गुणवत्ता से समझौता: समय से पहले बेकार हुई MCD की एलईडी, दावा 50 हजार घंटे का था, जली औसतन 41 हजार घंटा
दिल्ली में स्ट्रीट लाइट की गुणवत्ता में कमी आई है जिसके कारण वे समय से पहले खराब हो रही हैं। एमसीडी पीडब्ल्यूडी और एनडीएमसी की स्ट्रीट लाइट व्यवस्था में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। 2014 में लगाई गई एलईडी लाइटें 50000 घंटे चलने के दावे पर खरी नहीं उतरीं। इस लापरवाही से सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। गुणवत्ता से समझौते ने दिल्ली की स्ट्रीट लाइट्स को समय से पहले बेकार कर दिया। इसकी मुख्य वजह एमसीडी, पीडब्ल्यूडी और एनडीएमसी की स्ट्रीट लाइट व्यवस्था में गुणवत्ता से समझौता है। एमसीडी में अब एक बार फिर यही कुछ दोहराया जा रहा है।
एक सितंबर 2025 से लागू हुए नए टेंडर में चार लाख 22 हजार वर्ष 2014 में एमसीडी ने अपने क्षेत्र में लगी स्ट्रीट लाइट के उपयोग हो रहे सोडियम लैंप के स्थान पर टेंडर के तहत तीन लाख 96 हजार 970 एलईडी इस दावे के साथ लगाई गई थी कि इनकी औसत आयु 50,000 घंटा जलने की है। पर, इनके लगाए जाने की तिथि और इनके बदले जाने की संभावित तिथि बताती है कि इनमें अधिकांश ने अपनी औसत आयु को पूरा किया ही नहीं।
इनके जलने के मानक समय के से देखें तो पाएंगे कि वर्ष 2014 जुलाई से 2015 जून के मध्य स्थापित सेंसर गाइडेड यह एलईडी स्ट्रीट लाइट मानक समय अनुसार शाम 6:30 बजे से सुबह 5:30 बजे तक औसत जलीं। कभी कम तो कभी ज्यादा।
इस लिहाज से प्रतिदिन इनके जलने की अवधि तकरीबन 11 घंटे की रही। जुलाई 2014 से 31 अगस्त 2025 तक कुल चार हजार 80 हुए। इसमें लीप ईयर के तीन अतिरिक्त दिन भी समाहित हैं। इसमें लीप ईयर के तीन अतिरिक्त दिन भी समाहित हैं। इस अवधि की एलईडी के जलने से समय से गणना करें तो यह 44 हजार 880 घंटे होता है।
50 हजार घंटे के दावे से करीब सवा पांच हजार घंटा कम। विद्युत कटौती, रखरखाव, एलईडी की खराबी और डिमिंग (लाइट की तीव्रता को कम करना, यह प्रयोग रात 12 बजे के बाद उर्जा खपत को कम करने के कारण किया जाता है।) के कारण होने वाली अनिवार्य 10 प्रतिशत बंदी को लेते हुए गणना करें तो यह अवधि 40 हजार 392 घंटे होती है।
साफ है कि वर्ष 2014 में सोडियम लैंप के स्थान पर एलईडी लगाने के समय 50 हजार घंटे का जो दावा किया गया था, वह विद्युत कटौती, रखरखाव और डिमिंग के बावजूद खरा नहीं उतरा। जबकि डिमिंग का एक अन्य लाभ एलईडी की उम्र को बढ़ाना भी है।
इस गणना का दूसरा पहलू बताता है कि एमसीडी की इस लापरवाही और शासकीय कार्य के प्रति बरती गई कर्तव्यहीनता के कारण इसने सरकार को करोड़ों का नुकसान भी पहुंचा है। सरकार को समय से पहले ही एलईडी बदलने के लिए नए टेंडर के तहत 600 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ रहा है। खूबी यह कि नया टेंडर में फिर से 50 हजार घंटे का दावा दोहराया जा रहा है।
एमसीडी के पास अब भी 59,579 सोडियम लैंप (एचपीएसवी) बताए जाते हैं, कुछ इसे 80 हजार के करीब बताते हैं। एमसीडी को इस वर्ष जनवरी से सितंबर के मध्य स्ट्रीट लाइट को लेकर 1,800 से अधि शिकायतें प्राप्त हुई हैं। उसके ईस्ट जोन में एक सितंबर 2025 से ई-स्मार्ट, साउथ-नार्थ में हैवल्स स्ट्रीट लाइट का काम संभाल रही, लेकिन करोल बाग, समता विहार में स्ट्रीट लाइट की दयनीय स्थिति अधिकांश क्षेत्र को अंधेरे में डुबोए हुए हैं।
पीडब्ल्यूडी की 96,736 लाइट्स (46,000 एचपीएसवी, 50,000 एलईडी) हैं। औसत 20 से 30 प्रतिशत अधिकांश खराब रहती हैं। इस वर्ष अब तक स्ट्रीट लाइट को लेकर 2,080 शिकायतें हुईं जिसमें से 653 अभी तक पेंडिंग हैं। अब पीडब्ल्यूडी सामान मासिक किश्त योजना (ईएमआइ माडल) पर 90,000 स्मार्ट एलईडी लगाने की योजना बना रही है।
एनडीएमसी की उसके क्षेत्र में 15 हजार के करीब स्मार्ट एलईडी, 104 हाई मास्ट लाइट है। इनमें से 10 से 15 प्रतिशत की अक्सर खराबी और अब तक 500 से अधिक शिकायतें इनकी गुणवत्ता की चुगली करने को काफी है। हालांकि उसकी मानिटरिंग और रखरखाव का स्तर एमसीडी और पीडब्ल्यूडी से बेहतर है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।