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    होली का उल्लास बीता तो खुर्जा-चैती पर चर्चा से चेतन हो उठा चित्त

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Mon, 02 Apr 2018 09:18 AM (IST)

    यतींद्र मिश्र ने मालिनी अवस्थी और मनीषा कुलश्रेष्ठ से बात की। ...और पढ़ें

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    होली का उल्लास बीता तो खुर्जा-चैती पर चर्चा से चेतन हो उठा चित्त

    नई दिल्ली (जेएनएन)। होली का उल्लास बीत चुका है और अब धूप, जल, हवा के साथ प्रकृति चेतना का संदेश देने लगी है। ऐसे में दिन अब अलसाये से नहीं रहते हैं और अगर आलस्य कहीं बाकी रह गया है तो सुदूर गांव में सखियों की कोई मंडली चैती गाकर उसका मान-मर्दन कर देती है।

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    राजधानी की हवा में शनिवार को इसी चैती की मधुरता घुली हुई थी। ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर में मालिनी अवस्थी, यतींद्र मिश्र और मनीषा कुलश्रेष्ठ अपने आवाज में चैती और मूमल की तान छेड़ रहे थे। यहां मौजूद श्रोता चेतना के इस सुरमयी वरदान से आनंदित हो रहे थे।

    बुक स्टोर की सुर सभा में चैती बयार

    चैत्र माह उत्सव विषय पर दिलचस्प बातचीत जारी थी और शांत चित्त में राग-रंग व देसजता का रंग चढ़ता जा रहा था। प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने चैती, बाहरमासा, राम जन्म को बेहद सुरीले अंदाज में सामने रखा। उन्होंने कहा कि होली के उल्लास के बाद एक बदलाव के लिए नई दुनिया में जीवंत करने व चेतना जगाने के लिए चैती आती है। चैती नए संवत्सर का आधार भी है। चैत्र माह में गाए जाने के कारण गीत की यह विधा चैती कहलाती है।

    मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म का समय होने के कारण इसकी एक शाखा रामजन्म भी है। राम जन्म भी चेतना के जन्म का ही स्वरूप है, लिहाजा लालित्य, ममत्व, ठिठोली और वात्सल्य से भरे यह गीत जीवन की अनमोल थाती हैं। दूसरी तरफ पके हुए गेहूं किसानों की स्त्रियों को सुख देते हैं, वे प्रकृति का गुणगान करतीं हैं और उत्तर प्रदेश की पूरबिया भूमि चैती के सुरों में लहलहा जाती है।

    विरह की वेदना को भी चैती ने बखूबी आवाज दी है। बाहर कमाने गए पुरुषों की स्त्रियां ग्राम सौंदर्य को खुद के लिए व्यर्थ बतातीं हैं। विविध सौंदर्य के इस वर्णन को उन्होंने राग भीमपलासी का आधार लेकर प्रस्तुत किया। पिया मिलन हम जाइब हो रामा तथा जनम लियो रघुरैया हो रामा में की पंक्तियां संस्कृति के रस में पगी हुई लगीं।

    लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि राजस्थान में यह समय गणगौर के लिए निर्धारित है। शिव-पार्वती के अखंड प्रेम और पुरुष-प्रकृति की पूर्णता का परिचायक यह उत्सव मां गौरी (पार्वती) व महादेव की आराधना का आधार है। सुहागिन स्त्रियां व्रत रखती हैं और प्रसन्नता में मूमल और गणगौर गाती हैं।

    मनीषा कुलश्रेष्ठ बिरजू महाराज की रचनात्मक उत्कृष्टता पर बारीकी से अध्ययन कर चुकी हैं। चैती का उल्लास स्त्रियों के कंठ में सुरक्षित रहा है।

    यतींद्र मिश्र ने मालिनी अवस्थी और मनीषा कुलश्रेष्ठ से बात की। उन्होंने बताया कि मुख्यत: वाराणसी में स्त्रियों ने चैती को अमरता दी है। यहां पर फूलन बाई, बड़ी मोती बाई, विद्या बाई, सविता देवी, गिरिजा देवी, निर्मला देवी सहित अन्य लोगों का बहुत योगदान है।