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    नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और उसे गर्भवती करने के मामले में व्यक्ति को आजीवन कारावास, अदालत ने सुनाई सजा

    Updated: Fri, 14 Mar 2025 08:25 AM (IST)

    Delhi Tis Hazari Court दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने गुरुवार को एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और उसे गर्भवती करने के मामले में 35 साल के एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। निहाल विहार थाने में 2024 में POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया।

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    दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने व्यक्ति को आजीवन कारावास की सुनाई सजा। फाइल फोटो

    एएनआई, नई दिल्ली। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने गुरुवार को एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने और उसे गर्भवती करने के मामले में एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। निहाल विहार पुलिस स्टेशन में 2024 में POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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    पीड़िता का पड़ोसी दोषी, जिस पर पीड़िता भरोसा करती थी और उसे 'चाचा' कहती थी। हमले से पैदा हुए बच्चे को तब से गोद लेने के लिए रखा गया है। कोर्ट ने आदेश में कहा, "दोषी को इस बात की परवाह नहीं थी कि पीड़िता उसे 'चाचा' कहती थी या वह उसके पड़ोसी की बेटी थी।

    दोषी ने विश्वासघात किया है और उस भरोसे को तोड़ा-कोर्ट

    हमारी भारतीय संस्कृति में जब माता-पिता कहीं जाते हैं तो वे अपने पड़ोसियों से अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए कहते हैं। दोषी ने विश्वासघात किया है और उस भरोसे को तोड़ा है। विशेष न्यायाधीश (POCSO) बबीता पुनिया ने दोषी को POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत आजीवन कारावास (शेष जीवन के लिए) की सजा सुनाई।

    न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा

    "मेरे विचार से, दोषी के आचरण ने इस अपराध को और अधिक गंभीर बना दिया है।"

    "POCSO की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए, उसे (दोषी को) आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई जाती है, जिसका अर्थ है कि उसके शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना देना होगा," अदालत ने 10 मार्च को आदेश दिया।

    'पड़ोसी के रूप में अपने भरोसे का किया दुरुपयोग'

    न्यायालय ने 30 जनवरी, 2025 को आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के साथ धारा 5 (जे) (ii) और (एल) तथा धारा 376 (2) (एन)/506 भाग II आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया था। न्यायालय द्वारा धारा 376 (बलात्कार) के लिए कोई अलग से सजा नहीं सुनाई गई है।

    न्यायालय ने कहा कि पीड़िता एक मासूम, असहाय 'बच्ची' थी, जिसका उसके पड़ोसी ने यौन शोषण किया, जिसे वह 'चाचा' कहती थी; उसने पीड़िता के जीवन में एक पड़ोसी के रूप में अपने भरोसे का दुरुपयोग किया। न्यायालय ने पीड़ित मुआवजा योजना के तहत पीड़िता को उसके पुनर्वास के लिए 19.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

    दोषी के वकील ने सजा देने में नरमी बरतने की प्रार्थना की

    अभियोजन पक्ष ने दोषी को कठोरतम और कड़ी सजा दिए जाने की प्रार्थना की थी। विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) ने दलील दी कि दोषी ने बार-बार लड़की के साथ बलात्कार किया, लेकिन पूरे मुकदमे के दौरान उसने अपराध में अपनी संलिप्तता से इनकार किया और किसी भी समय उसने अपने भयानक कृत्य के लिए कोई पश्चाताप नहीं दिखाया।

    अदालत ने एसपीपी की दलीलों पर गौर करते हुए कहा- इस प्रकार, विद्वान अभियोजक के अनुसार, समाज के हित को ध्यान में रखते हुए उसे समाज में वापस नहीं आने दिया जाना चाहिए, जो मांग करता है कि दोषी द्वारा किए गए बेतहाशा आपराधिक कृत्यों को आनुपातिक रूप से दंडित किया जाना चाहिए।

    बचाव पक्ष के वकील की दलील को कोर्ट ने किया खारिज 

    दूसरी ओर दोषी के वकील ने सजा देने में नरमी बरतने की प्रार्थना की। यह दलील दी गई कि दोषी लगभग 35 वर्ष का एक युवा है। वह अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला है, जिसमें एक बूढ़ी मां, एक पत्नी और दो नाबालिग बच्चे हैं।

    वह अनपढ़ है, समाज के निचले तबके से ताल्लुक रखता है और बिना किसी आपराधिक इतिहास के पहली बार अपराधी बना है। अदालत ने बचाव पक्ष के वकील की दलील को खारिज कर दिया।

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