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    ‘क्या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला को घर से निकाला जा सकता है’, दिल्ली HC करेगा जांच

    By AgencyEdited By: Abhishek Tiwari
    Updated: Mon, 26 Dec 2022 02:16 PM (IST)

    Domestic Violence Act 2005 क्या घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत एक महिला को ससुराल से निकाला जा सकता है। दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की जांच करेगा। यह धारा किसी भी महिला को ससुराल से निकालने पर रोक लगाती है।

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    क्या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला को घर से निकाला जा सकता है?

    नई दिल्ली, एएनआई। दिल्ली हाई कोर्ट इस बात की वैधानिकता का परीक्षण करने के लिए तैयार हो गया है कि क्या घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत एक महिला को ससुराल से निकाला जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंदर शर्मा और न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने यह नोटिस जारी किया।

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    केंद्र सरकार को नोटिस जारी

    यह नोटिस वकील प्रीति सिंह की याचिका पर जारी किया गया। प्रीती ने यह याचिका एक सास की ओर से दायर की थी। इसके तहत घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 19(1)(बी) की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। यह धारा किसी भी महिला को ससुराल से निकालने पर रोक लगाती है। डिविजन बेंच इस मामाले का परीक्षण करने के लिए राजी हो गई है और 21 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार एवं राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी किया गया है।

    निचली अदालत में खारिज हो गई थी याचिका

    इसके साथ ही बेंच ने अधिनियम के उन प्रावधानों की वैधानिकता की जांच करने में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ट वकील रिबेका जॉन को नियुक्त किया है, जिनके तहत महिलाओं के खिलाफ आदेश जारी करने को बाधित किया गया है। इससे पहले वादी सास ने तीस हजारी जिला अदालत में अपनी बहू को ससुराल से बेदखल करने के लिए आवेदन दिया था। जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम 2005 की धारा 19(बी) के तहत महिला के खिलाफ इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता।

    ‘भेदभावपूर्ण है प्रावधान’

    वकील प्रीति सिंह ने हाई कोर्ट के सामने यह तर्क दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 महिला हितकारी विधान है और जो व्यथित महिला को धारा 19 के तहत निवास स्थान के अधिकार प्रदान करता है। धारा 19(1)(बी) मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह परिवार के दूसरे सदस्यों को साझा घर से खुद को अलग करने के आदेश देने की शक्ति तो देती है लेकिन महिला के खिलाफ ऐसे आदेश जारी करने को पूरी तरह से रोकती है।

    प्रीति सिंह ने यह भी बताया कि अधिनियम सास और बहू के बीच भेदभाव नहीं कर सकता। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तौर पर धारा 19(बी) वरी‍ष्ठक नागरिक(सास) को अपने अधिकारों से वंचित कर रही है। उनके अनुसार इस अधिनियम के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही कोई महिला अपने साथी से निवास की मांग करने की हकदार है, लेकिन इसके विपरीत कोई महिला अपनी दूसरी महिला लिव-इन पार्टनर के खिलाफ ऐसी मांग नहीं कर सकती।