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    'निजी विवाद नहीं माना जा सकता बच्चों के साथ क्रूरता', दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

    Updated: Tue, 08 Jul 2025 08:21 AM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग से क्रूरता मामले में प्राथमिकी रद करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध निजी नहीं बल्कि समाज की अंतरात्मा को झकझोरते हैं। समझौते के बावजूद अदालत ने सार्वजनिक हित और बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी। आरोपियों पर बच्चे को पीटने और बिजली के झटके देने का आरोप है।

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    निजी विवाद नहीं माना जा सकता बच्चों के साथ क्रूरता: हाई कोर्ट

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली में नाबालिग के साथ क्रूरता के एक मामले में प्राथमिकी रद करने से इनकार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि इस तरह के विवाद को निजी विवाद नहीं माना है।

    अदालत ने कहा कि बच्चों के खिलाफ इस तरह के अपराध समाज की अंतरात्मा को प्रभावित करते हैं। अदालत ने कहा कि बच्चे की मां और आरोपित व्यक्तियों ने आपस में मामला सुलझा लिया, लेकिन इस तरह के कृत्यों ने न केवल पीड़ित को प्रभावित किया, बल्कि सार्वजनिक हित, सुरक्षा और बच्चों के संरक्षण की व्यापक चिंताओं को भी जन्म दिया।

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    अदालत ने कहा कि इस स्तर पर प्राथमिकी को रद करना एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा और आपराधिक न्याय के प्रशासन को पराजित करेगा। पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों ने पहले भी समझौता किया था, लेकिन अदालत के समक्ष मौजूद होकर शिकायतकर्ता ने आरोपितों के साथ मामले में समझौता करने से इनकार कर दिया था। उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    नाबालिग बच्चे की मां ने जून 2023 में आरोप लगाया था कि उसके बच्चे के साथ उसके पड़ोसी अमित और उसकी पत्नी सुरेश ने शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया था। आरोप लगाया था कि आरोपितों ने न सिर्फ बच्चे को पीटा और उसे बिजली के झटके दिए।

    आरोपितों ने पीड़ित पक्ष से समझौते के आधार पर गोविंदपुरी पुलिस स्टेशन में क्रूरता के आरोप में हुई प्राथमिकी को रद करने का निर्देश देते की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि दोनों पक्षों ने आपस में मामला सुलझा लिया है।

    बच्चे की मां ने अदालत को सूचित किया कि उसने अपनी मर्जी से और बिना किसी दबाव के समझौता किया है। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोप गंभीर हैं और घटना के समय पीड़ित केवल सात साल का लड़का था।

    उक्त तथ्यों को देखते हुए पीठ ने कहा कि घटना के समय पीड़ित की उम्र मात्र सात वर्ष थी, और इतनी कम उम्र के बच्चे को जो मानसिक आघात पहुंचाया गया। ऐसी घटना को दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर महत्वहीन या अनदेखा नहीं किया जा सकता।

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