कैंसर पीड़ित पत्नी को इलाज के लिए रुपये नहीं देना अमानवीय: हाई कोर्ट
अदालत महिला के पति को किसी विशेष व्यवहार के लिए आदेशित नहीं कर सकती है लेकिन आर्थिक मदद देने के लिए निर्देशित करती है। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता एक अलग मसला है। यहां बात गंभीर बीमारी के उपचार के लिए आर्थिक मदद की है।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। आर्थिक हालात ठीक न होने का हवाला देते हुए कैंसर पीड़ित पत्नी को रुपये देने से इन्कार करने पर तीस हजारी कोर्ट ने पति को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी से मतभेद होने पर कोई भी व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है, यह तो अमानवीय है। इसके साथ ही कोर्ट ने युवक को पत्नी के इलाज के लिए एक लाख रुपये देने का निर्देश दिया। तीस हजारी कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नीलोफर आबिदा प्रवीण की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि इस समय महिला मानसिक, शारीरिक और आर्थिक संकट से जूझ रही है। ऐसे में महिला को आर्थिक मदद के साथ-साथ अपनत्व की भी जरूरत है। हालांकि, अदालत महिला के पति को किसी विशेष व्यवहार के लिए आदेशित नहीं कर सकती है, लेकिन आर्थिक मदद देने के लिए निर्देशित करती है। इस पर पति ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह एक दैनिक वेतनभोगी कर्मी है। वह पहले ही पत्नी को 15 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता दे रहा है। ऐसे में अतिरिक्त मदद कैसे करे। इस पर कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता एक अलग मसला है। यहां बात गंभीर बीमारी के उपचार के लिए आर्थिक मदद की है।
2015 में हुआ था प्रेम विवाह : दोनों ने साल 2015 में प्रेम-विवाह किया था, लेकिन विवाह के कुछ दिन बाद ही उनमें मतभेद हो गए थे। इसके बाद घरेलू ¨हसा, उत्पीड़न और दहेज जैसे मामलों में कोर्ट में सुनवाई चली थी। इसमें कोर्ट ने महिला के लिए 15 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता देने को निर्देशित किया था।
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