दिल्ली हाई कोर्ट का यह पोर्टल working place पर यौन उत्पीड़न के मामलों में बनेगा हथियार, जानें न्यायमूर्ति ने क्या...
दिल्ली हाई कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए पोर्टल शुरू किया है। न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह ने महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करने पर जोर दिया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने बेटों को अधिक संवेदनशील बनाने की बात कही और आंतरिक शिकायत समिति के कर्तव्यों पर प्रकाश डाला।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के पोर्टल का शुभारंभ करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह ने कहा कि महिलाओं को दान की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उनकी गरिमा सुनिश्चित करना हमारा दायित्व है।
उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर पुरुषों के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि किसी महिला को किन शब्दों या कृत्यों से असहजता महसूस हो सकती है। इस अवसर पर दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एन. हरिहरन भी मौजूद रहे।
उचित व्यवहार सीखने पर जोर
न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह ने कहा कि हमें उचित व्यवहार का सहारा लेकर महिलाओं द्वारा व्यक्त की गई किसी भी असुविधा का सम्मान करना सीखना चाहिए। पोर्टल की शुरुआत के प्रयास की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि भले ही यह एक छोटा कदम लगे, लेकिन लंबी यात्रा की शुरुआत पहले कदम से ही होती है।
उन्होंने कहा कि कार्यस्थल अवसर, उपलब्धियों और रचनात्मकता का स्थान होना चाहिए, न कि भय और चिंता का कारण बनने वाला स्थान। इस मौके पर आंतरिक शिकायत समिति की अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रतिबा एम. सिंह समेत अन्य न्यायाधीश और अधिवक्ता भी मौजूद रहे।
बेटियों से ज्यादा बेटों को पढ़ाने की जरूरत
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने कहा कि भारत सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे का जिक्र करते हुए उन्होंने एक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि पुणे में इंडियन लॉ सोसाइटी द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बजाय नारा होना चाहिए बेटी बचाओ, बेटा पढ़ाओ। उन्होंने कहा कि बेटों को शायद ज्यादा संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है।
रोकथाम और निषेध पर भी जोर
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमारे समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से हम कई बार सच्चाई से आंखें मूंद लेते हैं। कई बार घर, पड़ोस, कार्यस्थल या किसी अन्य स्थान पर होने वाली ऐसी घटनाओं से हम अनजान बने रहते हैं।
उन्होंने कहा कि आंतरिक शिकायत समिति का यह कर्तव्य है कि वह पहले सुलह प्रक्रिया की कोशिश करे और फिर जांच कर मामले को आगे बढ़ाए। उन्होंने यह भी कहा कि रोकथाम और निषेध भी कानून के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
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