दिल्ली में 4,200 कर्मियों के भरोसे 78 लाख वाहनों का ट्रैफिक मैनेजमेंट, खूब उड़ रही नियमों की धज्जियां
दिल्ली में 78 लाख वाहनों का ट्रैफिक प्रबंधन केवल 4200 कर्मियों के भरोसे है। सड़कों पर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन आम है क्योंकि पुलिसकर्मी चालान करने पर अधिक ध्यान देते हैं। विशेषज्ञ ट्रैफिक प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देते हैं। ट्रैफिक जाम से समय की बर्बादी के साथ प्रदूषण भी बढ़ रहा है जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।

मोहम्मद साकिब, नई दिल्ली। दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। राजधानी में अब तक 78 लाख से ज्यादा वाहन पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से रोजाना लगभग 40 से 45 लाख वाहन सड़कों पर उतरते हैं। भीड़ इतनी अधिक है कि कई बार सड़कें चलने लायक कम और पार्किंग एरिया ज्यादा नजर आती हैं।
मगर ट्रैफिक की इस बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए केवल 4,200 ट्रैफिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। अब ऐसे में कैसे ट्रैफिक नियमों का पालन होता होगा, सड़कों पर उड़ती ट्रैफिक नियमों की धज्जियों से ही लगा सकते हैं। जो ट्रैफिक पुलिस कर्मी हैं भी अमूमन उनका ध्यान ट्रैफिक सुदृढ़-सुचारू करने के बजाय चालान करने पर ही अधिक रहता है।
परिस्थिति ऐसी बन चुकी हैं कि दिल्ली में एक बड़े तबके के पास अपना वाहन है, लेकिन सड़कों पर अनुशासन कहीं खो गया है। नतीजतन, जाम, झगड़े और दुर्घटनाएं आम हो गई हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि मौजूदा हालात में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए पुलिस बल को और मजबूत करने के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल जरूरी है। यातायात पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मानें तो वर्तमान में आठ हजार ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की आवश्यकता है। यानी अभी आधी स्ट्रेंथ पर ही काम हो रहा है।
दिनचर्या के साथ सेहत भी बिगाड़ रहा ट्रैफिक
यातायात जाम से दिल्ली वालों का समय तो खराब होता ही है, देर तक ट्रैफिक में खड़े रहने से वाहनों के धुएं से प्रदूषण भी बढ़ता है। यानी समय और स्वास्थ्य दोनों के लिए जाम हानिकारक बन रहा है।
दिल्ली के प्रदूषण में जाम के कारण कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा होता है। इससे दिल्लीवालों की सेहत पर बेहद गंभीर असर पड़ता है। खासकर व्यस्त समय में सुबह-शाम तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि आईटीओ, धौला कुआं, आश्रम और राजौरी गार्डन जैसे इलाके घंटों तक ठप रहते हैं।
एक सर्वे के मुताबिक, औसतन हर दिल्लीवासी प्रतिदिन एक घंटा से अधिक समय सिर्फ जाम में गंवा देता है। यानी दिनचर्या का बड़ा हिस्सा ट्रैफिक की भेंट चढ़ रहा है।
वहीं, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अफसर मानते हैं कि मौजूदा स्टाफ से ट्रैफिक को संभालना नामुमकिन है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली का ट्रैफिक अब मैनुअल कंट्रोल से बाहर हो चुका है। हमें सीसीटीवी, एआइ, स्मार्ट सिग्नल सिस्टम जैसे तकनीकी साधनों पर ज्यादा भरोसा करना होगा।
तकनीक बनाम हकीकत
- कैमरे और इलेक्ट्रानिक चालान से लाखों चालान जारी, लेकिन वसूली अधूरी
- स्मार्ट सिग्नल कुछ जगह प्रयोग, ज्यादातर जगह पुराने सिस्टम
- ड्रोन निगरानी ट्रायल में, बड़े स्तर पर लागू नहीं
मौजूदा ट्रैफिक पुलिस स्ट्रक्चर
- 2 स्पेशल सीपी जोन वन और जोन टू में
- 6 ट्रैफिक रेंज, इसमें 15 जिले
- ईस्टर्न, नार्दर्न और वेस्टर्न रेंज : तीन-तीन जिले
- सेंट्रल, सर्दन और नई दिल्ली रेंज : दो-दो जिले
- एक सहायक आयुक्त, प्रत्येक जिल में
- 2 सहायक आयुक्त नई दिल्ली जिले में, यहां वीआइपी मूवमेंट अधिक रहता है। बड़े आयोजन, विरोध प्रदर्शन होते हैं।
- 53 सर्कल : 53 ट्रैफिक इंस्पेक्टर
ट्रैफिक पुलिस की मजबूरी
- कर्मियों की भारी कमी
- वीआइपी मूवमेंट में फोर्स की बड़ी तैनाती
- अदालत और प्रशासनिक कार्यों का दबाव
- कई चौराहों पर स्थायी तैनाती नहीं
तनाव में सफर करना मजबूरी
दिल्ली में करीब छह सौ प्रमुख चौराहे और मार्ग ऐसे हैं जहां प्रतिदिन ट्रैफिक का भारी दबाव रहता है। कार्यदिवसों में सुबह और शाम आफिस आवागमन के समय हालात सबसे अधिक बिगड़ते हैं।
नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद और सोनीपत से रोज लाखों वाहन दिल्ली में प्रवेश करते हैं, इससे वाहनों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में जगह-जगह जाम लगना आम बात हो गई है।
कई बार छोटी सी दुर्घटना या कोई बस या बड़ा वाहन खराब होने पर भी पूरे रास्ते की रफ्तार थम जाती है। लोग घंटों जाम में फंसे रहते हैं और तनाव में सफर करते हैं।
सड़कों की बदहाली भी ट्रैफिक जाम का मुख्य कारण
ट्रैफिक विशेषज्ञ इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह ने बताया कि दिल्ली में जाम की समस्या का बड़ा कारण बड़ी संख्या में नई गाड़ियों का पंजीकरण तो है ही साथ ही यहां की सड़कों की बदहाली भी मुख्य कारण है। टूटी सड़कें, सड़कों से ढंके पेड़, गड्ढे और रोड इंजीनियरिंग का ठीक से न होने के कारण सड़कों पर वाहन रेंगने को मजबूर हैं।
समस्या से तभी निपटा जा सकता है जब यहां सभी एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर हो और सभी अपनी जिम्मेदारियों का ठीक से पालन करें। लोग बेखौफ नियम तोड़ने से बाज नहीं आते हैं। इसके लिए विशेष योजना तैयार की जानी चाहिए।
आगे की चुनौती
दिल्ली सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों और साझा परिवहन को बढ़ावा देने की बात कर रही है, लेकिन सवाल यही है कि क्या इससे ट्रैफिक का बोझ सच में हल्का होगा? अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले कुछ वर्षों में दिल्ली की सड़कें और भी बदहाल हो सकती हैं।
लोग भी करें सुधार
- जल्दबाजी में सिग्नल नहीं तोड़ें
- लेन बदलते समय लापरवाही नहीं बरतें
- हेलमेट और सीट बेल्ट लगाएं
- शराब पीकर वाहन नहीं चलाएं
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