DU में अंग्रेजी में रिसर्च आधारित मूल्यांकन को अचानक परीक्षा से पहले बदला गया, छात्रों ने किया प्रदर्शन
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में परीक्षा से ठीक पहले पाठ्यक्रम बदलने पर छात्र नाराज हैं। उन्हें बताया गया कि मूल्यांकन शोध परियोजनाओं के बजाय लिखित परीक्षा से होगा। विभाग ने 21 जून या दिसंबर में परीक्षा देने का विकल्प दिया है लेकिन छात्रों को अंतिम समय में बदलाव और अन्य परीक्षाओं के साथ होने की चिंता है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में अध्ययनरत अंतिम वर्ष के छात्रों ने परीक्षा से पहले पाठ्यक्रम का पैटर्न बदलने पर हैरानी जताई है। छात्रों को यह जानकारी दी गई कि उनका मूल्यांकन अब पहले से घोषित शोध परियोजनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि एक पारंपरिक 90 अंकों की लिखित परीक्षा से किया जाएगा। इससे उनमें नाराजगी है।
यह घोषणा पाठ्यक्रम की समाप्ति से ठीक पहले, छात्रों द्वारा अपना शोध कार्य लगभग पूरा कर लेने के बाद की गई। हालाांकि, अब विभाग ने दूसरा विकल्प देने की बात जरूर कही है। छात्रों का कहना है कि अप्रैल में विभाग ने स्पष्ट रूप से बताया था कि ''रिसर्च मैथडलाजी'' विषय का मूल्यांकन शोध प्रपोजल और शोध पत्र के आधार पर होगा।
कई छात्रों ने इसके अनुरूप अपने समय और प्रयास को व्यवस्थित किया, शिक्षक-छात्र संवाद और फीडबैक प्रक्रिया के माध्यम से प्रगति की। लेकिन, 24 मई को विभाग द्वारा अचानक जारी किए गए ईमेल में इस पूरी प्रणाली को बदलते हुए, दो जून को आफलाइन परीक्षा लेने की घोषणा कर दी गई।
छात्रों के लिए यह न केवल भावनात्मक झटका था, बल्कि शैक्षणिक अस्थिरता का एक और प्रमाण भी। छात्रों ने कहा कि एक ओर उन्हें अंतिम क्षणों में परीक्षा का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके अन्य विषयों की परीक्षाएं भी साथ ही चल रही हैं। इस स्थिति को छात्रों ने ''असंवेदनशील और गैर-पारदर्शी'' करार दिया।
छात्रों के विरोध के बीच विभाग ने छात्रों को दो वैकल्पिक तिथियां 21 जून या दिसंबर प्रस्तावित की हैं, ताकि वे अपनी सुविधा अनुसार परीक्षा दे सकें। हालांकि, छात्रों का कहना है कि यह समाधान नहीं है, क्योंकि इससे उनके स्नातक परिणामों में देरी हो सकती है, जो भविष्य की योजनाओं और प्रवेश प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगा।
सोमवार को स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ्) ने इस मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन किया और इसे ''एनईपी-आधारित नई शैक्षणिक संरचना की खामियों'' से जोड़ा। एसएफआइ ने इसे "प्रशासन की जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति" बताया और मांग की कि मूल्यांकन प्रणाली में स्थिरता और स्पष्टता सुनिश्चित की जाए।
छात्रों की ओर से यह भी मांग की गई है कि इस बार केवल एक बार के लिए मूल शोध आधारित प्रणाली को ही लागू किया जाए और भविष्य में इस तरह के अंतिम समय में बदलावों से बचा जाए। उधर, आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के कार्यकर्ताओं ने विभाग के बाहर मामले को लेकर प्रदर्शन किया।
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