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    Delhi News: छह दशकों में पूरी तरह से बदल गया दक्षिणी दिल्‍ली का पाश इलाका वंसत विहार

    By Ramesh MishraEdited By: Nitin Yadav
    Updated: Fri, 10 Feb 2023 02:00 PM (IST)

    नई दिल्ली स्थित लुटियन जोन के बाद दक्षिणी दिल्‍ली का वसंत विहार वीवीआइपी या पाश इलाका है। 1960 के दशक में स्‍थापित इस कालोनी में 1500 प्‍लाट थे लेकिन अब इस कालोनी में लाखों लोग रहते हैं। आइए जानते हैं कालोनी की विकास यात्रा में कैसे और क्‍या बदलाव आया?

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    छह दशकों में पूरी तरह से बदल गया दक्षिणी दिल्‍ली का पाश इलाका वंसत विहार। फोटो सोर्स- जागरण फोटो।

    रमेश मिश्र, नई दिल्‍ली। दक्षिणी दिल्‍ली का वसंत विहार क्षेत्र नई दिल्‍ली के लुटियन जोन के बाद यह इलाका दिल्‍ली का सबसे वीवीआइपी या पाश इलाका है। आम लोगों को दूर से देखने में ऐसा लगता है कि यहां किसी तरह की समस्‍या नहीं होगी, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह क्षेत्र समस्‍याओं से मुक्‍त है।

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    बावजूद इसके यहां के लोग अपनी कालोनी पर इतराते हैं। आखिर इस कालोनी की नींव कब पड़ी, कैसे पड़ी? इसकी विकास यात्रा में कैसे और क्‍या बदलाव आया? 1960 के दशक में स्‍थापित इस कालोनी में 1500 प्‍लाट थे। यहां की आबादी सीमित थी, लेकिन बाद के दशकों में यहां की आबादी तेजी से बढ़ी। इसके चलते चुनौतियां भी बढ़ी।

    1960 के दशक में इस कालोनी की नींव पड़ी

    1960 के दशक में इस सोसाइटी की नींव पड़ी। यह एक गर्वनमेंट सर्वेंट बिल्डिंग सोसाइटी है। उस वक्‍त इसमें महज 1500 प्‍लाट थे। सोसाइटी में जब इसकी मेंबरशिप खुली थी, तब सरकारी सेवा में तैनात शीर्ष लोग या सेना के उच्‍च अधिकारी ही इसमें आवदेन कर सकते थे। गैर सरकारी लोग इसके पात्र नहीं थे। करीब 1500 प्‍लाट आवंटित किए गए थे। इसमें अधिकतर सचिव व सेना के शीर्ष अफसर थे। हालांकि, अब इसका स्‍वरूप पूरी तरह से बदल गया है। आज इसमें अफसरों के साथ पूंजीपतियों की भी रिहायस है। पास इलाके के कारण यह इलाका एम्बेसी को भी खूब भाता है। एक दर्जन से अधिक एम्बेसी इस इलाके में हैं।

    शुरू से ही दो संस्‍थाएं अस्तित्‍व में आई

    सामान्‍तय: किसी भी सोसाइटी में एक ही संस्‍था सारा विकास कार्य देखती है, लेकिन वसंत विहार में शुरू से ही दो संस्‍थाएं सामांतर अस्तित्‍व में आई। एक रजिस्‍टार आफ कोआपरेटिव सोसाइटी थी, दूसरा वीवीडब्‍ल्‍यूए थी। दरअसल, यहां की जमीन डीडीए की थी। यह पूरी तरह से लीज की भूमि थी। दो संस्‍थाओं को खोलने के पीछे सीनियर अफसरों की यह धारणा थी कि सोसाइटी के लोग जमीन का कार्य देखेंगे और आरडब्‍ल्‍यूए कल्‍याणकारी योजनाओं से जुड़ा काम देखेगी। उस वक्‍त सोसाइटी प्‍लाट होल्‍डरों से लीज की फीस एकत्र करती थी और उसको डीडीए में जमा करती थी। निर्माण का कार्य भी सोसाइटी के जिम्‍मे आया। इस तरह से सरकारी काम सोसाइटी के हिस्‍से में आया और गैरसरकारी काम आरडब्‍ल्‍यूए के पास था। आज भी दोनों संस्‍थाएं पृथक होते हुए भी वंसत विहार के विकास के मामले में पूरी तरह एकजुट हैं।

    कालोनी में जल आपूर्ति की दो व्‍यवस्‍था

    यहां 2000 गज से 250 गज के प्‍लाट हैं। शुरुआत में कोई प्‍लाट डेढ़ फ्लोर से ज्‍यादा नहीं था। 90 फीसद प्‍लाट तो एक ही फ्लोर के थे। यहां हर प्‍लाट में छोटे-छोटे गार्डन थे। वंसत विहार दिल्‍ली में पानी की आपूर्ति दो तरीके से होती है। यह भी दावा किया गया कि दिल्‍ली की यह पहली कालोनी है, जहां अनफ‍िल्‍टर पानी की आपूर्ति सोसाइटी द्वारा की जाती है। सोसाइटी के पास करीब एक दर्जन अपने ट्युबेल है। इसके लिए अंडर ग्राउंड पाइपलाइन का जाल बिछाया गया है।

    अनफ‍िल्‍टर पानी को पाइपलाइन के जरिए प्रत्‍येक घरों से जोड़ा गया है। कालोनी के लोग दिल्‍ली जल बोर्ड द्वारा फ‍िल्‍टर वाटर को अपने लान में लगे पौधों में प्रयोग नहीं करते हैं। इसके अतिरिक्‍त कारपेंटर, पेंटर, इलेक्‍ट्रीशियन की भी व्‍यवस्‍था सोसाइटी देखती है। पौधारोपण, पार्को का और अन्‍य कार्य आरडब्‍ल्‍यूए करती है।

    बढ़ी आबादी का दबाव संसाधनों पर

    वंसत विहार के रजिस्‍टार आफ कोआपरेटिव सोसाइटी के अध्‍यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने बताया कि इन छह दशकों में अब सब कुछ बदल गया है। 1500 प्‍लाटों पर बनी ये कालोनी में अब हजारों नहीं बल्कि एक लाख से ऊपर लोग रहते हैं। जाहिर है कि बढ़ी आबादी का दबाव संसाधनों पर भी पड़ा है। इसके चलते कालोनी में कई तरह की चुनौतियां भी बढ़ी हैं। हालांकि, उन्‍होंने कहा कि इसके बावजूद हमारी कालोनी में अनेक ऐसी सुविधाएं हैं, जो अनयंत्र कहीं नहीं मिलती है।

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