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    'कोई भी कानून या नियम जेल परिसर के अंदर दाह संस्कार या दफनाने पर रोक नहीं रोकता', दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

    Updated: Thu, 25 Sep 2025 02:30 AM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने आतंकवादी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों को तिहाड़ जेल से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है जो जेल परिसर में दफनाने से रोकता हो। अदालत ने माना कि सरकार ने संवेदनशील मुद्दों पर विचार कर यह फैसला लिया था और अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए।

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    कोई भी कानून या नियम जेल परिसर के अंदर दाह संस्कार या दफनाने पर रोक नहीं रोकता: हाई कोर्ट

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आतंकवादी मोहम्मद अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रों को तिहाड़ जेल परिसर से हटाने का निर्देश देने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया।

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    मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि कोई भी कानून या नियम जेल परिसर के अंदर दाह संस्कार या दफनाने पर रोक नहीं लगाता है।

    जनहित याचिका को वापस लेने के आधार पर खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि मामले में राहत मांगने के लिए याची को अदालत के समक्ष संवैधानिक अधिकारों, मौलिक अधिकारों या वैधानिक अधिकारों के किसी भी उल्लंघन का प्रमाण दिखाना होगा।

    अदालत का रुख देखते हुए याचिकाकर्ता संगठन विश्व वैदिक सनातक संघ की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने और कुछ आंकड़ों के साथ इसे फिर से दायर करने की अनुमति मांगी। अनुरोध को स्वीकार करते हुए अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    पीठ ने कहा कि जेल में दफनाने का कार्य 2013 में हुआ था और अब 2025 है। 12 साल से वहां मौजूद कब्र को हटाने का अनुरोध किया जा रहा है, जबकि यह सरकार ने यह फैसला है और परिवार को शव देने या बाहर दफनाने की अनुमति देने के परिणामों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया था। अदालत ने कहा कि ये बहुत संवेदनशील मुद्दे हैं।

    पीठ ने कहा कि किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई कानून-व्यवस्था की समस्या न पैदा हो। सरकार ने इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जेल में दफनाने का फैसला किया था।

    याचिकाकर्ता संगठन ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी और फिर जेल परिसर में फांसी दी गई थी। याचिका में कहा गया कि इनकी कब्रो को गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए ताकि आतंकवाद का महिमामंडन और जेल परिसर का दुरुपयोग रोका जा सके। विश्व वैदिक सनातन संघ ने याचिका में दावा किया गया है कि जेल के अंदर इन कब्रों का निर्माण और उनका निरंतर अस्तित्व अवैध, असंवैधानिक और जनहित के विरुद्ध है।