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    शादी के बाद पत्नी से जबरन संबंध बनाना कानून के दायरे में नहीं, हाई कोर्ट ने कहा- आईपीसी की धारा 377 वैवाहिक संबंधों में नहीं होगी लागू

    दिल्ली हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा-377 के तहत पति के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक संबंधों में वैवाहिक दुष्कर्म कानून के दायरे में नहीं आता। पत्नी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उसकी असहमति थी। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया।

    By Vineet Tripathi Edited By: Kushagra Mishra Updated: Wed, 21 May 2025 08:58 PM (IST)
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    हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 के तहत पति के खिलाफ दर्ज मामला खारिज किया।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता की धारा-377 के तहत पति के खिलाफ दर्ज मामला खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म ( Marital Rape) कानून के दायरे में नहीं आता है।

    यह अहम निर्णय पारित करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 ऐसे अपराध को दंडित करती है, लेकिन यह वैवाहिक संबंधों में लागू नहीं होगी। खासकर तब, जब असहमति स्पष्ट न हो।

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    अदालत ने यह टिप्पणी ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की याचिका पर विचार करते हुए की। पति पर पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप तय करने का आदेश दिया गया था।

    ट्रायल कोर्ट की ओर से मुकदमा चलाने का आदेश किया रद

    मुकदमा चलाने का निर्देश देने वाले आदेश को रद करते हुए पीठ ने कहा कि पत्नी ने स्पष्ट रूप से यह आरोप नहीं लगाया कि यह कृत्य उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना किया गया था।

    नवतेज सिंह जौहर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि फैसले में शीर्ष अदालत ने वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है।

    पति ने दिया था तर्क, धारा 377 के तहत नहीं है अपराध

    अदालत ने नोट किया कि रिकार्ड पर पेश किए गए तथ्यों के अनुसार पत्नी ने दावा किया था कि पति नपुंसक था और उनका विवाह उसके और उसके पिता की ओर से अवैध संबंध स्थापित करने और उसके परिवार से पैसे ऐंठने की साजिश के तहत हुआ था।

    पति ने तर्क दिया कि विवाह कानून से मान्यता प्राप्त है और इसकी प्रकृति धारा-377 के तहत अपराध नहीं बन सकती है।

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