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    Delhi में 25 साल पुराने सिस्टम के भरोसे वाहनों की प्रदूषण जांच व्यवस्था, फरीदाबाद में ऐसे हो रहा बड़ा खेल

    Updated: Mon, 07 Jul 2025 10:31 AM (IST)

    दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर चिंता बनी हुई है। सरकार ने पुराने वाहनों पर रोक लगाई है लेकिन प्रदूषण जांच अभी भी पुराने तरीके से हो रही है। जांच में गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है जिससे प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को भी प्रमाणपत्र मिल जाता है। कुछ पीयूसी सेंटर ज्यादा पैसे लेकर गलत तरीके से प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं।

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    25 साल पुराने सिस्टम के भरोसे दिल्ली में वाहनों की प्रदूषण जांच की व्यवस्था।

    नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर हाय तौबा मची हुई है। सरकार द्वारा तय अवधि पूरी कर चुके वाहनों को पेट्रोल पंपों से पेट्रो पदार्थ देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह कवायद इसलिए हो रही है कि 10 वर्ष पुराने डीजल और 15 वर्ष पुराने पेट्रोल के वाहन अधिक प्रदूषण फैलाते हैं।

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    हालांकि, आम लोगों की नाराजगी के बाद सरकार ने उक्त निर्णय को वापस लेने का मन बना लिया है। इन सबके बीच दिल्ली में वाहनों में प्रदूषण जांचने की व्यवस्था वही 25 वर्ष पुराने सिस्टम से हो रही है। पुराने सिस्टम के साथ ही जांच में मानव हस्तक्षेप के चलते तय उम्र से पहले के वाहनों के प्रदूषण फैलाने के बावजूद रिपोर्ट गलत आने की आशंका रहती है।

    वहीं, दैनिक जागरण की पड़ताल में कुछ सेंटरों पर इससे संबंधित खामिया मिली। अधिक धन लेकर मानक नहीं पूरी करने वाले वाहनों को भी पीयूसी प्रमाणपत्र दे दिया गया।

    दिल्ली में वर्ष 2000 में प्रदूषण जांच को अनिवार्यता किया गया है। इसके लिए पेट्रोल पंपों समेत अन्य स्थानों पर पीयूसी (प्रदूषण नियंत्रण में) केंद्र स्थापित किए गए हैं। मौजूदा समय में दिल्ली में करीब एक हजार पीयूसी सेंटर संचालित हो रहे हैं। दिल्ली में औसतन प्रतिदिन 50 हजार से अधिक वाहनों की जांच होती है। इस सेंटरों में 644 पेट्रांल पंप तो बाकि वर्कशाप्स, सर्विस सेंटर और अन्य सार्वजनिक जगहों पर बने हुए हैं।

    मामले के जानकारों के अनुसार, ये पीयूसी सेंटर गैस एनालाइजर मशीन (जीएएम) आाधारित हैं, जो काफी पुराने हैं। साथ ही इसके संचालन के मानव हस्तक्षेप है, जिसमें गड़बड़ी होती है। जबकि कई देश में,रिमोट सेंसिंग तकनीक के साथ ही लेजर व सेंसर आधारित जांच व्यवस्था है। जो पूरी तरह से स्वत: संचालित है, जिसमें गड़बड़ियों की आशंका न के बराबर रहती है। अमेरिका व यूरोपीयन संघ में ओबीडी तकनीक से जांच की जाती है। यह तकनीक वाहनों में ही व्यवस्थित रहती है। इसे हाल ही में भारत में हाल ही में अनिवार्य किया गया है।

    इस मामले में दिल्ली पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन (डीपीडीए) के अध्यक्ष निश्चल सिंघानिया के अनुसार, पीयूसी सेंटरों की जांच प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता है। क्योंकि, ये करीब 25 वर्ष पुरानी तकनीक है, जबकि उसके बाद से इस क्षेत्र में काफी उन्नति आ गई है। जो मानव हस्तक्षेप रहित है। उनके अनुसार, इसके लिए विश्व के बेहतर व्यवस्था का अध्ययन करना चाहिए। फिर उसे लागू किया जाना चाहिए। हालांकि, नए उपकरणों का बोझ पेट्रोल पंप संचालकों को ही वहन करना होगा।

    दैनिक जागरण की पड़ताल में पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी गोलचक्कर के पास स्थित पेट्रोल पंप के पीयूसी सेंटर के कर्मी 200 वसूल कर जांच में फेल वाहन को पीयूसी थमाते मिले।

    फरीदाबाद में ऐसे हो रहा जांच के नाम पर खेल

    फरीदाबाद में वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट बनाने के नाम पर खेल हो रहा है। जिले में 100 से अधिक पीयूसी सेंटर है, जिनमें से कुछ के संचालक 100 से 150 रुपये अतिरिक्त लेकर बिना वाहन जांच के प्रमाणपत्र बना दे रहे हैं। इसी तरह, अगर जांच के दौरान वाहन ज्यादा धुआं दे रही होती है तो साइलेंसर में जांच स्टिक को थोड़ा ही डाला जाता है, ताकि उत्सर्जन स्तर कम आए। इसी तरह, उसे रेस नहीं दिया जाता। इसी तरह, यदि गाड़ी काफी ज्यादा धुआं भी दे रही होती है तो दूसरी गाड़ी के साइलेंसर में स्टिक डालकर जांच पूरी कर ली जाती है।