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    Delhi MCD Merger: दिल्ली के तीनों नगर निगमों का एकीकरण, फैसला एक लाभ अनेक

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 25 Mar 2022 10:36 AM (IST)

    Delhi MCD Merger देश की राजधानी दिल्ली में पांच नगर निगम सेवा में हैं। हालांकि दिल्ली कैंट बोर्ड और नई दिल्ली नगर निगम का क्षेत्रफल बहुत ही कम है और अधिकांश क्षेत्रफल में उत्तरी दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम आते हैं।

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    तीनों नगर निगमों को फिर से एकीकृत करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है।

    मनु त्यागी। Delhi MCD Merger बड़े बुजुर्ग गलत नहीं कहते थे कि जितनी बड़ी चादर हो पांव उतने ही फैलाने चाहिए। लेकिन जब कोई विषय या स्थान राजनीति के जंजाल में फंसने लगता है तो यही हश्र होता है, जो देश की राजधानी दिल्ली के साथ वर्ष 2012 से हो रहा है। अब जाकर उसकी चादर का एकीकरण करने का कारगर प्रयास किया जा रहा है।

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    यहां हम बात कर रहे हैं दिल्ली के तीनों नगर निगम के बंटवारे की। बगैर क्षेत्रफल का नाप लिए ही अलग अलग दिशाओं में इनके पांव फैला दिए गए थे। दिल्ली के सुदूर उत्तरी क्षेत्र नरेला और बवाना में रहने वाले किसी व्यक्ति यदि उत्तरी नगर निगम में कोई काम पड़ जाए तो उसे कम से कम 40 किलोमीटर दूर आना पड़ता है। इस व्यवस्था को घर के करीब, घर के दरवाजे तक लाना कैसे कहा जा सकता है, जबकि इसका उद्देश्य यही था। इसी तरह दक्षिणी नगर निगम के पास एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आज तक 'अपना घर' यानी कार्यालय नहीं है। चूंकि वह अपना कार्यालय 'सिविक सेंटर' से संचालित करता आ रहा है, लिहाजा उससे तीन हजार करोड़ रुपये किराये का तकादा उत्तरी नगर निगम करता रहा है।

    यह इस बात को भी उजागर करती है कि बगैर दूरगामी परिणाम सोचे अच्छी भली व्यवस्था भी कैसे 'बंटवारे का दंश' झेलती है। पिछले लगभग एक दशक में दिल्ली के सरकारी कर्मचारियों से लेकर आम जनता तक ने इसे कई बार महसूस किया है। भला बंटवारे की नीयत वालों को एकीकरण की अनुभूति कैसे होगी, इसीलिए उन्हें यह कई हिस्सों में विभाजित ही अच्छा लग रहा है।

    फैसला एक लाभ अनेक : एकीकृत दिल्ली नगर निगम के अंतिम कमिश्नर रहे केएस मेहरा की एक पुस्तक है 'स्टेट आफ द कैपिटल' जिसमें दिल्ली नगर निगम के विभाजन का भी उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में उन्होंने एक जगह लिखा है, 'दिल्ली नगर निगम एक मजबूत संस्था थी जिसे तीन निगमों में विभाजित कर दिया गया। इससे दिल्ली वालों को काफी नुकसान हुआ, क्योंकि पहले दिल्ली नगर निगम में जो योजना बनती थी वह पूरी दिल्ली पर लागू होती थी।'

    उपरोक्त कथन को ही संदर्भ में रखते हुए हम देखें तो अधिकांश चीजें बिल्कुल विपरीत मिलती हैं। तीनों ही नगर निगम अलग अलग नियमों से संचालित हो रहे हैं। एक जैसी ही योजनाओं पर खर्च भी ज्यादा होता है, श्रम बल अधिक लगता है, समय भी बर्बाद होता है। उदाहरण के तौर पर जैसी पार्किंग पूर्वी दिल्ली में बन रही है, वैसी ही उत्तरी दिल्ली में भी बन रही है। परंतु दोनों की रूपरेखा से लेकर खर्च तक में अंतर है। यही कारण रहा कि बीते करीब एक दशक में काम कराने के एवज में खर्च तो खूब बढ़ते गए, लेकिन जो काम सीमित बजट में, सीमित लोगों की व्यवस्था में हो सकता था, वह दोगुने खर्च में हुआ और आर्थिक दंड का नुकसान कर्मचारियों ने और जनता ने झेला। वह कैसे? वह ऐसे कि निगम ने आर्थिक बदहाली के कारण कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया, उन्होंने हड़ताल की, जिससे व्यापक पैमाने पर आमजन पर प्रभाव पड़ा और उन्हें अनेक प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ा। जबकि ऐसा एक बार नहीं, बल्कि पिछले एक दशक में कई बार हुआ।

    सुव्यवस्थित बने कार्यप्रणाली : वर्ष 1958 से लेकर अब तक यानी पिछले 64 वर्षों में दिल्ली नगर निगम उम्रदराज जरूर हुआ, लेकिन उसके सिस्टम ने उसे परिपक्व नहीं बनाया। उसे सुव्यवस्थित नहीं किया। वर्ष 1958 में दिल्ली नगर निगम का गठन हुआ था, लेकिन आपसी खींचातानी के कारण आमजन के लिए एक सुगम निगम नहीं बन सका। लगातार जिम्मेदारियों का दायरा भी सिकुड़ता गया है। लगभग 90 प्रतिशत दिल्ली की सुविधाओं से सम्मिलित विभाजित ढांचे को देखकर तो लगता है कि इसका दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन तीन-तीन होते हुए भी क्या जिम्मेदारियां हैं? गली-नालियों का निर्माण, साफ-सफाई, शिक्षा के नाम पर केवल प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर महज डिस्पेंसरी। इतनी सी व्यवस्था के संचालन में भी कर्ज का बोझ तो बढ़ा, लेकिन एक व्यवस्थित स्मार्ट सिस्टम नहीं विकसित हो सका।

    सिविक सेंटर : नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के निकट स्थित सिविक सेंटर जो कि उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय है, यह दिल्ली की बेहतरीन इमारतों में से एक है। कार्यालय भी शानदार है। 28 मंजिला यह इमारत दिल्ली नगर निगम की ही देन है। जब एकीकृत निगम व्यवस्था सुचारु हो जाएगी तो यहां एक साथ राजस्व आएगा, जिससे कर्मचारियों के वेतन और पेंशन की समस्या तो पहले दिन से ही खत्म हो जाएगी। यहां एक तथ्य उल्लेखनीय है कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम का क्षेत्रफल शेष दोनों की तुलना में बहुत ही कम है।

    एक और बड़ा फायदा इस रूप में होगा कि अभी शासन और प्रशासन के लिए तीन गुणा खर्च होता है वह भी आधे से कम हो जाएगा। अभी दिल्ली में तीन-तीन महापौर हैं, तीन-तीन आयुक्त हैं। वहीं, तीन सदन चलते हैं। इनके पास कर्मचारी हैं। जब इस पूरी इमारत में एक ही निगम होगा तो बहुत से कर्मचारी सरप्लस की स्थिति में होंगे यानी उनकी आवश्यकता वहां नहीं होगी। ऐसे में इन सरप्लस कर्मचारियों को अन्य कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है, जिससे निगम की कार्यक्षमता में विस्तार होगा। साथ ही अब तक निगम की एक बड़ी समस्या के रूप में समझी जाने वाली कर्मचारियों की कमी की समस्या भी खत्म हो सकती है।

    आर्थिक बचत : अब इतना कुछ व्यवस्थित होगा तो निश्चित ही जो खर्च तीन जगह बंट रहा था उसकी भी बचत होगी। आर्थिक बचत होगी तो विकास भी होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि तीन निगमों के एकीकरण होने से जबावदेही भी स्पष्ट होगी। मान लीजिए कि पूर्वी दिल्ली में रहने वाले एक माता-पिता के बच्चे का जन्म उत्तरी दिल्ली के किसी अस्पताल में हुआ है। भले ही जन्म प्रमाण पत्र संबंधी सेवाएं आनलाइन हैं, लेकिन एक बहुत बड़ा तबका आज भी आनलाइन सेवाओं का लाभ नहीं ले पाता है तो वह उत्तरी नगर निगम के दफ्तरों के चक्कर लगाएगा। ऐसी अन्य कई सुविधाएं हैं जो तीन निगम होने की वजह से लोगों को परेशान करती हैं।

    दिल्ली जैसा ही देश का दूसरा बड़ा महानगर मुंबई अब भी इसीलिए आगे है, क्योंकि उसने अपने एकीकरण के क्रम को टूटने नहीं दिया है। ऐसे में अब पूर्व की गलतियों को मिटाकर दुरुस्त करने का समय आ गया है, ताकि इस एकीकरण के निर्णय के माध्यम से देश की राजधानी को स्वावलंबी बनाया जा सके।

    आसान नहीं होगी आगे की राह : अब बात करते हैं अगले माह होने वाले निर्धारित निगम चुनाव और इस एकीकरण में लगने वाले समय की। यह तो केंद्र सरकार भी सुनिश्चित कर ही रही है कि दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022 को संसद के वर्तमान सत्र में ही पेश किया जाए। इसकी वजह से पिछले दिनों दिल्ली के राज्य चुनाव आयोग ने नगर निगमों के लिए चुनाव तारीखों की घोषणा भी टाल दी थी। अब पूरी संभावना यही है कि इन तीनों नगर निगमों के एकीकरण के बाद ही चुनाव होंगे। सवाल और संशय यह है कि आखिर इस एकीकरण की प्रक्रिया में समय कितना लगेगा, क्योंकि जब विभाजन किया गया था तो उसकी प्रक्रिया भी तीन-चार माह तक चली थी, जबकि एकीकरण की तुलना में विभाजन करना ज्यादा आसान समझा जाता है। अब यहां तो एकीकरण होना है। तीनों निगम क्षेत्रों में अधिकारियों की नियुक्ति और मुख्यालय स्तर पर रिकार्ड सब सम्मिलित होने हैं। और पूरी दिल्ली के लिए सभी कर एवं शुल्क भी एक समान करने हैं। अभी जो नियम-शर्त बिखरे हुए हैं, उन सभी को एक करना होगा। ऐसी स्थितियों में विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि एकीकरण की प्रक्रिया में कम से कम चार माह तक समय लग ही सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि एकीकरण के बाद लोगों की संबंधित समस्याओं को दूर करने में आसानी होगी।

    एशिया में दूसरा स्थान हासिल करने की ओर : बीते दो-तीन माह से दिल्ली की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेता साम, दाम, दंड, भेद सहित चुनावी रणनीति बनाने में जुट चुके थे। प्रचार-प्रसार, पोस्टर-बैनर दीवारों पर गवाही देने लगे थे, गली- मुहल्ले वालों के प्रति फिक्र जताने लगे थे, क्योंकि नगर निगम चुनाव के दिन नजदीक आ गए थे। लेकिन एकाएक जैसे ही तीनों निगम का एकीकरण करने की प्रक्रिया शुरू हुई और अप्रैल माह से शुरू होने वाले चुनाव टाल दिए गए तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की छटपटाहट बढ़ गई। दरअसल इसमें हार-जीत, सही-गलत सभी के अपने समीकरण होते हैं। हम एक बार यदि निगम के आर्थिक संकट और आमजन की परेशानी को देखकर बात करते तो तार्किक पेश आते। चुनावी अखाड़ा बनाकर यह चुनाव यदि समय से होते तो हम जीत जाते, ऐसी बयानबाजी पर नहीं उतरते।

    जनता का हितैषी उसके हित का सोचने वाला ही है। और इस वक्त दिल्ली के लिए यह सबसे जरूरी निर्णय था। इसकी वास्तविकता, इसकी जरूरत, इसके दूरगामी परिणाम को समझने वाले पूर्व निगम आयुक्त से लेकर, सैकड़ों वे कर्मचारी हैं जिन्हें कई माह से वेतन नहीं मिल रहा, जिन्हें पेंशन नहीं मिल रही, और जिन लोगों के काम लंबित हैं, वही समझ सकते हैं।