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    बदला लेने का हथियार बन गई है धारा 498ए... दहेज उत्पीड़न के मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 06:34 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले में कहा कि धारा 498ए शिकायतकर्ताओं के लिए झूठी FIR दर्ज कराकर बदला लेने का हथियार बन गई है। अदालत ने सास-ससुर के खिलाफ आरोपपत्र रद्द करते हुए कहा कि महिला ने दहेज की कोई मांग साबित नहीं की। पति-पत्नी के विवाद को दहेज उत्पीड़न का रंग दिया गया। वैवाहिक विवाद के बाद बच्चे का पति की देखरेख में होना क्रूरता नहीं है।

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    तलाक दायर करने पर सास-ससुर के खिलाफ दर्ज कराई थी एफआईआर।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न से जुड़े मामले में अहम टिप्पणी की कि धारा 498ए मनगढ़ंत आरोपों वाली झूठी एफआईआर करवाकर बदला लेने का हथियार बन गई है।

    अदालत ने कहा कि महिला ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है कि शादी से पहले या शादी के समय हुए दहेज की कोई मांग की गई थी।

    अदालत ने कहा कि यह मामला शिकायतकर्ता की ओर से धारा 498ए के प्रविधान के दुरुपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

    अदालत ने कहा कि महिला और उसके पति के बीच विवाद था, जिसे दहेज उत्पीड़न का रंग दिया गया और पति की ओर से दायर तलाक पर सास-सुसर के खिलाफ एफआईआर कराई गई।

    न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता सास-ससुर की ओर से दायर एक याचिका पर विचार करते हुए की।

    याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता भारतीय सेना से ब्रिगेडियर रैंक से सेवानिवृत्त हुए थे, जबकि उनकी पत्नी गृहिणी थी।

    दोनों ने उनकी बहू की ओर से 2015 में उनके खिलाफ दर्ज कराई गई एक एफआईआर पर दायर आरोपपत्र को रद करने की मांग की गई थी।

    उनकी बहू ने बेटे की ओर से दायर तलाक के मामले से नाराज होकर केस दर्ज कराया था। वैवाहिक मतभेदों के कारण दोनों अलग हो गए थे, लेकिन बच्चे की कस्टडी पिता के पास रही।

    महिला ने दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए भरण-पोषण की मांग की थी। वहीं, पति का कहना था कि उसकी पत्नी हिंसक मानसिक दौरे से पीड़ित थी और इसकी जानकारी छुपाई गई।

    इस मामले में याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध दायर आरोपपत्र को खारिज कर दिया।

    बच्चे का पति की देखरेख में होना नहीं दहेज के लिए क्रूरता

    पीठ ने कहा कि बच्चा के पति की देखरेख में होने के आधार पर इसे धारा-498ए के तहत क्रूरता या उत्पीड़न के बराबर नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जिसमें पति और पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध ठीक नहीं चल रहा था और ससुराल वालों को दबाव में लाने के लिए उनके खिलाफ एफआईआर की गई।

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