'महज धमकी देना अपराध नहीं, डर पैदा करने की मंशा जरूरी', यौन उत्पीड़न मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ धमकी देना आपराधिक भय नहीं है जब तक कि उसका उद्देश्य डर पैदा करना न हो। अदालत ने आईपीसी की धारा 506 के तहत एक मामले में पुलिस की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। मामला 2013 का है जिसमें एक व्यक्ति पर नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न का आरोप था। कोर्ट ने पीड़िता के बयानों में विरोधाभास पाया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल धमकी देना, यदि उसका उद्देश्य डर पैदा करना न हो, तो वह आपराधिक भय उत्पन्न करने का अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 506 के तहत अपराध तभी सिद्ध होता है जब आरोपित की धमकी से पीड़ित को वास्तव में डर लगे।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने यह टिप्पणी दिल्ली पुलिस की उस अपील को खारिज करते हुए की, जिसमें एक व्यक्ति को आइपीसी की धारा 451 (गैरकानूनी रूप से घर में प्रवेश) और 506 (आपराधिक धमकी) व पाक्सो एक्ट की धारा आठ के तहत दोषमुक्त किए जाने को चुनौती दी गई थी। यह मामला वर्ष 2013 का था, जिसमें आरोप था कि आरोपित ने एक नाबालिग लड़की के घर में घुसकर उसके साथ यौन उत्पीड़न किया था।
उसकी कहानी की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न हुआ
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही में कई विरोधाभास और बदलाव थे जिससे उसकी कहानी की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न हुआ। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आरोपित ने नाबालिग को डराने की मंशा से धमकी दी था। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पीड़िता ने खुद दरवाजा खोला और तुरंत आरोपित को धक्का देकर बाहर निकल गई, तो आरोपित के पास धमकी देने का समय ही नहीं था।
यह मामला वर्ष 2013 में दर्ज हुआ था, जिसमें आरोप था कि एक व्यक्ति ने 14 वर्षीय नाबालिग लड़की के घर में घुसकर उसके साथ यौन उत्पीड़न किया था।
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