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राशि जारी होने के बाद भी नहीं शुरू हो सका सिग्नेचर ब्रिज का काम, ये है असली वजह

पैसा न मिलने से मार्च के पहले सप्ताह से ठप सिग्नेचर ब्रिज का काम अभी तक शुरू नहीं हो सका है। पैसा न मिलने से कंपनी काम बंद कर मुंबई जा चुकी है।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 28 Apr 2018 06:51 PM (IST)Updated: Sat, 28 Apr 2018 09:16 PM (IST)
राशि जारी होने के बाद भी नहीं शुरू हो सका सिग्नेचर ब्रिज का काम, ये है असली वजह

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। दिल्ली सरकार में प्रशासनिक हीलाहवाली का आलम यह है कि सिग्नेचर ब्रिज परियोजना के लिए 6 अप्रैल को सरकार द्वारा योजना के लिए जारी की गई 36 करोड़ की राशि अभी तक योजना के लिए निर्धारित खाते में नहीं पहुंची है।

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शुरू नहीं हो सका है काम 

योजना पर काम करा रहे दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन निगम (डीटीटीडीसी) ने इस राशि को अभी तक योजना के लिए आवंटित नहीं किया है। पैसा न मिलने से मार्च के पहले सप्ताह से ठप इस परियोजना का काम अभी तक शुरू नहीं हो सका है। इस बारे में डीटीटीडीसी के प्रबंध निदेशक शूर्यबीर सिंह से उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया गया। मगर वह फोन पर उपलब्ध नहीं थे।

कंपनी काम बंद कर मुंबई जा चुकी है

बता दें कि सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण में देरी का कारण निर्माणकर्ता कंपनी की शिथिलता तो है ही कार्य के लिए पैसा समय पर न मिलना भी समस्या है। ब्रिज का ढांचागत निर्माण मार्च के पहले सप्ताह से ठप है। पैसा न मिलने से कंपनी काम बंद कर मुंबई जा चुकी है। जबकि योजना के लिए अभी तक 231 करोड़ की राशि जारी होनी है। इसमें से 36 करोड़ की राशि सरकार ने 6 अप्रैल को जारी की थी। उस समय उम्मीद जगी थी कि अब काम जल्द शुरू होगा। मगर अब तक यह राशि जारी नहीं की गई है।

योजना को पैसे की दरकार है

बता दें कि सिग्नेचर ब्रिज का अब ढांचागत निर्माण सिर्फ 4 फीसद बचा है। निर्माण कार्य 94 फीसद पूरा हो चुका है। परियोजना के 154 मीटर लंबे मुख्य पिलर में से 132 लंबाई तक इसे जोड़ा जा चुका है। वहीं जिन मोटे तारों से पुल का 350 मीटर का भाग रोका जाना है। उन 38 तारों में से 30 तार लगाए जा चुके हैं। अब 8 तारों का काम शेष है। मगर अब योजना को पैसे की दरकार है। इस योजना का निर्माण कार्य तकनीकी रूप से कठिन परिस्थिति में है। पुल बनाने की अंतिम तारीख पहले सरकार ने 31 दिसंबर 2017 दी थी। जो निकल गई थी। उसके बाद 30 जून 2018 की गई थी।

कांग्रेस सरकार की विचित्र योजना: आप 

बता दें कि इस योजना के लिए दिल्ली सरकार ने जुलाई 2017 में 100 करोड़ की राशि जारी की थी। जो फरवरी में समाप्त हो गई थी। सूत्रों का कहना है कि पर्यटन निगम ने इस बारे में सरकार को काफी पहले ही अवगत करा दिया था। परियोजना के लिए निर्धारित 1575 करोड़ की राशि में से पर्यटन निगम ने सरकार के पास 231 करोड़ राशि उपलब्ध कराने के लिए प्रस्ताव भेजा था। इससे पहले भी 2017 में फरवरी से लेकर जुलाई तक योजना पर काम इसलिए बंद रहा था। क्योंकि सरकार ने योजना के लिए पैसा जारी नहीं किया था। दिल्ली की 'आप' सरकार इस योजना को पूर्व की कांग्रेस सरकार की विचित्र योजना बता रही थी।

154 मीटर लंबा है परियोजना का मुख्य टावर (पिलर)

आपको बता दें कि योजना पर शीघ्रता से काम पूरा हो सके, इसके चलते इसके काम को 2007 में दो चरणों में बांटा गया था। प्रथम चरण में योजना के मुख्य भाग पर काम किया जा रहा है। यह काम 2010 में शुरू हो सका है। जबकि दूसरे चरण में तिमारपुर की तीन तीन बत्तियों और खजूरी चौक लालबत्ती को सिग्नल फ्री किए जाने के लिए काम शुरू किया गया था। जो पिछले साल पूरा हो चुका है।

योजना के मुख्य बिन्दु

सिग्नेचर ब्रिज परियोजना 2006 में ही अस्तित्व में आ गई थी। उस समय इस पुल पर आने वाले खर्च का अनुमानित बजट 4 करोड़ 59 लाख रखा गया था। फरवरी 2010 में बजट बढ़ाकर 11 सौ 31 करोड़ कर किया गया था आर अब बढ़कर 1575 करोड़ हो चुका है।

योजना क्यों है खास

सिग्नेचर ब्रिज अपने में अलग ब्रिज होगा। ऐसा माना जा रहा है कि इसके बनने के बाद देश विदेश के पर्यटक इसे अद्भुत फ्लाईओवर के रूप में देखने आएंगे। ब्रिज 650 मीटर लंबा होगा। खास बात यह होगी कि ब्रिज के 350 मीटर लंबे हिस्से में कोई पिलर नहीं होगा। जिसका वजन वह टावर रोकेगा जो 154 मीटर ऊंचा बनेगा। फ्लाईओवर को इस टावर से मोटे तारों से रोका जाएगा।

कुतुब मीनार से अधिक होगी पिलर की ऊंचाई 

सिग्नेचर ब्रिज का टावर (मुख्य पिलर) चीन में बनाया गया है। पहले इसे देश में ही बनाए जाने की बात उठी थी। गैमन इंडिया के साथ मिल कर सिग्नेचर ब्रिज की मुख्य योजना पर काम कर रही ब्राजील की कंपनी कंस्त्रूटोरा सिदादे ने इस क्षेत्र में काम कर रही देश की बड़ी स्टील कंपनियों के मना करने पर इसे चीन से बनाने का फैसला लिया गया। टावर का कुल वजन करीब आठ हजार टन है। इसे टुकड़ों में भारत लाया गया है। पिलर की ऊंचाई कुतुब मीनार से करीब दोगुना होगी। 

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