Delhi High Court: दिल्ली HC की अहम टिप्पणी, बगैर आधार की शिकायत पर जांच शुरू नहीं कर सकता SC आयोग
Delhi High Court News दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी में कहा कि छह साल बाद हुई शिकायत को जांच शुरू करने से पहले आयोग को सत्य की कसौटी पर तौलना चाहिए। ...और पढ़ें

नई दिल्ली, जारण संवाददाता। टोरेंट पावर लिमिटेड के विरुद्ध राष्ट्रीय अनुसूचित जाती (एससी)आयोग की सभी कार्यवाही को रद करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि आयोग एक शिकायत और निराधार आरोपों के आधार पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-338 के तहत जांच शुरू नहीं कर सकता है।
प्रथम दृष्टया लगे कि भेदभाव किया गया
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने कहा कि आयोग को केवल तभी जांच शुरू करने का अधिकार है, जब एससी आयोग का कोई सदस्य प्रथम दृष्टया यह स्थापित करने में सक्षम हो संबंधित जाति का होने के कारण उसके दुर्व्यवहार या भेदभाव किया गया है। आयोग को संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत जांच के किसी मामले में साक्ष्य लाने के लिए अधिकार पत्र जारी करने का अधिकार है।
जांच में किसी के मौलिक अधिकार का हनन ना हो
अदालत ने कहा कि आयोग को संवैधानिक रूप से अनुसूचित जातियों/जनजातियों के अधिकारों से वंचित करने के मामलों की जांच करने का अधिकार है, लेकिन वर्ग के किसी नागरिक के अधिकार का हर उल्लंघन आयोग के अधिकार क्षेत्र को उचित नहीं ठहरा सकता है।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने केवल एक सामान्य आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता कंपनी ने एससी समुदाय होने के कारण अलग-अलग तरीकों से परेशान किया था।अदालत ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता ने सेवाएं समाप्त होने के लगभग छह साल बाद शिकायत की गई थी और इस पहलू को जांच शुरू करने से पहले आयोग को सत्य की कसौटी पर तौलना चाहिए था।याचिका को स्वीकार करते हुए दर्ज की गई शिकायत को रद कर दिया।
यह है मामला
याचिका के अनुसार कंपनी के खिलाफ इसके एक इंजीनियर ने शिकायत की थी, जिसे कंपनी ने नौ अप्रैल 2011 को समाप्त कर दिया था।हालांकि, इंजीनियर ने कंपनी के खिलाफ उक्त शिकायत सेवा समाप्त करने के छह साल बाद आठ जुलाई 2018 को की थी।इंजीनियर ने शिकायत में आरोप लगाया था कि एससी समुदाय का होने के कारण कंपनी ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया था।इंजीनियर ने यह भी आरोप लगाया कि बिना किसी कारण या गलती का उल्लेख किए ही उसकी सेवा को समाप्त कर दिया था।इस शिकायत का संज्ञान लेकर आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव (विद्युत) और कंपनी के उपाध्यक्ष (तकनीकी) को तलब किया था।आयोग की इस कार्यवाही को कंपनी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
छह साल बाद हुई शिकायत का संज्ञान लेने का औचित्य नहीं
जनवरी 2019 में कंपनी ने आयोग को बताया कि काम के आधार पर इंजीनियर की सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था। हालांकि, इंजीनियर ने कहा कि उसे परेशान किया जा रहा है क्योंकि उसके पिता के खिलाफ टोरेंट पावर द्वारा प्राथमिकी की गई थी।कंपनी ने अदालत में तर्क दिया कि इंजीनियर को अनुबंध पर रखा गया था और उसे नोटिस के साथ समाप्त किया जा सकता है।कंपनी यह भी कहा कि नौकरी समाप्त करने का आदेश पारित करने के छह साल बाद की गई शिकायत पर आयोग द्वारा संज्ञान लेने का कोई औचित्य नहीं था।
आयोग ने किया याचिका का विरोध
वहीं, आयोग की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि आयोग ने केवल जांच की प्रक्रिया शुरू की है और ऐसा कोई निर्देश दिया गया, जोकि याचिकाकर्ता कंपनी के हित के प्रतिकूल हो।अपनी कार्यवाही को वैध बताते हुए आयोग ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता की सेवाओं को अपेक्षित नोटिस के बिना समाप्त कर दिया गया था।

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