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    'सोशल मीडिया पर जमानत का जश्न मनाना अवमानना नहीं', कहते हुए दिल्ली HC ने बेल रद करने की याचिका खारिज की

    By vinit Edited By: Neeraj Tiwari
    Updated: Mon, 06 Oct 2025 04:36 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल सोशल मीडिया पर जमानत का उत्सव मनाना जमानत रद्द करने का आधार नहीं हो सकता जब तक कि शिकायतकर्ता को कोई विशेष धमकी न दी जाए। न्यायमूर्ति रविंदर दुदेजा ने एक मामले में आरोपी की जमानत रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि जमानत पर रिहाई का जश्न मनाना बिना किसी धमकी के जमानत रद्द करने का कारण नहीं है।

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    'जमानत का जश्न मनाना अवमानना नहीं', कहते हुए दिल्ली HC ने बेल रद करने की याचिका खारिज की

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल आरोपी या उसके सहयोगियों द्वारा सोशल मीडिया पर जमानत का उत्सव मनाना एवं शिकायतकर्ता को विशेष रूप से धमकी दिए बिना कोई आरोप लगाना जमानत रद करने का आधार नहीं हो सकता।

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    दरअसल, एक घर में अनधिकृत तरीके से प्रवेश करने के मामले में आरोपी की जमानत रद करने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति रविंदर दुदेजा ने कहा, "यह तर्क कि आरोपी या उसके सहयोगियों ने जमानत पर रिहाई का उत्सव मनाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो और स्टेटस मैसेज अपलोड किए, बिना शिकायतकर्ता को कोई विशेष धमकी या डराने की कार्रवाई के जमानत रद करने का आधार नहीं हो सकता।"

    कुछ शर्तों पर कोर्ट ने दी थी बेल

    शिकायतकर्ता जफीर आलम ने आरोपी मनीष की जमानत रद करने की मांग की थी, जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 436 (आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा नुकसान), 457 (रात में घर में अनधिकृत प्रवेश या सेंधमारी), 380 (घर में चोरी) और 34 (साझा इरादा) के तहत अपराधों के लिए दर्ज मामले में जमानत दी गई थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते समय कुछ शर्तें लगाई थीं।

    शर्तों के अनुसार, वह अभियोजन गवाहों को किसी भी तरह से धमकी नहीं देगा। साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा या भविष्य में किसी अन्य आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा।

    जमानत रद करने के लिए ठोस आधार जरूरी

    अदालत ने आगे जोर देकर कहा कि जमानत रद करने के लिए बहुत ठोस और जबरदस्त परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जैसे कि न्याय में हस्तक्षेप या स्वतंत्रता का दुरुपयोग। चूंकि जमानत मिलने के बाद धमकियों के बारे में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की गई थी, इसलिए आरोप असमर्थित रहे। जमानत रद करने के लिए कोई ठोस सामग्री न पाते हुए उच्च न्यायालय ने हाल ही में याचिका खारिज कर दी।

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