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    दिल्ली के कचरे में है ईंधन का खजाना : बायो-सीएनजी से 17,400 कारें और 6,600 सिलिंडर की आपूर्ति संभव

    Updated: Mon, 18 Aug 2025 06:47 PM (IST)

    एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में रोजाना 5210 टन गीले कचरे से 174 टन बायो-सीएनजी बनाई जा सकती है जिससे 17000 कारों को चलाया जा सकता है। कचरे से बायो-सीएनजी बनाना खाद बनाने से बेहतर है। दिल्ली में कचरे से ईंधन बनाने के तीन प्लांट पर काम चल रहा है जिनके 2025-2026 तक शुरू होने की संभावना है। इंदौर में कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का सफल मॉडल है।

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    दिल्ली के कचरे से रोज 17 हजार कारों को मिल सकता ईंधन

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राजधानी का कचरा सियासी व प्रशासनिक स्तर पर भले ही नासूर बन रहा हो, लेकिन अगर ठीक से उपयोग किया जाए तो यह कचरा ईंधन का एक बड़ा स्रोत हो सकता है। इससे न केवल रोजाना करीब 17 हजार कारें चलाई जा सकती हैं बल्कि 66 एलपीजी सिलिंडर भी भरे जा सकते हैं।

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    सीएसई की रिपोर्ट

    सेंटर फाॅर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ''बायो सीएनजी फ्राम म्युनिसिपल सालिड वेस्ट'' रिपोर्ट में कचरे उपयोग को लेकर विस्तार से आंकलन किया गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में हर दिन 5,210 टन गीला कचरा बनता है। इस कचरे से हर दिन 174 टन यानी एक लाख 74 हजार किलो बायो-सीएनजी तैयार की जा सकती है।

    राजधानी में दिनभर चक्कर लगाने वाली एक कार अगर औसतन दस किलो सीएनजी खर्च करती है तो इस हिसाब से 17,400 कारों के ईंधन की जरूरत पूरी हो सकती है। इसी तरह यदि इस कचरे से एलपीजी गैस बनाई जाए है तो 94 टन एलपीजी तैयार होगी, जिससे हर रोज 6600 सिलिंडर भरे जा सकते हैं।

    बायो-सीएनजी पैदा करना बेहतर विकल्प

    रिपोर्ट में कहा गया है कि गीले कचरे के प्रबंधन के लिए आमतौर पर खाद बनाने पर ही जोर दिया जा रहा है लेकिन इसके साथ-साथ बायो-सीएनजी के उत्पादन की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। क्योंकि, कचरे से बायो-सीएनजी पैदा करना कहीं बेहतर विकल्प हो सकता है। खासतौर पर बड़े स्थानीय निकायों को इस तरह के संयंत्र लगाने चाहिए जिससे बायो-सीएनजी का उत्पादन किया जा सके।

    रिपोर्ट कहती है कि गीले और सूखे कचरे को पूरी तरह से अलग करके एकत्रित किया जाना चाहिए। ताकि, उसका उपयोग बेहतर तरीके से किया जा सके। साथ ही शहरों को हर तीन साल में अपने कचरे का आडिट कराना चाहिए। इसके जरिए पता लगाया जाना चाहिए कि किसी खास शहर में कितना कचरा पैदा हो रहा है और जो पैदा हो रहा है वह किस किस्म का है। उसी अनुसार उसके प्रबंधन की योजना बनाई जाए।

    पर्यावरण अनुकूल भी है बायो-सीएनजी

    गीले कचरे से खाद बनाने की तुलना में बायो सीएनजी बनाना कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल है। रिपोर्ट बताती है कि गीले कचरे से खाद बनाने के दौरान आसपास के लोग बदबू की शिकायत करते हैं। इसका सही प्रबंधन नहीं होने की स्थिति में कचरा सड़ते समय उससे निकलने वाला द्रव (लिचेट) भूजल में जाकर उसे जहरीला बनाता है। इसकी तुलना में बायो सीएनजी संयंत्र के पास बदबू नहीं होती व खाद बनाने वाले संयंत्र की तुलना में यह दो से तीन गुना कम जमीन पर ही काम कर सकता है।

    ईंधन का खर्च बचेगा

    "दिल्ली ही नहीं, सभी बड़े शहरों को गीले कचरे के बेहतर प्रबंधन के लिए खाद से बायो सीएनजी बनाने की तरफ शिफ्ट होना चाहिए। शहरी स्थानीय निकाय अपने कचरे से ईंधन बनाकर खुद के वाहनों की ईंधन जरूरतों को भी पूरा कर सकते हैं। इससे ईंधन का खर्च बचेगा और कचरे का प्रबंधन भी बेहतर तरीके से हो सकेगा।"

    -कैफी जावेद, ठोस कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ, सीएसई

    जमीनी स्तर पर दावा खोखला 

    दिल्ली में दावा तो किया जाता है कि जहां-जहां जितना संभव हो पा रहा है, सूखा और गीला कचरा अलग-अलग किया जा रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर दावा खोखला ही नजर आता है। कचरे से ईंधन बनाने के लिए यहां पर तीन प्लांटों पर काम चल रहा है। 300 टीपीडी क्षमता का प्लांट ओखला में दिसंबर 2025 तक, 100 टीपीडी क्षमता का घोघा डेयरी में अगस्त 2025 तक और 350 टीपीडी क्षमता का गाजीपुर में दिसंबर 2026 तक शुरू होना प्रस्तावित है। हालांकि इनकी समय सीमा के भी आगे बढ़ने के संकेत हैं।

    इंदौर सबसे सफल माॅडल

    कचरे से बायो-सीएनजी बनाने के प्लांट का सबसे सफल उदाहरण इंदौर का है। 2021 में पीएम नरेन्द्र मोदी ने यहां इस प्लांट का उदघाटन किया था। इस प्लांट में 550 टन सेग्रीटेटिड आर्गेनिक वेस्ट से 17 टन सीएनजी तैयार हो रही है, जिससे वहां 146 बसें चल रही हैं। विदेशों की बात करें तो जर्मनी, कनाडा और अमेरिका में भी इसका सफल प्रयोग चल रहा है।

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