Delhi Old Vehicle Ban: दिल्ली में इन वाहनों पर से हटे बैन, लोगों ने सरकार से की अपील
दिल्ली में पुराने वाहनों को लेकर संशय और नाराजगी है। लोग दिल्ली सरकार से बेहतर रखरखाव वाले वाहनों को प्रतिबंध से बाहर रखने की नीति बनाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण के अन्य कई कारण हैं और पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाना दिल्ली वालों को प्रताड़ित करने जैसा है। कई लोगों की रोजी-रोटी वाहनों से जुड़ी है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अवधि पूरी कर चुके वाहनों को पेट्रो पदार्थ न देने के मामले में भले ही दिल्ली सरकार का रुख दो दिन बाद ही बदल गया हो और आदेश को वापस लेने के प्रयास तेज कर दिए गए हो, लेकिन इसे लेकर दिल्ली वालों में संशय और नाराजगी बरकरार है।
उन्हाेंने इस मामले में अन्य राज्यों की तरह दिल्ली सरकार से पुराने वाहनों को लेकर स्पष्ट नीति बनाने की मांग की है। जिसमें बेहतर रखरखाव वाली अवधि पूरी कर चुके वाहनों को इस प्रतिबंध के दायरे से बाहर रखने की मांग शामिल है।
यह इसलिए भी क्योंकि अभियान ने मध्यमवर्गीय व निम्न मध्यमवर्गीय दिल्ली के समाज में इस अभियान ने बड़ी चिंता पैदा की है, जो न सिर्फ 10 वर्ष डीजल व 15 वर्ष के पेट्रोल वाहनों को लेकर बल्कि उन वाहनों के लिए भी है जो इस उम्र मियाद के आसपास हैं। और कुछ वर्ष में उनपर भी दिल्ली की सड़कों से बाहर जाने का संकट आ जाएगा।
दिल्ली के करीब ढाई हजार आरडब्ल्यूए के फेडरेशन यूनाईटेड रेजिडेंट ज्वाइंट एक्शन (ऊर्जा) के अध्यक्ष अतुल भार्गव ने कहा कि यह पूरा अभियान अपनी नाकामियों को दिल्ली वालों के सिर फोड़ने और सजा देने का प्रयास है। जबकि, प्रदूषण के और भी कारण है।
कूड़े का ढेर, गंदगी के साथ ही उद्योग से होने वाला प्रदूषण तथा पड़ोसी राज्यों में जलने वाला पराली समेत अन्य कारक हैं, जिससे दिल्ली में वायु प्रदूषण होता है। उसपर शासन-प्रशासन द्वारा तो राेक नहीं लगाई जा रही है। उल्टे दिल्ली वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कई निजी कारें ऐसी है, जो काफी कम चली है और उसकी स्थिति काफी बेहतर है। उसके मालिक उसका रखरखाव बेहतर तरीके से रख रखे हैं और कारों के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पीयूसी) भी है। बहुत सारे परिवार ऐसे है, जिन्होंने वर्षों से बचत में एक गाड़ी ली और उससे उनका भावनात्मक लगाव है।
वह उसके रोजीरोटी से भी जुडी है, लेकिन उन्हें सड़कों पर नहीं चलने दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अभियान शुरू होने से पहले इस संबंध में ऊर्जा द्वारा दिल्ली सरकार को पत्र लिखा गया था तथा मांग की गई थी कि अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी ऐसे वाहनों के लिए नीति लाई जाए।
आरडब्ल्यूए के एक अन्य फेडरेशन यूनाईटेड रेजिडेंट आफ दिल्ली (यूआरडी) के महासचिव सौरभ गांधी के अनुसार, पूर्व में केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने भी इस संबंध में नीति बनाने को को कहा था, जिसमें वाहनों की फिटनेस जांच के बाद पांच वर्ष और चलनेे की अनुमति देने का प्रविधान है।
दिल्ली पेट्रो डीलर्स एसोसिएशन (डीपीडीए) के अध्यक्ष निश्चल सिंघनिया ने कहा कि बेहतर फिटनेस वाले वाहनों को इस दायरे से बाहर लाना चाहिए। इसके लिए स्पष्ट नीति की आवश्यकता है।
फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन (फेस्टा ) के महासचिव राजेंद्र शर्मा के अनुसार, कई लोगों की रोजी रोटी वाहनों से जुड़ी हुई है। इसलिए प्रतिबंध लगाते समय यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए।
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