जेल में बेटे की मौत पर मुआवजा मांगने वाली मां के मरने के बाद आया दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, दिए ये आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने जेल में बेटे की मौत पर मुआवजा मांगने वाली मां के हक में फैसला सुनाया हालांकि फैसला आने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी। अदालत ने सरकारी तंत्र की नाकामी पर सवाल उठाए और मुआवजा योजना के तहत न्यूनतम राशि जारी करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि कस्टडी में व्यक्ति की सुरक्षा सरकार का कर्तव्य है।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। जेल से रिहाई से दो दिन पहले जेल के अंदर दो गैंग के बीच हुई झड़प में हुई बेटे की मौत पर मुआवजा मांगने वाली एक मां के हक में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला तब आया, जब उसकी मौत हो चुकी थी। सरकारी तंत्र की नाकामी पर गंभीर पर सवाल उठाते हुए न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने मां को उनके जीवनकाल में कम से कम न्यूनतम मुआवजा मिलना चाहिए था, जबकि उचित मुआवजे के लिए उन्हें अदालत में आने के लिए मजबूर होना पड़ा।
पीठ ने कहा कि इससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि याचिका के निर्धारण से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। पीठ ने कहा कि उक्त तथ्यों को देखते हुए याचिकाकर्ता शकीला के कानूनी उत्तराधिकारी कम से कम दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना-2018 योजना के तहत निर्धारित न्यूनतम राशि के हकदार होंगे।
दो लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा तत्काल जारी
पीठ ने कहा कि मुआवजा योजना के तहत अधिकतम सात लाख और न्यूनतम तीन लाख रुपये के मुआवजा का प्रावधान है। महिला को पूर्व में एक लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया जा चुका है, ऐेसे में उसके कानून उत्तराधिकारियों को दो लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा तत्काल जारी किया जाए।
पीठ ने साथ ही दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) को निर्देश दिया है कि वह पता करे कि याचिकाकर्ताओं की पीड़ित पर वास्तविक शारीरिक या मौद्रिक निर्भरता क्या रही होगी, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि उन्हें कितना नुकसान हुआ होगा।
दोषी करार देकर वर्ष 2007 में सात साल की सजा सुनाई गई
याचिका के अनुसार उस्मानपुर थाना में लूट समेत अन्य मामले में आरोपित जावेद को दोषी करार देकर वर्ष 2007 में सात साल की सजा सुनाई गई थी। पांच मार्च 2013 को जावेद को रिहा होना थ, लेकिन तीन मार्च को दाे गैंग के बीच हुई हिंसक झड़प में जावेद की मौत हो गई थी।
बेटी की मौत की न्यायिक जांच कराने और उचित मुआवजा देने की मांग को लेकर जावेद की मां ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, याचिका पर निर्णय आने के बीच 17 मार्च 2016 को मौत हो गई थी। वर्ष 2017 में अदालत ने याचिका का निपटारा कर दिया। हालांकि, बाद में महिला के कानूनी उत्तराधिकारी और जावेद के भाईयों ने कानूनी लड़ाई जारी रखी थी।
कस्टडी में व्यक्ति की सुरक्षा सरकार का कर्तव्य
पीठ ने कहा कि अदालत का स्पष्ट मत है कि आपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति होने के बावजूद भी राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह हिरासत में मौजूद व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। पीठ ने कहा कि कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं है। पीठ ने कहा कि अदालत का मानना है कि जेल के अंदर गिरोहों को पनपने की अनुमति न दी जाए।
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