारी अध्यक्ष का फार्म भरने में जुट गए। इससे चुनाव से उनका ध्यान कम हो गया। यही नहीं 12 दिन के मासिक धर्म अवकाश की मांग के लिए किए गए प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं में मारपीट हो गई।

    इस दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी से अभद्रता की खबरें आईं। इससे कार्यकर्ताओं में गुटबाजी उभरकर सामने आई। इसका प्रभाव चुनाव पर पड़ा। चुनाव मेें रौनक खत्री एक अहम भूमिका में थे। उनका करिज्मा विश्वविद्यालय में था। उन्होंने बहुत देरी से एनएसयूआइ प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया। उन्होंने चुनाव से पहले डूसू प्रेसिडेंट सेल की शुरुआत की थी।

    इसके लिए एक नंबर जारी किया गया। इसके जरिये जुड़कर छात्र अपनी शिकायतें प्रेसिडेंट को भेज सकता है। इसके लिए बकायदा उन्होंने एप लांच किया। लेकिन, यह प्रयास काफी देर से हुए और छात्रों को अपनी ओर नहीं मोड़ सके। यह हार की बड़ी वजह रही।

    एबीवीपी के सदस्य रहे हैं झांसला

    एनएसयूआई को उपाध्यक्ष पद दिलाने वाले राहुल झांसला एबीवीपी से जुड़े रहे हैं। 2019 में उन्होंने सदस्यता ली थी। 2022 से 2024 तक सक्रिय कार्यकर्ता थे। टिकट न मिलने पर वह एनएसयूआई में चले गए थे। एबीवीपी में रहने का फायदा भी उनको मिला। कांग्रेस नेताओं ने उनके समर्थन में जमकर प्रचार भी किया। इसका भी उन्हें फायदा मिला। राहुल लंबे वक्त से चुनाव की तैयारी कर रहे थे और छात्रों में जाना-माना चेहरा थे।