Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यमुना बाढ़ क्षेत्र से पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को हटना होगा, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया आदेश

    Updated: Sat, 31 May 2025 04:41 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को यमुना बाढ़ क्षेत्र में बसने का अधिकार नहीं है भले ही उनके पास भारतीय नागरिकता हो। कोर्ट ने मजनू का टीला स्थित शरणार्थी शिविर को ध्वस्त करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शरणार्थियों को पहले नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा।

    Hero Image
    यमुना बाढ़ क्षेत्र से हिंदू शरणार्थियों से हटना होगा, हाई कोर्ट कोर्ट से नहीं मिली राहत।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलने से यमुना बाढ़ क्षेत्र जैसे इलाके में बसने का अधिकार नहीं मिलता है। वैकल्पिक भूमि का आवंटन होने तक मजनू का टीला स्थित पाक हिंदू शरणार्थी शिविर को ध्वस्त न करने की मांग को ठुकराते हुए दिल्ली हाई कोर्ट यह स्पष्ट कर दिया कि हिंदू शरणर्थियों को यमुना बाढ़ क्षेत्र से हटना होगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    याचिकाकर्ता रवि रंजन सिंह की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ दो टूक कहा कि उन्हें और इसी तरह के अन्य शरणार्थियों को संबंधित क्षेत्र में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही अदालत ने मामले में याची के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने संबंधी 13 मार्च 2024 को पारित अंतरिम आदेश को खारिज कर दिया।

    नदी के किनारे तटबंध बनाने का निर्देश

    याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि डीडीए को यमुना नदी के किनारे तटबंध बनाने का निर्देश दिया जाए, ताकि ऐसी कालोनियों और धार्मिक संरचनाओं को अक्षरधाम मंदिर और कामनवेल्थ गेम्स विलेज की तरह संरक्षित किया जा सके और यमुना नदी की पवित्रता भी बनी रहे। हालांकि, याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि पाकिस्तानी शरणार्थियों को उनकी विदेशी राष्ट्रीयता की स्थिति के कारण दिल्ली शहरी आश्रय बोर्ड (डूसिब) नीति के तहत पुनर्वासित नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने याचिकाकर्ता समेत अन्य शरणार्थियों को सुझाव दिया कि वे सबसे पहले सीएए- 2019 की धारा 10ए के तहत आवेदन प्रस्तुत करके भारतीय नागरिकता प्राप्त करने को कहा। अदालत ने कहा कि इसे स्वीकार करने के बाद पीड़ित शरणार्थी भारत के नागरिक माने जाएंगे और वे अन्य सामान्य नागरिक की तरह सभी अधिकारों और लाभों का आनंद ले सकेंगे।

    वैकल्पिक आवंटन को पूर्ण अधिकार के रूप में दावा नहीं

    हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक भी यमुना बाढ़ क्षेत्र या ओजोन में आने वाली सार्वजनिक भूमि पर वैकल्पिक आवंटन को पूर्ण अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि डूसिब की नीति के तहत किसी व्यक्ति को आवास इकाई आवंटन के लिए सबसे पहले भारतीय नागरिक होना चाहिए। ऐसे में पाकिस्तानी शरणार्थियों को उनकी विदेशी राष्ट्रीयता की स्थिति के कारण डूसिब नीति के तहत दूसरी जगह नहीं बसाया जा सकता है।

    पीठ ने कहा कि अदालत ने शरणार्थियों के पुनर्वास और पुनर्वास की सुविधा के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए। हालांकि, ये प्रयास इसलिए सफल नहीं हो सके क्योंकि विशेष रूप से केंद्र सरकार की ओर से अधिकारियों की जिम्मेदारी दूसरे पर डालने का एक क्लासिक मामला सामने आया। पीठ ने कहा कि अदालत शरणार्थियों की दुर्दशा को सुधारने के लिए नीति तैयार करने का कार्य नहीं कर सकता।

    यमुना के जीर्णाेद्धार के प्रयासों में नहीं कर सकते हस्तक्षेप

    पीठ ने कहा कि शरणार्थियों द्वारा स्थापित शिविर यमुना बाढ़ के मैदानों में स्थित है और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उक्त भूमि को वापस लेने के संबंध में डीडीए जैसी कई सरकारी एजेंसियों को कड़े निर्देश जारी किए हैं। ताकि, यमुना नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए कदम उठाया जा सके।

    नदी के किनारे तटबंध बनाने का निर्देश देने की मांग पर पीठ ने कहा कि यमुना नदी की गंभीर स्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता के कहने पर नदी के चल रहे जीर्णोद्धार और कायाकल्प प्रयासों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि इस तरह की रियायतें अनिवार्य रूप से सार्वजनिक परियोजनाओं के समय और प्रभावी कार्यान्वयन में न सिर्फ बाधा उत्पन्न करेंगी, बल्कि देरी का कारण बनेंगी।