करवा चौथ का व्रत नहीं रखा, विधवा बनकर रही सामने.... झल्लाया पति पहुंचा कोर्ट; जज ने क्या कहा?
तलाक के मामले का निपटारा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं रखना और कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करना क्रूरता नहीं माना जाएगा या ये वैवाहिक बंधन को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। अदालत ने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका में क्रूरता के आधार पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तलाक के एक मामले का निपटारा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं रखना और कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करना क्रूरता नहीं माना जाएगा या ये वैवाहिक बंधन को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि करवाचौथ पर उपवास करना या न करना एक व्यक्तिगत पसंद हो सकता है और अगर निष्पक्षता से विचार किया जाए, तो इसे क्रूरता का कार्य नहीं माना जा सकता है।
अदालत ने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका में क्रूरता के आधार पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
एक साल तीन महीने रहे साथ
दोनों ने अप्रैल 2009 में शादी की और 2011 में अलग हो गए। दोनों एक साल और तीन महीने तक साथ रहे।
पत्नी की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि पति ने साबित कर दिया है कि पत्नी जनवरी 2010 में वैवाहिक घर छोड़कर चली गई थी और कुछ दिनों के बाद वापस लौट आई थी, जिसके लिए उसकी ओर से कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया था।
जिंदा पति के सामने विधवा बनकर रहने से दुखद कुछ नहीं
पीठ ने यह भी कहा कि अप्रैल 2011 में जब पति को स्लिप डिस्क हो गई तो उसकी देखभाल करने के बजाय, पत्नी द्वारा उसके माथे से सिन्दूर हटाकर खुद को विधवा होने का दावा करना वैवाहिक रिश्ते को अस्वीकार करने का अंतिम कृत्य था।
पीठ ने कहा कि एक पति के लिए इससे अधिक दुखद अनुभव कुछ नहीं हो सकता कि वह अपने जीवनकाल में अपनी पत्नी को विधवा के रूप में काम करते हुए देखे, वह भी ऐसी स्थिति में जब वह गंभीर रूप से घायल हो गया था ।
अदालत ने कहा निस्संदेह, पत्नी के ऐसे आचरण को पति के प्रति अत्यधिक क्रूरता का कार्य ही कहा जा सकता है।
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