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    'महिला आर्थिक शोषण के कारण मुआवजा पाने की हकदार', दिल्ली HC ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा

    Updated: Sun, 03 Aug 2025 03:12 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि आर्थिक शोषण की शिकार महिला मुआवजा पाने की हकदार है। अदालत ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले को रद कर दिया जिस ...और पढ़ें

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    आर्थिक शोषण को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का महिलाओं के हक में बड़ा फैसला।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। भरण पोषण से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा यातनाओं की सही तारीख और समय न बता पाने का मतलब यह नहीं कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर उसका मामला बेबुनियाद है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

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    महिला ने उसे और उसके नाबालिग बच्चे को चार हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। आरोप लगाया था कि पर्याप्त दहेज मिलने के बावजूद, पति ने उसके परिवार से मोटरसाइकिल की मांग की और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके साथ दुर्व्यवहार भी किया।

    'ननद की शादी के लिए 50 हजार लाने को कहा'

    पत्नी ने आगे आरोप लगाया कि उसके साथ मारपीट की गई और उसे अपनी ननद की शादी के लिए 50 हजार रुपये लाने के लिए भी कहा गया और जब वह यह मांग पूरी नहीं कर पाई, तो उसे उसके ससुराल से निकाल दिया गया। याचिका स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि पति ने यह स्पष्ट नहीं किया कि पत्नी ने उसका साथ क्यों छोड़ा और उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई याचिका भी दायर नहीं की।

    अदालत ने कहा यह अहम तथ्य है कि याचिकाकर्ता महिला के मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता शारीरिक क्रूरता/उत्पीड़न की सही तारीख और तरीका बताने में विफल रही। हालांकि, केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता यातनाओं की सही तारीख और समय बताने में विफल रही। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता का मामला निराधार है।

    अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी ने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ सीएडब्ल्यू शिकायत दर्ज कराई थी और इसलिए, उसके मामले को निराधार नहीं कहा जा सकता। उक्त तथ्यों को देखते हुए पीठ ने कहा कि महिला आर्थिक शोषण के कारण मुआवजा पाने की हकदार है। अदालत ने पत्नी और नाबालिग बच्चे को चार हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया।