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    Delhi: इस बार सामान्य से कम होगी मानसूनी बरसात, अल नीनो के प्रभाव से 60 प्रतिशत तक अधिक सूखा रहने की संभावना

    By sanjeev GuptaEdited By: Abhi Malviya
    Updated: Fri, 17 Feb 2023 04:11 AM (IST)

    इस साल सर्दियों के बाद मानसून में भी बरसात सामान्य से कम रह सकती है। अल नीनो के प्रभाव से देश में 60 प्रतिशत तक अधिक सूखा पड़ने की आशंका जताई गई है। संभावना है कि वर्षा 30 प्रतिशत तक घट सकती है।

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    अल नीनो के प्रभाव से 60 प्रतिशत तक अधिक सूखा और 30 फीसदी कम वर्षा की संभावना

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। इस साल सर्दियों के बाद मानसून में भी बरसात सामान्य से कम रह सकती है। अल नीनो के प्रभाव से देश में 60 प्रतिशत तक अधिक सूखा पड़ने की आशंका जताई गई है। संभावना है कि वर्षा 30 प्रतिशत तक घट सकती है। मौसम विभाग ने भी इससे इन्कार नहीं किया है। उम्मीद जताई है कि अप्रैल महीने में जब दूसरा पूर्वानुमान आएगा तो स्थिति में सुधार हो सकता है।

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    नेशनल ओशेयनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने पूर्वानुमान जारी किया है। मौसम विज्ञानियों के लिए चिंता इसकी है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े अधिकांश माडल बता रहे हैं कि अल नीनो का प्रभाव मई-जुलाई के दौरान वापसी कर सकता है। यह अवधि गर्मी और मानसून के मौसम को आपस में जोड़ती है। मानसून जून से सितंबर के बीच सक्रिय रहता है। ऐसे में इसका सीधा प्रभाव मानसून पर पड़ेगा और सूखा पड़ने के आसार बन सकते हैं।

    क्या है अल नीनो?

    आइआइटीएम, पुणे के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ राक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं कि ला नीना और अल नीनो दो प्रक्रिया हैं। ला नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्मी को सोख लेता है। इससे पानी का तापमान बढ़ता है। यही गर्म पानी अल नीनो के प्रभाव के दौरान पश्चिमी प्रशांत महासागर से पूर्वी प्रशांत महासागर तक प्रवाहित होता है। ला नीना के तीन दौर गुजरने का मतलब ही है कि गर्म पानी की मात्रा चरम पर है। ऐसे में पूरी संभावना है कि अल नीनो प्रभाव मजबूत रहेगा। वसंत के मौसम में ही इसके कुछ संकेत महसूस भी होने लगे हैं।

    अल नीनो और दक्षिण पश्चिम मानसून में संबंध

    गर्मी के मौसम में अल नीनो होने पर सूखा पड़ने की आशंका लगभग 60 प्रतिशत तक अधिक होती है। इस दौरान 30 प्रतिशत तक सामान्य से कम बरसात होने की संभावना रहती है। जबकि सामान्य वर्षा की मात्रा 10 प्रतिशत ही रहती है। इस साल जनवरी-फरवरी में भी वर्षा 30 प्रतिशत तक कम रही है। हालांकि इसका कोई निश्चित नियम नहीं होता।

    दो दशक के दौरान अल नीनो का मानसून पर असर

    2009 से 2019 के बीच चार बार सूखा पड़ा। 2002 में वर्षा की मात्रा में 19 प्रतिशत, जबकि 2009 में 22 प्रतिशत की गिरावट हुई थी। ये दोनों वर्ष गंभीर सूखे में गिने गए। 2004 और 2015 में भी बरसात में 14-15 प्रतिशत की गिरावट आई। ये दोनों साल भी सूखे के गवाह बने। बीते 25 साल में सिर्फ 1997 में अल नीनो के प्रभाव के बावजूद 102 प्रतिशत वर्षा हुई।

    अल नीनो का पूर्वानुमान अगले नौ महीनों के लिए उपलब्ध है। हालांकि चार महीने से अधिक समय के लिए माडल की सटीकता आमतौर पर कम रहती है। बावजूद इसके अल नीनो का बीता रिकार्ड खराब दक्षिण पश्चिमी मानसून का एक सबूत है।

    -जीपी शर्मा, अध्यक्ष, मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, स्काईमेट वेदर

    एनओएए और जलवायु परिवर्तन से जुड़े माडलों में मानसून के कमजोर रहने का पूर्वानुमान है। इसकी सटीकता को लेकर संदेह रहता है। अप्रैल में जब दूसरा पूर्वानुमान आएगा तो वह सटीकता के ज्यादा आसपास होगा।

    -डा. मृत्युंजय महापात्रा, महानिदेशक, भारत मौसम विज्ञान विभाग