एक लाख के नामांकन बांड के विरोध में आइसा पहुंची दिल्ली हाई कोर्ट, डीयू की शर्त को बताया लोकतंत्र पर हमला
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव से पहले आइसा ने नामांकन के लिए एक लाख रुपये के बांड को चुनौती दी है। आइसा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला गरीब छात्रों को चुनाव से बाहर कर देगा और लिंगदोह समिति की सिफारिशों के खिलाफ है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव से पहले ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने प्रशासन के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसके तहत नामांकन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों से एक लाख रुपये का बांड जमा कराने की शर्त रखी गई है।
आइसा ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसकी सुनवाई मंगलवार को होगी। संगठन ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया है। सोमवार को एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए आइसा कार्यकर्ता अंजलि ने कहा कि “धनबल और बाहुबल पर रोक के नाम पर यह नियम दरअसल ग़रीब और हाशिये से आने वाले छात्रों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर कर देता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में डूसू में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू करने की सलाह दी थी, लेकिन विश्वविद्यालय ने इसके उलट महिलाओं और वंचित तबकों को और दूर करने का काम किया है।
हिंदू काॅलेज के छात्र अभिषेक कुमार ने भावुक अपील करते हुए कहा कि “मेरे पिता 2002 में बिहार से दिल्ली मजदूरी करने आए और संघर्ष के दम पर सीआरपीएफ में भर्ती हो पाए। उसी संघर्ष से मैं विश्वविद्यालय तक पहुंचा हूं, लेकिन यहां मेरे जैसे छात्रों को बराबरी का हक नहीं मिल रहा।
आइसा के महासचिव प्रसन्नजीत ने कहा, डीयू की ओर से लाया गया प्रविधान लिंगदोह समिति की सिफारिशों के खिलाफ है, जो छात्रसंघ चुनावों को न्यूनतम खर्च और अधिकतम सुलभ बनाने पर जोर देती है। बांड आर्थिक आधार पर भेदभाव करता है और छात्र राजनीति की मूल भावना को तोड़ता है।
पोस्टरबाजी और तोड़फोड़ रोकने का तर्क खोखला है, क्योंकि बड़े संगठनों के लिए एक लाख रुपये कोई मायने नहीं रखते, जबकि साधारण छात्र इतना जोखिम नहीं उठा सकता। उन्होंने कहा, हाई कोर्ट इस मामले में छात्रों की आवाज जरूर सुनेगा।
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