दिल्ली में लागू होगा AI आधारित शिक्षा मॉडल, बांटे जाएंगे 21 हजार टैबलेट; शिक्षा मंत्री ने बताया पूरा प्लान
Delhi Education System दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कहा कि पिछली सरकार ने शिक्षा को वोट बटोरने का औजार बनाया। रेखा सरकार में एआई आधारित शिक्षा मॉडल लागू होगा और 21 हजार टैबलेट बांटे जाएंगे। सीबीएसई से पढ़ाई होगी और डीबीएसई को बंद करने का फैसला लिया गया है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने सोमवार को जागरण विमर्श में कहा कि पिछली सरकार ने दस वर्षों में शिक्षा को वोट बटोरने का औजार बनाने का काम किया गया था। दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को पिछड़ने का काम किया गया। दिल्ली के शिक्षा के मॉडल में कुछ कमरे और स्वीमिंग पूल बना देना मॉडल नहीं हो सकता। दिल्ली में सरकारी स्कूल एक हजार रह गए और निजी स्कूल बढ़कर 1700 हो गए। क्योंकि सरकारी स्कूल पढ़ाई के तौर-तरीकों में पिछड़ गए।
उन्होंने कहा, "रेखा सरकार में एआई व तकनीक आधारित शिक्षा मॉडल लागू होगा। 37 हजार क्लास में 700 स्मार्ट बोर्ड थे। सभी सीएमश्री स्कूलों में 21000 स्मार्ट क्लास बनाएंगे। देश में एक बोर्ड पर्याप्त है इसलिए दिल्ली सरकार के स्कूलों में सीबीएसई से पढ़ाई होगी। इसलिए डीबीएसई को बंद करने का फैसला लिया गया है। 27 वर्षों से स्कूलों में अभिभावकों पर तरह तरह के आर्थिक बोझ लादे जाते हैं।"
सूद ने कहा कि नए एक्ट को दिल्ली कैबिनेट से स्वीकृति देकर राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजा है। इसे नए वर्ष से लागू किया जाएगा। मातृ भाषा में कोई भी व्यक्ति बेहतर सोच सकता है इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा में मातृ भाषा में शिक्षा का प्राविधान किया गया है। साइंस ऑफ लिविंग में सिविक सेंस की पढ़ाई नर्सरी से ही होनी चाहिए। अध्यात्म को भी शामिल किया जाएगा। 21 हजार टैबलेट बांटे जाएंगे।
दिल्ली सरकार के पास पिछले सरकार के गलत प्रबंधन के कारण बजट का अभाव है। गरीब बच्चों की मदद के लिए सीएसआर के तहत मदद कीजिए। जल्द ही सरकार एक सीएसआर ट्रेल शुरू करेगी। एक वर्ष में पढ़ाई का तौर तरीका बदल कर दिखाएंगे। 12 दिल्ली विश्वविद्यालय को ग्रांट दिए। 16 कॉलेजों को पांच प्रतिशत ग्रांट दिल्ली सरकार देती है। स्कूल व कॉलेज में बगैर विवाद के पढ़ाई हो इस पर काम कर रहे हैं।
दिल्ली के सभी अस्पतालों के बीच एक रेफरल सिस्टम होना जरूरी: डॉ. एम श्रीनिवासन
एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवासन ने कहा कि पिछली दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में पीएमजेएसवाई को लागू नहीं किया। यह एक योजना है जो देश भर के लोगों के दिल को टच किया है और बेहद सफल योजना है। एम्स में हमने मंगलसूत्र बेचकर इलाज कराते देखा है। दिल्ली में पीएमजेएवाई से एम्स में 13 हजार मरीजों का इलाज हो चुका है।
एम्स के मस्जिद मोड में जाकर देखें कि एम्स में ढांचागत सुविधाएं कितनी बढ़ी है। दिल्ली में साइलोस नहीं होना चाहिए। अभी दिल्ली में केंद्र, दिल्ली सरकार, एमसीडी व अन्य कई एजेंसियों के अस्पताल अलग-अलग चलते हैं।सभी एजेंसियों के अस्पतालों के बीच एक रेफरल सिस्टम होना चाहिए।
दिल्ली में सरकार बदलने के बाद दिल्ली सरकार के अस्पतालों का गेप एनालिसिस करके दिया है। यदि उस गैप एनालिसिस की भरपाई कर दी जाए तो सुविधाएं बेहतर हो जाएगी। अभी दिल्ली के कई अस्पतालों में बेड आक्यूपेंसी कम है। किसी अस्पताल में वेंटिलेटर है तो एनेस्थीसिया के डॉक्टर नहीं है। केंद्र के अस्पतालों में 100 प्रतिशत या इससे ज्यादा बेड आक्यूपेंसी है।
आईपी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. महेश वर्मा ने बताया कि आईपी विश्वविद्यालय में 42 हजार सीट पर दाखिले के लिए लाखों बच्चे आवेदन करते हैं। इस वर्ष एक चैटबाट बनाया है। ताकि छात्रों को आसानी से सूचनाएं मिल सके। शोध के बगैर सर्वाइव नहीं कर सकते। शोध के लिए इकोसिस्टम बनाना होता है। नीति आयोग के साथ अटल इन्क्यूबेशन शुरू किया है। ताकि छात्र अपना स्टार्टअप शुरू कर सकें।
महाराजा अग्रसेन तकनीकी शिक्षा समिति के संस्थापक अध्यक्ष एवं मुख्य सलाहकार नंदकिशोर गर्ग ने कहा कि दिल्ली में एक काउंसलिंग सिस्टम हो इसके लिए वर्ष 2014 में एक नियम पास हुआ था। आईपी विश्वविद्यालय के शुल्क महंगे कर दिए गए। आईपी विश्वविद्यालय में पढ़ाई महंगी है। सीटें खाली रह जाती है।
इसका जवाब देते हुए डॉ. वर्मा कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार हम योग्यता से समझौता नहीं करते। नंदकिशोर गर्ग ने दिल्ली सरकार से आईपी विश्वविद्यालय के सभी कॉलेज और विश्वविद्यालय के फंड की जांच कराने की मांग की।
इस परिचर्चा में विशेषज्ञों ने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य में देश पहले ही मानक तय कर चुके हैं। बच्चों 99 प्रतिशत अंक लेकर भी आत्महत्या करते हैं। इसलिए बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक शिक्षा पर काम करने की जरूरत है। साथ ही बेसिक पर काम करने की जरूरत है।
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