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    दिल्ली में बेसहारा लोगों की छत भी असुरक्षित, रैन बसेरों की हालत दयनीय; लोग जमीन पर सोने के लिए मजबूर

    Updated: Fri, 25 Jul 2025 10:55 PM (IST)

    नई दिल्ली में रैन बसेरों की हालत खस्ता है जो बेघर लोगों के लिए एकमात्र सहारा हैं। 200 रैन बसेरों में से कई जर्जर हैं छतें टपक रही हैं और साफ-सफाई का अभाव है। आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरा सबसे खतरनाक स्थिति में है। दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन ने मरम्मत की मांग की है लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण स्थिति जस की तस बनी हुई है।

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    बेसहारा लोगों की छत भी असुरक्षित, दिल्ली के रैन बसेरों की हालत दयनीय

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। दिल्ली में हजारों बेसहारा लोगों के लिए रैन बसेरे (शेल्टर होम) एकमात्र सहारा हैं, लेकिन राजधानी के कई रैन बसेरों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना खुद जोखिम उठाने जैसा हो गया है। जिन छतों के नीचे ये लोग चैन की नींद लेना चाहते हैं, वही छतें अब उनके लिए खतरे का कारण बन चुकी हैं। बारिश के मौसम में तो हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती है।

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    दिल्ली में फिलहाल 200 रैन बसेरे हैं, जहां करीब 19,000 लोगों के रहने की व्यवस्था है। विभाग कहता कि इन रैन बसेरों में 9 हजार बेड उपलब्ध हैं, लेकिन हकीकत में केवल 4 से 5 हजार बेड ही उपलब्ध है। कई रैन बसेरों में लोग जमीन पर सोने को मजबूर है। कई रैन बसेरों में छतें जर्जर हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और सीलन से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं। वहीं पोर्टा केबिन की छतों की हालात ही बेहद दयनीय है।

    आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरा कोड नंबर 173 की छत की हालत बेहद खतरनाक है। दिन में किसी तरह लोग रह लेते हैं, लेकिन रात होते ही डर सताने लगता है कि कहीं छत गिर न जाए। बारिश के दिनों में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। बारिश के दौरान छत दिन-रात टपकती रहती है। यहां साफ-सफाई के लिए जरूरी सामान भी नहीं मिलता।

    शौचालयों की स्थिति इतनी खराब है कि अंदर जाना भी किसी सजा से कम नहीं लगता। यह इमारत करीब 50 साल पुरानी है, और 10 साल केवल सीमेंट का घोल लगाकर अस्थायी मरम्मत की जाती है, जिससे कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाता। यहां रात में करीब 300 और दिन में 150 लोग रहते हैं।

    वहीं दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब विभाग) से इस मामले को लेकर जवाब मांगा गया लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

    अन्य रैन बसेरों की भी खराब स्थिति

    अजमेरी गेट स्थित गली बोरियान के रैन बसेरा कोड नंबर 25 की छत से भी प्लास्टर झड़ रहा है और बरसात में फर्श पर पानी भर जाता है। रामलीला मैदान स्थित रैन बसेरा कोड 221, गुरू तेग बहादुर अस्पताल के पास स्थित कोड नंबर 80, दंगल मैदान के रैन बसेरे कोड 252 और 253, तथा फतेहपुरी स्थित आरसीसी बिल्डिंग (कोड 11 व 66) की छतें भी पानी टपक रहा हैं। द्वारका सेक्टर-3 के रैन बसेरे में तो बेड तक नहीं हैं, जिससे लोगों को फर्श पर सोने को मजबूर होना पड़ता है।

    पोर्टा कैबिन भी बदहाल

    दिल्ली के 200 रैन बसेरों में से 81 स्थायी जबकि 115 पोर्टा कैबिन हैं। लेकिन पोर्टा कैबिन की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है। कई जगह छतें लीक हो रही हैं और साफ-सफाई की हालत दयनीय है। कई की छत की टीन ऊपर से निकलने को हो रही है।

    दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष अभिषेक बाजपेयी ने बताया कि मानसून के दौरान हर साल ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। वर्षों से मांग की जा रही है कि जर्जर शेल्टर होम की मरम्मत की जाए, लेकिन हर बार समस्या को अस्थायी तौर पर टाल दिया जाता है। छतें कभी भी गिर सकती हैं। गली बोरियान ही नहीं, बल्कि दिल्ली के कई अन्य रैन बसेरों की स्थिति भी वैसी ही है।

    वहीं यूनियन के महासचिव विक्की शर्मा ने बताया कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ने गर्मियों में रैन बसेरों की नीली छतों को सफेद रंग से रंगने के निर्देश दिए थे ताकि गर्मी कम हो, लेकिन आज तक एक भी रैन बसेरे में इस आदेश का पालन होता नहीं दिखा।

    रैन बसेरे जिनका उद्देश्य बेसहारा लोगों को सुरक्षा और आराम देना है, अब खुद उनकी जान के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। विभागीय लापरवाही और देखरेख की कमी के कारण ये लोग न सिर्फ असुविधा बल्कि संभावित दुर्घटनाओं के भी शिकार हो सकते हैं।