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    Delhi: फैक्ट्री मालिकों ने बच्चों को बनाया मजदूर, करवा रहे थे 12 घंटे काम; NGO के साथ पुलिस ने छुड़ाया

    बाहरी दिल्ली के कंझावला औद्योगिक क्षेत्र के कुछ फैक्ट्री मालिक इतने बेशर्म हैं कि मुनाफा कमाने के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। वह अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने के लिए दूसरों के बच्चों को अंधकार में धकेल रहे हैं।

    By Sonu RanaEdited By: GeetarjunUpdated: Wed, 22 Mar 2023 06:57 PM (IST)
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    फैक्ट्री मालिकों ने बच्चों को बनाया मजदूर, करवा रहे थे 12 घंटे काम; NGO के साथ पुलिस ने छुड़ाया

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। बाहरी दिल्ली के कंझावला औद्योगिक क्षेत्र के कुछ फैक्ट्री मालिक इतने बेशर्म हैं कि मुनाफा कमाने के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। वह अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने के लिए दूसरों के बच्चों को अंधकार में धकेल रहे हैं। जिस उम्र में बच्चों के हाथ में किताबें, कलम होनी चाहिए, उस उम्र में उनके हाथों में हथौड़े पकड़ा दिए जा रहे हैं।

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    इस वजह से बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं और उनका जीवन ऐसे ही कामों में बीतता है। उनका परिवार कभी भी गरीबी से बाहर नहीं निकल पाता।

    एसडीएम कंझावला कार्यालय की टीम पुलिस व एनजीओ की मदद से कई बार बाल श्रमिकों को फैक्ट्रियों से मुक्त करवा चुकी है, लेकिन फैक्ट्री मालिक फिर से बच्चों को काम पर रख लेते हैं व उनसे खतरनाक परिस्थितियों में काम करवाया जाता है।

    एसडीएम कंझावला की टीम ने बुधवार को कई टीमों के साथ मिलकर अभियान चलाया। इस दौरान अलग-अलग फैक्ट्रियों से दर्जनों बाल श्रमिकों को बचाया गया। कंझावला के तहसीलदार राम कुमार खुद पुलिस व सिविल डिफेंस कर्मियों को लेकर कंझावला औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों में पहुंची टीम के साथ थे।

    जिस भी फैक्ट्री से बाल श्रमिक मिल रहे थे उन्हें तुरंत गाड़ी में बैठाकर एसडीएम कार्यालय भिजवा दिया जा रहा था व फैक्ट्री को सील कर दिया जा रहा था। इन फैक्ट्रियों में बच्चे रोज दस से बारह घंटे तक काम करवाया जाता है।

    महामारी के दौरान भी करवाया जाता था काम

    जिस समय लोग अपनों को हाथ लगाने से डर रहे थे।अपनों का अंतिम संस्कार भी करने से मना कर रहे थे। उस समय भी कंझावला औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों में बच्चों से काम करवाया जाता था।उनकी जान जोखिम में डालकर फैक्ट्री मालिक मुनाफा कमा रहे थे। कोरोना महामारी के दौरान बाल श्रमिकों से मेडिकल वेस्ट की सफाई करवाई जा रही थी।

    खून से सनी सीरिंज, कैनुला, पीपीटी किट बच्चे से अलग अलग करवाते थे, जिससे यह तय है कि उन्हें बच्चों के स्वास्थ्य से कोई लेना-देना नहीं रहा है। उनकी तत्कालीन एसडीएम सौम्या शर्मा ने उस समय उस फैक्ट्री में काम करने वाले बच्चों को बचाया था व फैक्ट्री को सील किया था। उन बच्चों से 15-15 घंटे काम करवाया जाता था व एक घंटे के तीन रुपये दिए जाते थे।

    बच्चों को कमरे में बंद कर लगा दिया जाता है ताला

    औद्योगिक क्षेत्र के सूत्रों के अनुसार, कंझावला औद्योगिक क्षेत्र के फैक्ट्री मालिकों के वाट्सएप पर ग्रुप बने हुए हैं।श्रम विभाग की टीम जब भी छापे मारने आती है तो वाट्सएप ग्रुप पर उस फैक्ट्री मालिक द्वारा इसकी जानकारी साझा कर दी जाती है।

    इसके बाद जिन भी फैक्ट्रियों में बाल श्रम करवाया जा रहा होता है वह बच्चों को फैक्ट्रियों में बने कमरों में छिपा देते हैं और बाहर से ताला लगा देते हैं।इसके अलावा जब तक टीम एक फैक्ट्री में छापेमारी करती है व उसे सील करती है, तब तक दूसरी फैक्ट्रियों में काम करने वाले बच्चों को फैक्ट्रियों से बाहर भेज दिया जाता है।