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    Delhi News: दिल्ली की सड़कों के नाम रखने और बदलने का इतिहास, ब्रिटिश शाही खानदान के नाम पर हुए करते थे पहले कभी ये रोड

    By Geetarjun GautamEdited By:
    Updated: Fri, 20 May 2022 03:27 PM (IST)

    वर्ष 1933 में एडवर्ड लुटियंस ने एक भाषण में बताया था कि तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली की सड़कों के लिए ना केवल समबाहु त्रिभुज और समषट्भुज का फार्मूला आजमाया था बल्कि गोल चक्कर की भी योजना चुनी जिससे कई दिशाओं में सड़कें जाती हों।

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    विंष्णु शर्मा (फाइल फोटो), दिल्ली की सड़कों के नाम रखने और बदलने का इतिहास।

    नई दिल्ली [विष्‍णु शर्मा]। नाम...कहानी है। इतिहास है। एक व्यक्तित्व की पहचान और सम्मान है। किसी मार्ग का नाम क्रांतिकारी, बलिदानी, शूरवीरों की कहानी कहता है। उनके सम्मान में देश गौरव की निशानी देता है। सड़कों के नाम में देश का इतिहास, वर्तमान और भविष्य की आकांक्षाओं की झलक होती है। बीते कुछ दिन से दिल्ली की सड़कों से आक्रांताओं के नाम बदलने की आवाज उठ रही है। इसी के साथ दिल्ली के इतिहास में रुचि लेने वालों की दिलचस्पी इस बात में बढ़ गई है कि कैसे रखे गए थे इन सड़कों के नाम? और क्या इससे पहले इनको कभी बदला नहीं गया?

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    वर्ष 1933 में एडवर्ड लुटियंस ने एक भाषण में बताया था कि तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली की सड़कों के लिए ना केवल समबाहु त्रिभुज और समषट्भुज का फार्मूला आजमाया था बल्कि गोल चक्कर की भी योजना चुनी, जिससे कई दिशाओं में सड़कें जाती हों। लार्ड हार्डिंग ने एक और फैसला लिया, एक रास्ता ऐसा बनेगा जो 'पुराना किला' की तरफ जाता हो और दूसरा रास्ता जामा मस्जिद की तरफ जाता हो। एक तरह से हिंदू व मुसलमान दोनों को साधने की तरकीब इसमें छुपी हुई थी। पुराना किला को पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ माना जाता रहा है। हालांकि लुटियंस ने इसकी अपने भाषण में ये कहकर आलोचना की कि वो न्यूयार्क की सड़कों के डिजाइन से बाहर नहीं सोच सका।

    इधर हार्डिंग को मानो उसका ड्रीम मिशन मिल गया था, वैसे ही प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से जो काम चार साल में हो जाना चाहिए था, वो 20 साल से ऊपर चला गया था। हार्डिंग को आर्किटेक्ट्स ने नई दिल्ली की सड़कों की जो चौड़ाई दी थी, वो कुछ जमी नहीं, उसे लगा ये जरूरत से ज्यादा है, सो उसने सोचा कि कुछ और नए बसे शहरों की सड़कों के बारे में पता करना चाहिए। 19 जुलाई 1913 में हार्डिंग ने जयपुर के महाराजा माधो सिंह को एक पत्र लिखकर जयपुर शहर की मुख्य सड़कों की चौड़ाई की जानकारी मांगी।

    जयपुर से मंगाया गया उनका 'टाउन प्लान'-

    महाराजा माधो सिंह ने जवाब में उनको शहर का पूरा प्लान ही भेज दिया और लिखा कि हमारे लिए ये बड़े गर्व की बात है कि जयपुर शहर उस दौर में बना था, जब टाउन प्लानिंग जैसा विषय पल्लवित होना शुरू ही हुआ था। हार्डिंग ने ध्यान से पूरे प्लान को पढ़ा, पाया कि जयपुर की सड़कें 123 से 107 फीट तक विविध चौड़ाइयों वाली थीं। आदेश दिया कि दिल्ली की सड़कें इससे ज्यादा चौड़ी नहीं होनी चाहिए।

    नाम रखने की कहानी

    ये सब तो ठीक है, लेकिन उससे पहले जरूरी था, सड़कों के नाम तय होना। 'न्यू दिल्ली द लास्ट इम्पीरियल सिटी में लेखक डेविड ए जानसन और रिचर्ड वाट्सन लिखते हैं कि इसमें सबसे पहले तरजीह दी गई ब्रिटिश शाही खानदान से जुड़े नामों को। सबसे महत्वपूर्ण सड़क थी गर्वनमेंट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से प्रिंसेस पार्क तक, गौर करने वाली बात है, तब इसे सेंट्रल विस्टा नाम दिया गया था। इसको कहा गया 'किंग्स वे, आज इसे राजपथ कहा जाता है। जो आज जनपथ है, उसे क्वींस वे कहा गया। इसके बाद जिन मुख्य मार्गों पर सरकार के बड़े बड़े अधिकारी रहते थे, उनको शाही खानदान के लोगों के नाम पर रखा गया।

    नामों को बदलने का सिलसिला नया नहीं है, हां, समय परिस्थिति के हिसाब से विवाद जरूर हो सकते हैं। बदलाव का यह सिलसिला तो आजादी के बाद से ही चल रहा है। आज जिसे आप विजय चौक के नाम से जानते हैं, उसका नाम क्वीन एलिजाबेथ के सबसे छोटे बेटे के नाम पर प्रिंस एडवर्ड प्लेस कहा जाता था। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद रोड का पहले नाम था क्वीन विक्टोरिया रोड, जो ब्रिटेन की पूर्व महारानी थीं, पंडित पंत मार्ग का नाम था क्वीन मैरीज एवेन्यू, जो क्वीन एलिजाबेथ की चचेरी बहन थीं मौलाना आजाद रोड किंग एडवर्ड रोड थी, ये क्वीन विक्टोरिया के सबसे बड़े बेटे थे। कनाट प्लेस का नाम ड्यूक आफ कनाट के नाम रखा गया था, जिसे अब बदलकर राजीव चौक कर दिया गया है। ड्यूक आफ कनाट की उपाधि क्वीन विक्टोरिया के तीसरे बेटे आर्थर को दी गई थी।

    तमाम ऐसी सड़कें भी थीं, जो अंग्रेजी गर्वनर जनरलों या वायसरायों के नाम पर भी रखी गईं और कुछ की पत्नियों के नाम पर भी, लेकिन उनमें से भी ज्यादातर के नाम बदल गए, जैसे विलिंगटन रोड मदर टेरेसा क्रीसेंट हो गई, लेडी हार्डिंग रोड शहीद भगत सिंह मार्ग हो गया, लेडी हार्डिंग गवर्नर जनरल हार्डिंग की पत्नी थीं। इरविन मार्ग बाबा खडग़ सिंह मार्ग हो, ज्ञात हो इरविन से ही गांधी जी का समझौता हुआ था, तभी वह लंदन गोलमेज सम्मेलन में गए थे।

    सड़कों का दूसरा घेरा ऐसे लोगों के नाम पर रखा गया, जिन्होंने भारत में ब्रिटेन की सत्ता स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। जैसे क्लाइव, हेस्टिंग्स, खाली ब्रिटेन ही नहीं फ्रांस और पुर्तगाली जनरलों के नाम पर भी रोड्स के नाम रखे गए। बंगाल में अग्रेजों के पहले गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव ने ही अंग्रेजी सत्ता की नींव भारत में रखी थी, हालांकि आज क्लाइव रोड त्यागराज मार्ग हो गया है, हेस्टिंग्स रोड कृष्णा मेनन मार्ग हो गया है, वारेन हेस्टिंग्स फोर्ट विलियम से सरकार चलाने वाला भारत का पहला अंग्रेजी गवर्नर जनरल था। एक फ्रांसीसी जनरल जोसेफ मैराक्विस डूप्ले जो रॉबर्ट क्लाइव के समकक्ष था, के नाम पर बनी रोड का नाम कामराज मार्ग और अफोंसो द अल्बुकर्क रोड अब 30, जनवरी मार्ग हो गई है। अल्बुकर्क ने ही गोवा में पुर्तगाली शासन की नींव रखी थी।

    तमाम ऐसी रोड्स भी थीं, जो अंग्रेजी गर्वनर जनरलों या वायसरायों के नाम पर भी रखी गईं और कुछ की पत्नियों के नाम पर भी. लेकिन उनमें से भी ज्यादातर के नाम बदल गए, जैसे विलिंगटन रोड मदर टेरेसा क्रीसेंट हो गई, लेडी हार्डिंग रोड शहीद भगत सिंह मार्ग हो गया, लेडी हार्डिंग गवर्नर जनरल हार्डिंग की पत्नी थीं। टीपू सुल्तान को हटाने वाले लॉर्ड वेलेजली के नाम वाली रोड जाकिर हुसैन मार्ग हो गई, केनिंग रोड का नाम माधव राव सिंधिया के नाम हो गया। केनिंग 1857 की क्रांति के समय गवर्नर जनरल था।

    इरविन रोड बाबा खड़ग सिंह मार्ग हो गई, इरविन से ही गांधीजी का समझोता हुआ था, तभी वह लंदन गोलमेज सम्मेलन में गए थे। सिविल सेवा खड़ी करने वाले लॉर्ड कार्नवालिस के नाम वाला मार्ग सुब्रमण्यिम भारती मार्ग, डलहौजी रोड दारा शिकोह मार्ग और इन सभी रोड्स का नामकरण करने वाले लॉर्ड हॉर्डिंग के नाम वाली रोड का नाम भी बदलकर तिलक मार्ग किया जा चुका है। लॉर्ड डलहौजी देसी राज्य हड़पने के लिए मशहूर था।

    तीसरा घेरा वो बना, जिन रोड्स पर क्लर्कों जैसा निचला स्टाफ रहता था, उनके नाम मिलिट्री जनरलों के नाम पर रखे गए थे। इनमें दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट लुटियंस और चीफ कमिश्नर हेली के नाम पर भी बनीं रोड्स शामिल हैं। वेलिंगटन और यॉर्क रोड शायद ब्रिटेन के टाउन्स के नाम पर रखी गई थीं।

    तुगलक रोड का नाम गुरु गोविंद सिंह करने की मांग

    दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) के चेयरमैन को पत्र लिखा उनका कहना है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद भी राजधानी की सड़कों व गांवों के नाम विदेशी आक्रांताओं के नाम पर हैं। यह गुलामी का प्रतीक है और इसे बदलने की जरूरत है। 40 गांवों के लोग अपने गांव का नाम बदलकर महापुरुषों के नाम पर रखने की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर राज्य सरकार को आवेदन भी भेजा गया है। सरकार को जल्द इस संबंध में फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि तुगलक रोड का नाम देश व धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले गुरु गोविंद सिंह जी के नाम पर रखा जाना चाहिए। गत दिवस महाराणा प्रताप की जयंती थी।

    अकबर रोड का नाम बदलकर इनके नाम पर रखा जाना चाहिए। औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है। लेकिन आज भी औरंगजेब लेन मौजूद है। इस लेन का नाम भी डा. एपीजे अब्दुल कलाम लेन किया जाना चाहिए। उन्होंने बाबर रोड का नाम बदलकर खुदीराम बोस रोड, हुमायूं रोड का नाम महर्षि वाल्मीकि रोड और शाहजहां रोड का नाम जनरल बिपिन रावत रोड रखने की मांग की।

    उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के 75 वें साल पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इस अवसर पर राजधानी की सड़कों के नाम देश के महापुरुषों के नाम पर रखने का फैसला किया जाना चाहिए। इससे नई पीढि़ को प्रेरणा मिलेगी।