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    दिल्ली में रोजाना निकलने वाले कचरे से बनी गैस से चल सकती हैं 17 हजार कारें, CSE की रिपोर्ट में दावा

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 07:53 AM (IST)

    सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में प्रतिदिन निकलने वाले कचरे से 17 हजार कारें चलाई जा सकती हैं। दिल्ली में हर दिन 5210 टन गीला कचरा पैदा होता है जिससे 174 टन बायो-सीएनजी बनाई जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि गीले कचरे से बायो-सीएनजी बनाना पर्यावरण के लिए अनुकूल है और शहरों को कचरे का ऑडिट कराना चाहिए।

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    दिल्ली की भलस्वा लैंडफिल साइट। फोटो सौजन्य- जागरण

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। क्या आपको पता है, यदि कचरे का सदुपयोग कर लिया जाए तो उससे आपकी गाड़ी का ईंधन भी बन सकता है। इतना ही नहीं दिल्ली-एनसीआर को वायु प्रदूषण जैसे बड़े संकट से भी निजात मिल सकती है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार घरों से निकलने वाला कचरा ईंधन का बड़ा स्रोत है।

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    लेकिन देश की राजधानी दिल्ली इस दिशा में इसलिए पस्त हो जाती है क्योंकि यहां अब तक भी गीला-सूखा कचरा दिखावों और कागजों में ही अधिक अलग होता है। लोगों की खराब आदतें और सरकारी एजेंसियों की अन्यमनस्कता के चलते इस पर कभी सफल परिणाम नहीं निकल सके।

    हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ‘बायो सीएनजी फ्राम म्युनिसिपल सालिड वेस्ट’ पर एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार दिल्ली में प्रतिदिन जितना कचरा निकलता है उससे रोजाना करीब 17 हजार कार चलाई जा सकती हैं। सीएसई की यह रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में हर दिन 5,210 टन गीला कचरा पैदा होता है।

    इस कचरे से हर दिन 174 टन यानी एक लाख 74 हजार किलो बायो-सीएनजी तैयार की जा सकती है। राजधानी में यदि किसी वाहन चालक की कार दिनभर औसतन दस किलो सीएनजी खर्च करती है तो इस हिसाब से 17,400 कारों के लिए ईंधन की जरूरत पूरी हो सकती है। इसी तरह यदि इस कचरे से एलपीजी गैस बनाई जाए तो 94 टन एलपीजी तैयार होगी, जिससे हर रोज 6,600 सिलिंडर भरे जा सकते हैं।

    पर्यावरण अनुकूल भी है बायो-सीएनजी

    गीले कचरे से खाद बनाने की तुलना में बायो सीएनजी बनाना कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल है। रिपोर्ट बताती है कि गीले कचरे से खाद बनाने के दौरान आसपास के लोग बदबू की शिकायत करते हैं। इसका सही प्रबंधन नहीं होने की स्थिति में कचरा सड़ते समय उससे निकलने वाला द्रव (लिचेट) भूजल में जाकर उसे जहरीला बनाता है।

    इसकी तुलना में बायो सीएनजी संयंत्र के पास बदबू नहीं होती व खाद बनाने वाले संयंत्र की तुलना में यह दो से तीन गुना कम जमीन पर ही काम कर सकता है। बड़े स्थानीय निकायों को इस तरह के संयंत्र लगाने चाहिए जिससे बायो-सीएनजी का उत्पादन किया जा सके।

    साथ ही शहरों को हर तीन साल में अपने यहां से निकलने वाले कचरे का आडिट भी कराना चाहिए। इसके जरिए पता लगाया जाना चाहिए कि किसी खास शहर में कितना और कैसा कचरा पैदा हो रहा है। उसी अनुसार उसके प्रबंधन की योजना बनाई जाए।

    इंदौर से सीखें

    कचरे से बायो-सीएनजी बनाने के प्लांट

    • शुरुआत हुई: वर्ष 2021, पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था प्लांट का उद्घाटन
    • विदेश में : जर्मनी, कनाडा और अमेरिका में भी इसका सफल प्रयोग हो रहा।

    दिल्ली ही नहीं, सभी बड़े शहरों को गीले कचरे के बेहतर प्रबंधन के लिए खाद से बायो सीएनजी बनाने की तरफ शिफ्ट होना चाहिए। शहरी स्थानीय निकाय अपने कचरे से ईंधन बनाकर खुद के वाहनों की ईंधन जरूरतों को भी पूरा कर सकते हैं। इससे ईंधन का खर्च बचेगा और कचरे का प्रबंधन भी बेहतर तरीके से हो सकेगा। -कैफी जावेद, ठोस कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ, सीएसई

    सूखे और गीले कचरे के बेहतर निपटान की दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। बायोगैस प्लांट हालांकि एक पुरानी तकनीक है, लेकिन दिल्ली में अभी तक इस पर ढंग से काम नहीं किया गया। कचरे के स्मार्ट प्रबंधन से प्रदूषण भी कम होगा और ईंधन के नए स्रोत भी मिलेंगे। लैंडफिल साइट्स के अलावा गोशालाओं के गोबर से भी गैस बनाई जा सकती है। - डॉ. जेपीएस डबास, पूर्व प्रधान विज्ञानी, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा

    देवगुराडिया ट्रेंचिंग ग्राउंड स्थित बायो सीएनजी प्लांट की क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम चल रहा है। हमारा लक्ष्य प्रतिदिन 28 टन सीएनजी उत्पादन का है। ऐसा करने के लिए हमें एजेंसी को रोजाना 800 टन गीला कचरा देना होगा। इसकी तैयारी चल रही है। -रोहित सिसोनिया, अपर आयुक्त इंदौर नगर निगम