Delhi News: मोदी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति बरकरार, पहली बार आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रवाधान
आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की जीरो टालरेंस नीति का असर औपनिवेशिक कानूनों की जगह लेने वाले कानूनों में भी दिखा है। आइपीसी की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया। भारत की एकता अखंडता और संप्रभुता को चोट पहुंचाने के प्रयास के साथ देश को आर्थिक रूप से अस्थिर करने का प्रयास भी आतंकी कृत्य में शामिल है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की जीरो टालरेंस नीति का असर औपनिवेशिक कानूनों की जगह लेने वाले कानूनों में भी दिखा है। आइपीसी की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया। भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चोट पहुंचाने के प्रयास के साथ देश को आर्थिक रूप से अस्थिर करने का प्रयास भी आतंकी कृत्य में शामिल है।
इन कानूनों से जुड़े विधेयकों पर संसद के दोनों सदनों में अमित शाह ने साफ किया था कि आतंकवाद को परिभाषित करने और भारतीय न्याय संहिता में इसे कवर करने से आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकेगी।
आतंकवाद के खिलाफ जिस मौजूदा गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) में कार्रवाई की जाती है, उसमें इसे परिभाषित नहीं किया गया है। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र भी अभी तक आतंकवाद को सर्वमान्य रूप से परिभाषित नहीं कर पाया है और भारत लंबे समय से इसे परिभाषित करने की मांग कर रहा है ताकि किसी भी तरह से आतंकवाद के खिलाफ पूरी दुनिया में एक समान कार्रवाई सुनिश्चित हो।
जाहिर है आतंकवाद के सभी स्वरूपों को व्यापक रूप से परिभाषित कर भारत ने संयुक्त राष्ट्र को भी दिशा दिखाने का काम किया है। आतंकवाद में आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक का प्रविधान है। इसमें इस कड़े कानून के दुरुपयोग को रोकने का भी पुख्ता इंतजाम है।
इसके तहत एसपी या उससे उच्च स्तर का अधिकारी ही तय करेगा कि आतंकी कृत्य में यूएपीए या भारतीय न्याय संहिता में से किस कानून में एफआइआर दर्ज हो। आतंकवाद के खिलाफ विशेष यूएपीए कानून के होते हुए आपराधिक कानूनों में इसे शामिल किए जाने की विपक्ष की आपत्ति का जवाब देते हुए अमित शाह ने साफ किया था कि कई मामलों में आरोपितों को बचाने के लिए पुलिस यूएपीए के तहत केस दर्ज करने के बजाय सामान्य आइपीसी कानून के तहत केस दर्ज कर लेती थी। इससे आतंक के आरोपित कड़ी सजा से बच जाते थे।
भारतीय न्याय संहिता में इसे शामिल करने के बाद उनका बचना संभव नहीं। भारतीय न्याय संहिता को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को भी ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसमें आतंकी अपराधों की शृंखला भी शामिल है और इसमें सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना भी अपराध है। जिन कृत्यों से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का विनाश या उसे नुकसान होता है, वे भी उसके तहत आते हैं।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 113 में आतंकवाद की व्यापक परिभाषा दी गई है, जो कहती है कि जो कोई भी भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने या भारत या किसी अन्य देश के लोगों या किसी भी वर्ग में आतंक फैलाने के इरादे से या आतंक फैलाने का कोई कार्य करता है।
बम डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थ या ज्वलनशील पदार्थ या आग्नेयास्त्रों या अन्य घातक हथियारों या जहरीली या हानिकारक गैसों या अन्य रसायनों या किसी अन्य पदार्थ (चाहे जैविक, रेडियोधर्मी, परमाणु या अन्य) का उपयोग करके या किसी भी प्रकृति के किन्हीं अन्य साधनों का उपयोग करके ऐसा कोई कार्य करता है जिससे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है या उन्हें क्षति होती है या होने की आशंका है संपत्ति की हानि, क्षति या विनाश होता है या होने की आशंका है।
भारत या विदेश में किसी समुदाय के जीवन के लिए अनिवार्य आपूर्ति या सेवाओं में विघ्न होता है या होने की आशंका है जाली भारतीय कागजी मुद्रा या सिक्के के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन के माध्यम से भारत की आर्थिक स्थिरता को नुकसान पहुंचाता है या नुकसान पहुंचाने की आशंका है। भारत सरकार, राज्य सरकार या उनकी किसी एजेंसी के किन्हीं प्रयोजनों के संबंध में भारत या उसकी रक्षा के लिए उपयोग की जाने वाली वाली किसी संपत्ति का नुकसान या विनाश होता है या इसकी आशंका है।
आपराधिक बल का प्रदर्शन या ऐसा करने का प्रयास करके किसी पदाधिकारी की मौत का कारण बनता है या किसी लोक पदाधिकारी की मौत का प्रयास करता है या किसी व्यक्ति का अपहरण करता है और ऐसे व्यक्ति को मारने या चोट पहुंचाने की धमकी देता है या भारत सरकार, राज्य सरकार या किसी अन्य देशी की सरकार या अंतरराष्ट्रीय संगठन या अंतर-सरकारी संगठन को कोई कार्य करने या उससे दूर रहने को मजबूर करने के लिए कोई कार्य करता है, तो वह आतंकवादी कार्य माना जाता है।
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