Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    छात्रों को रोकने के लिए बाउंसर तैनात करने का द्वारका डीपीएस का आचरण निंदनीय: दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

    Updated: Thu, 05 Jun 2025 05:44 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने फीस जमा न करने पर छात्रों को प्रताड़ित करने और बाउंसर तैनात करने के लिए डीपीएस द्वारका की निंदा की। अदालत ने स्कूल के इस आचरण को निंदनीय बताया। स्कूल ने 31 निष्कासित छात्रों को बहाल कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि स्कूल को भविष्य में कोई भी कार्रवाई करने से पहले छात्रों को सूचित करना होगा।

    Hero Image
    छात्रों को रोकने के लिए बाउंसर तैनात करने का द्वारका डीपीएस का आचरण निंदनीय: हाई कोर्ट

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। बढ़ी हुई फीस जमा नहीं करने के कारण छात्रों प्रताड़ित करने से लेकर उन्हें स्कूल में प्रवेश करने से रोकने के लिए बाउंसर तैनात करने की द्वारका दिल्ली पब्लिक स्कूल के आचरण की दिल्ली हाई कोर्ट ने तल्ख लहजे में निंदा की है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि स्कूल प्रशासन द्वारा छात्रों के स्कूल परिसर में प्रवेश को रोकने के लिए बाउंसरों को नियुक्त करने का आचरण निंदनीय है। ऐसे आचरण के प्रति निराशा व्यक्त करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसी प्रथा का शिक्षण संस्थान में कोई स्थान नहीं है।

    सुनवाई के दौरान डीपीएस ने पीठ को सूचित किया कि 31 छात्रों के निष्कासन से संबंधित आदेश को वापस लेकर छात्रों को बहाल कर दिया गया है। स्कूल प्रशासन के उक्त बयान को रिकार्ड पर लेते हुए अदालत ने याचिका का निपटारा कर दिया।

    माता-पिता या अभिभावकों को विशेष रूप से एक सूचना जारी करेगा

    हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि स्कूल भविष्य में दिल्ली स्कूल शिक्षा नियम- 1973 के नियम 35 का सहारा लेकर कोई कार्रवाई करना चाहता है, तो वह संबंधित छात्रों या उनके माता-पिता या अभिभावकों को विशेष रूप से एक सूचना जारी करेगा और उन्हें ऐसी कार्रवाई के खिलाफ कारण बताने का उचित अवसर देगा।

    बच्चे की गरिमा के प्रति अनादर को दर्शाता

    अदालत ने कहा कि यह एक बच्चे की गरिमा के प्रति अनादर को दर्शाता है। याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि फीस जमा न कर पाने के कारण किसी छात्र को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना/धमकाना, विशेष रूप से जोर- जबरदस्ती की कार्रवाई करना उन पर मानसिक उत्पीड़न करने के समान है। यह बच्चे के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और आत्म-सम्मान को भी कमजोर करता है। अदालत ने कहा कि बाउंसरों का उपयोग भय, अपमान और बहिष्कार का माहौल पैदा करता है जो स्कूल के मूल लोकाचार के खिलाफ है।

    अदालत ने कहा कि बुनियादी ढांचा को बनाए रखने, कर्मचारियों को वेतन देने और अनुकूल शिक्षण वातावरण प्रदान करने के लिए स्कूल उचित फीस वसूलने का हकदार है, लेकिन छात्रों के प्रति नैतिक जिम्मेदारियां निभाने वाले ऐसे स्कूल एक सामान्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान से अलग है।

    अदालत द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य

    पीठ ने कहा कि माता-पिता स्कूल को अपेक्षित फीस के भुगतान के संबंध में इस अदालत द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। हाई कोर्ट ने हाल ही में मूल याचिका पर अंतिम निर्णय आने तक 50 प्रतिशत फीस का भुगतान करने का आदेश दिया था। साथ ही स्कूल प्रशासन को छात्रों को उक्त शर्त के साथ पढ़ाई जारी रखने की अनुमति देने का अंतरिम आदेश दिया था।