सहमति से बने रिश्ते को बाद में दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता, दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले को किया रद
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि दो वयस्क चाहे उनमें से एक विवाहित हो अगर आपसी सहमति से रहते हैं तो उन्हें परिणामों के लिए तैयार रहना चाहिए। कोर्ट ने यह फैसला एक पायलट के खिलाफ दुष्कर्म का मामला रद्द करते हुए सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर एक पढ़ी-लिखी महिला जानती है कि पुरुष विवाहित है तो उसे यह भी समझना चाहिए कि रिश्ता टूट सकता है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर दो वयस्क, चाहे उनमें से एक शादीशुदा ही क्यों न हो, आपसी सहमति से साथ रहते हैं या शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो उन्हें उसके परिणाम की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी होगी।
न्यायमूर्ति स्वर्णा कांता शर्मा ने 10 सितंबर को दिए गए फैसले में कहा कि रिश्ता खराब होने के बाद उसे दुष्कर्म जैसे अपराध में बदलना ठीक नहीं है। यह आदेश एक पायलट के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म मामले को रद करते हुए आया, जिसकी शिकायत एक केबिन क्रू सदस्य ने की थी।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि पायलट ने शादी का झांसा देकर उसे तीन बार (अगस्त 2018, अप्रैल 2019 और जून 2020) में गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया। साथ ही मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करने, धमकाने और ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया गया।
वहीं, आरोपित पायलट का कहना था कि दोनों का रिश्ता शुरू से ही पूरी तरह से सहमति पर आधारित था, जिसमें शादी का कोई वादा नहीं था और उसने अपनी शादीशुदा स्थिति भी छुपाई नहीं थी।
कोर्ट ने नोट दिया कि महिला शुरू से ही आरोपी की शादीशुदा स्थिति से वाकिफ थी, फिर भी दो वर्ष तक संबंध जारी रखा।
कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा होने के बावजूद जब एक शिक्षित महिला अपने इरादे से किसी के साथ संबंध बनाती है, तो उसे यह भी समझना चाहिए कि रिश्ता हमेशा विवाह में नहीं बदलता और कभी-कभी टूट भी सकता है।
ऐसे मामलों में कानून का सहारा लेना उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में कानून को निजी मनमुटाव का हल नहीं बनाना चाहिए।
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