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    कैदियों की रिहाई पर मानवीय दृष्टिकोण जरूरी... कहते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया सजा समीक्षा बोर्ड के पुनर्गठन का निर्देश

    Updated: Fri, 13 Jun 2025 02:08 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) को पुनर्गठित करने का निर्देश दिया है कैदियों को मानवीय आधार पर देखने की बात कही गई है। अदालत ने हत्या के एक दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एसआरबी का उद्देश्य कैदियों में सुधार लाना का होना चाहिए।

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    हाई कोर्ट ने दिया एसआरबी के पुनर्गठन का निर्देश।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: सजा सुनाने के सुधारात्मक नीति के तत्वों के उल्लेख वाले चाणक्य के अर्थशास्त्र का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के पुनर्गठन का निर्देश दिया है।

    हत्या के मामले में 18 साल से जेल में बंद कैदी की अपील याचिका पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा कि कैदी को आंकड़े के बजाय मानवीय आधार पर देखना चाहिए।

    न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ कहा कि एसआरबी का उद्देश्य कैदी के सुधार पर होना चाहिए, ऐसे मामले को सामान्य निपटारे के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

    मानवीय आधार पर रिहा करना प्राचीन हिंदू न्यायशास्त्र का भाग

    पीठ ने यह भी कहा कि सजा पूरी होने से पहले कैदी को मानवीय आधार पर रिहा करना प्राचीन हिंदू न्यायशास्त्र का महत्वपूर्ण भाग था।

    उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने दिल्ली सरकार को आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी की समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने नोट किया कि कैदी ने पैरोल की अवधि पार कर ली थी, लेकिन उसके आवेदन को एसआरबी ने ठुकरा दिया था।

    अदालत ने सम्राट अशोक का भी दिया हवाला

    न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ सम्राट अशोक के कथन का उल्लेख है कि उन्होंने 26 वर्षों की अवधि में 25 बार कैदियों को छोड़ा था।

    अदालत ने नोट किया कि अपीलकर्ता दोषी ने बिना किसी छूट के 18 साल से अधिक समय तक और छूट के साथ 21 साल से अधिक समय तक कारावास में रहा था।

    उसने वर्ष 2004 में दिल्ली सरकार द्वारा बनाई गई नीति का लाभ मांगा था। अपीलकर्ता ने याचिका में तर्क दिया कि वर्ष 2010 में पैरोल से भागने की एक भी चूक को अब 15 साल बाद स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए नहीं माना जाना चाहिए।

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    पीठ ने कहा कि निश्चित तौर पर अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध जघन्य था और उससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता थी, लेकिन कोई यह भी अनदेखा नहीं कर सकता कि उक्त अपराध वर्ष 2001 में हुआ था।

    याचिकाकर्ता को जेल अधिकारियों ने कई प्रशंसा पत्र भी दिए

    पीठ ने कहा कि जहां तक पैरोल से भागने और दो अन्य आपराधिक मामलों में फिर से गिरफ्तार होने का सवाल है तो उक्त अपराध भी वर्ष 2015 में हुआ था।

    पीठ ने कहा कि वर्ष 2015 के बाद अपीलकर्ता की ओर से जेल में किसी भी तरह के कदाचार के आरोप सामने नहीं आया है, उल्टा याचिकाकर्ता को जेल अधिकारियों द्वारा कई प्रशंसा पत्र दिए गए।

    सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि याचिकाकर्ता उन दो मामलों में बरी हो गया है। उक्त टिप्पणियाें व निर्देशों के साथ अदलात ने याचिका का निपटारा कर दिया।