Yamuna Pollution: यमुना नदी में प्रदूषण की वजहें क्या हैं? स्रोत का पता लगाएगी डीपीसीसी
डीपीसीसी यमुना नदी में प्रदूषण के कारणों का पता लगाने के लिए अध्ययन करेगी। नालों और एसटीपी के पानी की गुणवत्ता जांची जाएगी ताकि पता चले कि कौन से स्रोत नदी को दूषित कर रहे हैं। एसटीपी से निकलने वाले पानी के पुन उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा। ओखला एसटीपी को पहले शून्य तरल निर्वहन पर लाने का लक्ष्य है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। मैली यमुना के लिए अभी तक हरियाणा को दोषी करार दिया जाता रहा है। जब तब यही आरोप लगता रहा है कि पानीपत व सोनीपत का औद्योगिक कचरा राजधानी में यमुना को दूषित करता है, लेकिन दिल्ली में भाजपा सरकार बनने के बाद इस तथ्य को भी गंभीरता से लिया गया है कि पल्ला में, जहां यमुना दिल्ली में प्रवेश करती है, इसकी जल गुणवत्ता काफी बेहतर होती है।
वजीराबाद में भी यह ठीक ही रहती है। जबकि इससे आगे चलकर फिर बद से बदतर होती जाती है। इसका अभिप्राय यह है कि आरोप प्रत्यारोप से आगे निकलकर समस्या की तह तक पहुंचना जरूरी हो गया है। इसी के मद्देनजर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डी पीसीसी) अब यमुना में प्रदूषण के अपने स्रोत भी पता लगाने के लिए एक अध्ययन कराएगी।
इस अध्ययन के तहत मुख्यतया नालों और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की जल गुणवत्ता पर फोकस किया जाएगा। मतलब यह देखा जाएगा कि एसटीपी से यमुना में जो शोधित पानी जा रहा है, उससे नदी की जल गुणवत्ता में कोई सुधार हो रहा है या नहीं। इसी तरह नालों से जो पानी यमुना में गिर रहा है, वो कितना गंदा है और नदी के जल को किस हद तक प्रदूषित कर रहा है।
हाल ही में हुई डीपीसीसी की बोर्ड बैठक में लिए गए इस निर्णय के तहत इस अध्ययन के लिए जन संस्थानों से भी सुझाव और सहयोग लिया जाएगा। हर एसटीपी एवं नाले के पास, कुछ किमी पहले और कुछ किमी बाद से पानी के नमूने लिए जाएंगे। इन नमूनों की जांच से ही पता लगाया जाएगा कि कहां पर नदी का जल कितना प्रदूषित या कितना बेहतर है। उसी के हिसाब से स्थिति में सुधार के लिए यथावश्यक कदम उठाए जाएंगे।
बोर्ड बैठक में यह भी तय किया गया है कि एक एक कर सभी 37 एसटीपी को जीरो लिक्विडिटी डिस्चार्ज पर ले आया जाए। मतलब, उनमें शोधित होने वाले पानी का एक सौ प्रतिशत पुन: उपयोग सुनिश्चित हो सके। पहले चरण में ओखला एसटीपी को इस श्रेणी में लाने की सोच रखी गई है।
अब जबकि राजधानी में यमुना की सफाई पर न सिर्फ गंभीरता से सोचा बल्कि काम भी किया जा रहा है, यह जरूरी हो गया कि नदी में प्रदूषण के वास्तविक स्रोत भी पता लगाए जाएं। आरोप प्रत्यारोप से राजनीति तो हो सकती है, यमुना की सफाई नहीं। अगर स्रोत मालूम होंगे तो उसी के मद्देनजर कारगर एक्शन प्लान भी बन सकेगा। -डॉ. अनिल गुप्ता, सदस्य, डीपीसीसी
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