पति की संपत्ति पर पत्नी के अधिकार का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं... दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल वैवाहिक घर में रहने से पत्नी को पति की संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार नहीं मिल जाता। अदालत ने गृहिणियों के योगदान को सराहा लेकिन कहा कि वर्तमान में ऐसे योगदानों को मान्यता देने के लिए कोई वैधानिक आधार नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पति की संपत्ति पर वैध दावा ठोस प्रमाण पर आधारित होना चाहिए।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। पति की संपत्ति में पत्नी के अधिकार की मांग वाली महिला की अपील याचिका पर बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने गृहिणियों के योगदान की तो सराहना की, लेकिन यह माना कि वर्तमान में गृहिणियों के ऐसे योगदानों को मान्यता देने के लिए कोई वैधानिक आधार मौजूद नहीं है।
जिसके आधार पर उनके स्वामित्व अधिकारों पर कोई निर्धारण किया जा सके या इन योगदानों का मूल्य भी निर्धारित किया जा सके।
अदालत ने कहा कि समय के साथ, विधायिका गृहिणियों के योगदान सार्थक करने के लिए उपाय करे और इसके आधार पर स्वामित्व के दावों के संबंध में फैसला ले। हालांकि, इससे पहले यह अदालत अपीलकर्ता की अचल संपत्ति के संबंध में स्वामित्व अधिकारों पर निर्णय नहीं ले सकती।
उक्त टिप्पणी के साथ पारिवारिक अदालत के 16 जुलाई 2025 के निर्णय को चुनौती देने वाली महिला की याचिका खारिज कर दी। महिला ने पति की संपत्ति में स्वामित्व की मांग से जुड़ी याचिका को खारिज करने के पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनाैती दी थी।
अदालत ने कहा कि निश्चित तौर पर देश के ऐसे घरों में जहां घरेलू सहायक नहीं हैं, वहां एक पूर्णकालिक गृहिणी के योगदान से खर्चाें में बड़ी बचत होती है, जिसका उपयोग संपत्ति खरीदने तक में होता है।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि वैवाहिक घर में पत्नी का निवास मात्र, उसे पति के नाम की संपत्तियों पर स्वामित्व का अधिकार प्रदान नहीं कर सकता।
पति की संपत्ति पर वैध दावा सार्थक और ठोस योगदान के प्रमाण पर आधारित होना चाहिए। ऐसे प्रमाण के अभाव में स्वामित्व टाइटल धारक के पास रहता है।
याचिकाकर्ता महिला ने रोहिणी कोर्ट स्थित पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि एक गृहिणी के रूप में अपनी विभिन्न भूमिका के माध्मय से पत्नी पारिवारिक संपत्ति के अधिग्रहण में सीधे योगदान देती है।
विवाह के दौरान पति व पत्नी में से किसी के नाम पर अर्जित की गई कोई भी संपत्ति न्याय और कानून के अनुसार उनके संयुक्त प्रयासों का परिणाम मानी जानी चाहिए।
ऐसे में पत्नी के हिस्से से इनकार करना न्यायचित नहीं है। यह भी तर्क दिया कि विशेष रूप तब जब उसने पारिवारिक देखभाल के लिए वेतनभोगी रोजगार का त्याग किया हो।
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