Delhi Education: दिल्ली विश्वविद्यालय ने बदले PhD के नियम, अब इन जर्नल में शोधपत्र का प्रकाशन कराना हुआ आवश्यक
डीयू में हर वर्ष करीब एक हजार छात्र पीएचडी के लिए चयनित होते हैं। डीयू ने पीएचडी के लिए सीयूईटी से प्रवेश को अनिवार्य कर दिया है। इस वर्ष से यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। इसके साथ ही शोध कार्य के मानकों का स्तर पहले से बढ़ाया गया है।

नई दिल्ली, उदय जगताप। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से पीएचडी करने वालों को अब और अधिक परिश्रम करना होगा। विश्वविद्यालय ने शोधपत्र प्रकाशन के मानकों में बदलाव किया है। अब शोधार्थियों को स्पोकस इंडेक्स और यूजीसी केयर के तहत आने वाले जर्नल में शोधपत्र का प्रकाशन कराना आवश्यक होगा। इसके बाद ही पीएचडी की उपाधि पूरी हो पाएगी, पहले यह बाध्यता नहीं थी।
हाल ही में डीयू की कार्यकारी परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया है। डीयू में हर वर्ष करीब एक हजार छात्र पीएचडी के लिए चयनित होते हैं। डीयू ने पीएचडी के लिए सीयूईटी से प्रवेश को अनिवार्य कर दिया है। इस वर्ष से यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। इसके साथ ही शोध कार्य के मानकों का स्तर पहले से बढ़ाया गया है।
एनआइआरएफ रैंकिंग में डीयू ने दो अंकों की छलांग जरूर लगाई है, लेकिन विश्वविद्यालय को वो मुकाम नहीं मिल पा रहा है, जिसके लिए यह जाना जाता है। इसलिए विश्वविद्यालय अपने मानक कड़े कर रहा है। पीएचडी के लिए पहले यूजीसी केयर या सामान्य प्रक्रिया के तहत पीयर रिव्यू के तहत शोधपत्र प्रकाशित करा लिया जाता था।
एक शोधपत्र प्रकाशन के आधार पर थीसिस जमा कर दी जाती थीं। लेकिन, अब यूजीसी केयर या स्पोकस इंडेक्स के तहत जर्नल में दो शोधपत्र प्रकाशित कराने होंगे। डीयू के अकादमिक परिषद के सदस्य और विधि संकाय में प्रोफेसर मेघराज ने कहा, इससे गुणवत्तापूर्ण शोध के रास्ते खुलेंगे और डीयू का स्टैंडर्ड भी बढ़ेगा।
हालांकि, स्पोकस इंडेक्स के तहत आने वाले जर्नल अधिकतर विज्ञान से जुड़े शोध पत्रों को तरजीह देते हैं। ऐसे में ह्यूमेनिटीज के छात्रों को अपना शोध पत्र प्रकाशित कराने में परेशानी हो सकती है। इसके अलावा कैटेगिरी बना देने से स्वाभाविक तौर पर प्रतियोगिता भी बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा, पहले पीयर रिव्यूवर की प्रक्रिया में शोधपत्र की विषय विशेषज्ञ से जांच कराई जाती थी।
जरूरी सुधार और कंटेंट की गुणवत्ता पूरी होने के बाद ही शोधपत्र प्रकाशित हो पाता था। वहीं, अकादमिक परिषद के सदस्य प्रो. हरेंद्र तिवारी ने कहा, विश्वविद्यालय गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नई शिक्षा नीति के तहत यह फैसले ले रहा है।
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