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    राजधानी के रैन बसेरों की हालत ने चौंकाया, दहशत के साय में हजारों जिंदगियां; पढ़िए पूरी रिपोर्ट

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 12:06 PM (IST)

    दिल्ली में बेघर लोगों के लिए बने रैन बसेरों की हालत खस्ता है। कई रैन बसेरों की छतें जर्जर हैं प्लास्टर गिर रहा है और बारिश में पानी टपकता है जिससे लोगों को डर के साए में रात गुजारनी पड़ती है। शौचालयों की हालत भी खराब है। दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन ने जर्जर रैन बसेरों की मरम्मत की मांग की है लेकिन समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है।

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    दिल्ली में बेसहारा लोगों की छत भी असुरक्षित। जागरण

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। दिल्ली में हजारों बेसहारा लोगों के लिए रैन बसेरे (शेल्टर होम) एकमात्र सहारा हैं, लेकिन राजधानी के कई रैन बसेरों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना खुद जोखिम उठाने जैसा हो गया है।

    बता दें कि जिन छतों के नीचे ये लोग चैन की नींद लेना चाहते हैं, वही छतें अब उनके लिए खतरे का कारण बन चुकी हैं। वर्षा के मौसम में तो हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती है।

    दिल्ली में फिलहाल 200 रैन बसेरे हैं, जहां करीब 19,000 लोगों के रहने की व्यवस्था है। विभाग कहता कि इन रैन बसेरों में 9 हजार बेड उपलब्ध हैं, लेकिन हकीकत में केवल 4 से 5 हजार बेड ही उपलब्ध है।

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    वहीं, कई रैन बसेरों में लोग जमीन पर सोने को मजबूर है। कई रैन बसेरों में छतें जर्जर हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और सीलन से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं। वहीं पोर्टा केबिन की छतों की हालात ही बेहद दयनीय है।

    आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरा कोड नंबर 173 की छत की हालत बेहद खतरनाक है। दिन में किसी तरह लोग रह लेते हैं, लेकिन रात होते ही डर सताने लगता है कि कहीं छत गिर न जाए। बारिश के दिनों में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। बारिश के दौरान छत दिन-रात टपकती रहती है। यहां साफ-सफाई के लिए जरूरी सामान भी नहीं मिलता।

    बताया गया कि शौचालयों की स्थिति इतनी खराब है कि अंदर जाना भी किसी सजा से कम नहीं लगता। यह इमारत करीब 50 साल पुरानी है, और 10 साल केवल सीमेंट का घोल लगाकर अस्थायी मरम्मत की जाती है, जिससे कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाता। यहां रात में करीब 300 और दिन में 150 लोग रहते हैं।

    वहीं, इस मामले में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब विभाग) के प्रधान निदेशक पीके झा से पक्ष मांगा गया लेकिन, उन्होंने इस पर कुछ कहने से इनकार कर दिया।

    अन्य रैन बसेरों की भी खराब स्थिति

    अजमेरी गेट स्थित गली बोरियान के रैन बसेरा कोड नंबर 25 की छत से भी प्लास्टर झड़ रहा है और बरसात में फर्श पर पानी भर जाता है। रामलीला मैदान स्थित रैन बसेरा कोड 221, गुरू तेग बहादुर अस्पताल के पास स्थित कोड नंबर 80, दंगल मैदान के रैन बसेरे कोड 252 और 253, तथा फतेहपुरी स्थित आरसीसी बिल्डिंग (कोड 11 व 66) की छतें भी पानी टपक रहा हैं। द्वारका सेक्टर-3 के रैन बसेरे में तो बेड तक नहीं हैं, जिससे लोगों को फर्श पर सोने को मजबूर होना पड़ता है।

    दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष अभिषेक बाजपेयी ने बताया कि मानसून के दौरान हर साल ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। वर्षों से मांग की जा रही है कि जर्जर शेल्टर होम की मरम्मत की जाए, लेकिन हर बार समस्या को अस्थायी तौर पर टाल दिया जाता है। छतें कभी भी गिर सकती हैं। गली बोरियान ही नहीं, बल्कि दिल्ली के कई अन्य रैन बसेरों की स्थिति भी वैसी ही है।