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    मरीजों को जीवन देने वाले डॉक्टर क्यों हो रहे तनाव से ग्रस्त? सामने आई चौंकाने वाली वजह

    Updated: Tue, 01 Jul 2025 06:27 AM (IST)

    चिकित्सक दिवस पर खुलासा हुआ है कि रेजिडेंट डॉक्टर्स मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। पढ़ाई शोध और लंबी ड्यूटी के घंटे उन्हें तनावग्रस्त करते हैं जिसके कारण कई बार वे आत्महत्या तक करने की सोचते हैं। एनएमसी के सर्वे में यह बात सामने आई है कि कई डॉक्टर्स को साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता। डॉक्टरों को अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।

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    रेजिडेंट डॉक्टरों में मानसिक तनाव बढ़ रहा है।

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। डॉक्टरों को दूसरा भगवान कहा जाता है। मरीज को बचाने के लिए वे अपनी पूरी दक्षता लगा देते हैं, लेकिन डॉक्टरों में भी मानसिक तनाव व अवसाद बढ़ रहा है। खासतौर पर रेजिडेंट डॉक्टर इससे अधिक पीड़ित होते हैं।

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    पढ़ाई व शोध के दबाव के बीच मरीजों के इलाज के लिए ड्यूटी के अधिक घंटे, सप्ताह में आराम करने के लिए एक दिन भी अवकाश नहीं मिल पाना इत्यादि तनाव का कारण बन रहा है। मानसिक तनाव के कारण करीब एक तिहाई रेजिडेंट डॉक्टर अपने जीवन में कभी न कभी आत्महत्या करने के बारे में भी सोचने लगते हैं।

    तनाव से पीड़ित होते हैं 50 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टर

    राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा कराए गए एक सर्वे में भी यह बात सामने आ चुकी है। ऐसे में वरिष्ठ डॉक्टरों का कहना है कि डॉक्टरों को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी जरूरी है।

    डॉक्टर बताते हैं कि मेटा एनालिसिस स्टडी में पाया गया है कि 50 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टर कभी न कभी तनाव व अवसाद से पीड़ित होते हैं। इस वजह से रेजिडेंट डॉक्टरों के संगठन रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए काम के घंटे निर्धारित करने की मांग करते रहे हैं।

    सप्ताह में करना पड़ता है 60 घंटे से ज्यादा काम

    मेडिकल के छात्रों व रेजिडेंट डॉक्टरों में बढ़ती मानसिक परेशानी के मद्देनजर एनएमसी ने एक आनलाइन सर्वे कराया था जिसमें 37 हजार से अधिक एमबीबीएस के छात्रों, मेडिकल स्नातकोत्तर (पीजी) रेजिडेंट डॉक्टर व फैकल्टी शामिल हुए थे। जिसमें 45 प्रतिशत पीजी रेजिडेंट डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करना पड़ता है।

    56 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता। 30 प्रतिशत पीजी रेजिडेंट डॉक्टर पढ़ाई को लेकर भी तनाव में रहते हैं। 15.3 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टरों ने बताया कि जांच में उन्हें मानसिक बीमारी की पहचान हुई।

    एक वर्ष भीतर 10.6 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टरों ने आत्महत्या के बारे में सोचा था और 4.4 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टरों ने प्रयास भी किया था। इस सर्वे में 31.23 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें जीवन में कभी न कभी आत्महत्या करने के बारे में भी सोंचा। फैकल्टी स्तर के 65.9 प्रतिशत डॉक्टरों ने भी मध्यम से गंभीर स्तर के तनाव की बात कही।

    फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) इंडिया के अध्यक्ष डॉ. अविरल माथुर ने कहा कि रेजिडेंट डॉक्टरों को सप्ताह में 70-72 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। खाना खाने का समय भी मुश्किल से मिल पाता है। इसका एक बड़ा कारण अस्पतालों में मरीज ज्यादा व डॉक्टर कम होना है। सर्जरी, गायनी, मेडिसिन, एनेस्थीसिया, आर्थोपेडिक व पीडियाट्रिक विभाग के रेजिडेंट डॉक्टरों पर दबाव अधिक होता है।

    एनएमसी के समक्ष यह बात रखी थी कि सप्ताह में 48 से 60 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाना चाहिए। एम्स के आरडीए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. इंद्र शेखर प्रसाद ने कहा कि डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है। इस समस्या के समाधान के लिए डॉक्टरों को अब भी एक केंद्रीय कानून का इंतजार है।

    इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल ने कहा कि अधिक मरीजों के इलाज में अधिक व्यस्तता के कारण कई बार डॉक्टर अपने स्वास्थ्य का ही ध्यान नहीं रखते। डॉक्टरों को अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।