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    Delhi Mayor: महापौर किसी का हो 5 साल तक रहेगी टकराव की स्थिति, सत्तापक्ष को आसान नहीं होगा प्रस्ताव पास कराना

    By Nihal SinghEdited By: Geetarjun
    Updated: Sun, 08 Jan 2023 11:01 PM (IST)

    Delhi Mayor Election दिल्ली नगर निगम में महापौर किसी का भी बने लेकिन भाजपा और आप में टकराव की स्थिति ऐसी ही रहेगी जैसे कि शुक्रवार को सदन की बैठक में ...और पढ़ें

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    शुक्रवार को सदन की पहली बैठक में भाजपा-आप पार्षद भिड़ गए थे।

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली नगर निगम में महापौर किसी का भी बने, लेकिन भाजपा और आप में टकराव की स्थिति ऐसी ही रहेगी, जैसे कि शुक्रवार को सदन की बैठक में देखने को मिली। पांच साल तक जानकार ऐसी स्थिति के दोहराव की आशंका जाहिर कर रहे हैं। क्योंकि दोनों दलों के पास सदस्यों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है। ऐसे में महापौर बनने वाले पार्षद के लिए सदन चलाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

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    इतना ही नहीं सत्तापक्ष को किसी प्रस्ताव को पारित कराना भी कठिन होगा। विपक्ष में संख्या बल अधिक होने की वजह पार्षद विभिन्न प्रस्तावों को पारित करने से पहले वोटिंग की मांग कर सकते हैं। इसलिए सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष के सभी पार्षदों को सदन में मौजूद रहना जरूरी हुआ करेगा। तब ही सत्ता-पक्ष और विपक्ष प्रस्तावों को पारित कराने या गिराने में सफल हो पाएंगे।

    सदन में सदस्यों का आंकड़ा

    दिल्ली नगर निगम में फिलहाल 250 निर्वाचित पार्षदों समेत, दस सांसद (सात लोकसभा और तीन राज्यसभा), 14 विधायकों के साथ ही 10 मनोनीत सदस्यों को मिलाकर कुल संख्या 284 हैं। चूंकि 10 मनोनीत सदस्यों के पास वोटिंग का अधिकार नहीं है ऐसे में 274 सदस्यों के पास ही वोटिंग का अधिकार है।

    किसके पास कितना दम?

    इसमें से भाजपा के पास 105 निर्वाचित पार्षद और सात लोकसभा सांसद के अलावा एक विधायक का मत है। यानी भाजपा के पास सदन में 113 की संख्या है जबकि आम आदमी पार्टी (आप) के पास 134 निर्वाचित पार्षद और 13 विधायकों व तीन राज्यसभा सदस्यों के साथ 150 की संख्या है। वैसे तो बहुमत आप के पास हैं, ऐसे में आप पार्षद शैली ओबराय के महापौर बनने की संभावना ही ज्यादा है, लेकिन किसी कारण अगर आप के पार्षद या विधायक और सांसद नहीं आ पाए तो प्रस्तावों को पास कराना चुनौती पूर्ण रहेगा।

    आसान नहीं होगा महापौर के लिए

    निगम के जानकार रहे जगदीश ममगाई कहते हैं कि दोनों दलों के पास सदस्यों की अच्छी संख्या हैं। ऐसे में किसी भी दल के सदस्यों को सदन से बाहर करने का आदेश देना भी महापौर के लिए आसान नहीं होगा। इतना ही नहीं किसी प्रस्ताव को अगर, सत्तापक्ष पास कराना चाहता है तो उसे सदन में बहुमत में मौजूद रहना होगा। अगर, सत्तापक्ष के पार्षद सदन में बहुमत में मौजूद नहीं रहे तो प्रस्ताव पास नहीं हो पाएगा।

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    चार सदस्यों की मांग पर महापौर को करानी होगी वोटिंग

    दिल्ली नगर निगम एक्ट में सदन की कार्यवाही संचालन के लिए भी नियम बने हुए हैं, जिसके तहत सदन की कार्यवाही का संचालन होता है। कार्यवाही संचालन के लिए बने नियम के अनुच्छेद 44 में सदस्यों को किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का अधिकार दिया गया है। एक्ट के अनुसार अगर, किसी प्रस्ताव पर न्यूनतम चार सदस्य वोट कराने की मांग करते हैं तो गोपनीय वोटिंग कराना भी महापौर की जिम्मेदारी होगी। महापौर चार सदस्यों की मांग को नजरअंदाज कर प्रस्ताव को ध्वनिमत से पास नहीं करा सकता है।

    जब होगी शपथ तब से शुरू होगा कार्यकाल

    दिल्ली नगर निगम के पार्षदों का कार्यकाल पांच साल का होता है। ऐसे में अगर, सभी पार्षदों के शपथ ग्रहण में देरी होती है उनका कार्यकाल कम नहीं होगा। निगम एक्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि जिस तारीख को निगम सदन की पहली बैठक बुलाई जाएगी उस तारीख से निगम का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए शुरू हो जाएगा। चूंकि बैठक छह जनवरी को बुला ली गई है, लेकिन शपथ ग्रहण के चलते पहली बैठक संपन्न नहीं हो पाई इसलिए अब जब भी सदन की बैठक बुलाई जाएगी और सभी का शपथ ग्रहण पूरा हो जाएगा तभी से निगम सदस्यों का कार्यकाल शुरू होगा।

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