सामान बेचना स्ट्रीट वेंडरों का मौलिक अधिकार: हाई कोर्ट
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि स्ट्रीट वेंडर एक सामाजिक आवश्यकता हैं और उन्हें सामान बेचने का मौलिक अधिकार है। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह कुछ प्रतिबंधों के साथ आता है और इसे दूसरों के अधिकारों के साथ संतुलित करना होगा।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। स्ट्रीट वेंडर अधिनियम के विभिन्न प्रविधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि स्ट्रीट वेंडर एक सामाजिक आवश्यकता हैं और उन्हें सामान बेचने का मौलिक अधिकार है। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि यह कुछ प्रतिबंधों के साथ आता है और इसे दूसरों के अधिकारों के साथ संतुलित करना होगा।
पीठ ने कहा कि समाज का एक बड़ा वर्ग फल, सब्जियां, कपड़े और अन्य घरेलू सामान खरीदने के लिए फेरीवालों पर निर्भर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने की अनुमति दी जा सकती है। हर मौलिक अधिकार कुछ प्रतिबंधों के साथ आता है। समाज में यह एक आवश्यकता हैं और हम भी उनसे सब्जियां खरीदने जाते हैं। वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने विभिन्न बाजार संघों द्वारा स्ट्रीट वेंडर एक्ट के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाएं स्पष्ट रूप से गलत हैं और खारिज किए जाने योग्य हैं।
केंद्र ने कहा कि वर्तमान याचिका व्यापारियों और दुकानदारों के विभिन्न संघों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत उनके अधिकारों के उल्लंघन के प्रमुख आधार पर दायर की गई है। स्ट्रीट वेंडर एक्ट एक कल्याणकारी कानून है। इसका उद्देश्य मूल अधिकार के सार्थक अभ्यास को सक्षम करने के साथ-साथ इसे विनियमित करना है। पीठ ने मामले में आगे की सुनवाई 17 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी।
वहीं, वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंसाल्वेस ने हाई कोर्ट को बताया कि वैवाहिक दुष्कर्म महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का सबसे बड़ा रूप है, लेकिन न तो इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज हुई और न ही विश्लेषण या अध्ययन किया गया।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का मामला घर की सीमाओं में है। कभी दर्ज नहीं किया गया और न ही कोई प्राथमिकी है। कितनी बार है कि संस्थागत विवाह के अंदर दुष्कर्म होता है, लेकिन कभी इसका विश्लेषण या अध्ययन नहीं किया जाता है।
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