सहमति से बने प्रेम संबंधों को अपराध मानना गलत, टीनएजर्स के रिश्तों को स्वीकार करने के लिए विकसित हो कानून- HC
दिल्ली हाई कोर्ट ने किशोर प्रेम संबंधों में सहमति को प्राथमिकता देने की वकालत करते हुए कहा कि कानून को ऐसे रिश्तों को स्वीकार करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि प्यार एक मौलिक मानवीय अनुभव है और किशोरों को भावनात्मक संबंध बनाने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि सहमति की कानूनी उम्र नाबालिगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने किशोर प्रेम से जुड़े आपराधिक मामलों में सजा के बजाय समझ को प्राथमिकता देने वाले दृष्टिकोण की वकालत करते हुए कहा कि कानून को ऐसे रिश्तों को स्वीकार करने के लिए विकसित होना चाहिए जो सहमति से बने हों और जबरदस्ती से मुक्त हों।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि किशोरों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और अपराधीकरण के डर के बिना संबंधों में संलग्न होने की अनुमति दी जानी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि प्यार एक मौलिक मानवीय अनुभव है और किशोरों को भावनात्मक संबंध बनाने का अधिकार है।
हाई कोर्ट ने बरकरार रखा ट्रायल कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि कानून का ध्यान प्रेम को दंडित करने के बजाय शोषण और दुर्व्यवहार को रोकने पर होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सहमति की कानूनी उम्र नाबालिगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और किशोरों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और अपराधीकरण के डर के बिना संबंधों में शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सहमति और सम्मानजनक किशोर प्रेम मानव विकास का एक स्वाभाविक हिस्सा है। कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत यौन शोषण के अपराध के लिए एक व्यक्ति को बरी करने वाले ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
क्या है मामला?
दिसंबर 2014 में, लड़की के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी नाबालिग बेटी ट्यूशन से घर नहीं लौटी है और शिकायतकर्ता ने आरोपित पर आशंका जताई थी क्योंकि वह अपने घर से लापता था।
अदालत ने कहा कि मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष द्वारा यह साबित नहीं किया गया है कि पीड़िता नाबालिग है और साथ ही पीड़िता को यकीन है कि संबंध उसकी सहमति से बने थे।
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