दिल्ली सरकार का नया ड्रेनेज मास्टर प्लान, विशेषज्ञों की नजर में चुनौतीपूर्ण है लागू करना; कहां हैं अड़चनें
दिल्ली सरकार के नए ड्रेनेज मास्टर प्लान को विशेषज्ञों ने चुनौतीपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि इसे जल्द लागू करना चाहिए अन्यथा लागत और चुनौतियां बढ़ेंगी। योजना में केवल तीन बेसिनों का जिक्र है जबकि दिल्ली में छह बेसिन हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पुराने ड्रेनेज सिस्टम में सुधार जलभराव में कमी और जल निकासी क्षमता बढ़ाना आवश्यक है। योजना को पांच चरणों में पूरा किया जाएगा।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार के नए ड्रेनेज मास्टर प्लान काे लागू करना विशेषज्ञों की नजर में चुनौतीपूर्ण है। उनकी मानें तो इसे जल्दी से जल्दी लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए अन्यथा इस पर खर्च और चुनौतियां और बढ़ेंगी। उनके अनुसार इसे लागू करने में तमाम तरीके की अडचनें आने की पूरी संभावना है। क्योंकि नालों पर बहुत स्थानों पर अतिक्रमण है।
डीडीए के पूर्व योजना आयुक्त एक के जैन इस प्लान को बहुत अधिक गंभीरता से काम कर बनाया गया प्लान नहीं मानते हैं। उनकी मानें तो इस प्लान में केवल तीन बेसिन (बड़े नालों) का जिक्र है और इन्हें आधर बनाकर प्लान तैयार किया गया है जबकि दिल्ल में छह बेसिन हैं। जिनमें महरौली, नजफगढ़, अलीपुर, कंझावला, शाहदरा, कुशक और बारापुला शामिल हैं।
जैन कहते कि इन नालों का भी इसमें प्रमुखता से जिक्र हाेना चाहहिए था। उन्होंने कहा कि 1976 में बने मास्टर को ही आगे बढ़ाया गया है जबकि बहुत सी चीजों पर इसमें बात नहीं हुई है जैसे कि अब क्लाइमेट चेंज बहुत बड़ी समस्या बन रहा है, उस पर भी प्रमुखता से फोकस हाेना चाहिए था।
वहीं लोक निर्माण विभाग के पूर्व प्रमुख अभियंता दिनेश कुमार ने कहा कि कोई भी योजना समय से लागू हो जाए तो अच्छा रहता है अन्यथा देरी होने पर समस्याएं और बढ़ती हैं। उन्होंने कहा कि यह शहर के लिए अच्छा रहेगा कि इस पर लगातार काम आगे बढ़ता रहे, जबकि पिछले सालों में होता यही आता है कि योजना बन जाती है उसे लागू नहीं किया जाता है आैर बात मानसून के बाद समाप्त हो जाती है।
दिल्ली को तीन बेसिन में बांटा, प्रत्येक का ड्रेनेज नेटवर्क फिर से डिजाइन किया जाएगा
- नजफगढ़ बेसिन
- बारापुला बेसिन
- ट्रांस-यमुना बेसिन
पांच चरणों में किया जाएगा काम
यह कार्य पांच चरणों में किया जाएगा, जिसमें उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी।
चरण | नजफगढ़ बेसिन | बारापुला बेसिन | ट्रांस-यमुना बेसिन | कुल लागत |
---|---|---|---|---|
चरण 1 | 8,117.86 | 1,728.49 | 2,115.05 | 11,961.40 |
चरण 2 | 8,293.24 | 1,152.33 | 1,410.04 | 10,855.61 |
चरण 3 | 7,057.44 | 3,242.15 | 1,450.08 | 11,749.67 |
चरण 4 | 5,746.91 | 2,836.88 | 1,268.82 | 9,852.61 |
चरण 5 | 4,283.70 | 2,026.35 | 906.30 | 7,216.35 |
कुल | 33,499.15 | 14,546.76 | 9,316.94 | 57,362.85 |
इस प्लान में जल निकासी प्रणाली में सुधार पर जोर दिया गया है। जलभराव की घटनाओं में कमी करना, जल निकासी क्षमता में वृद्धि, जन सुरक्षा में सुधार, आर्थिक क्षति में कमी, सामुदायिक जागरूकता में वृद्धि,
कार्य का क्षेत्र
-डेटा संग्रहण: मौजूदा बुनियादी ढांचे (सीवेज, जल आपूर्ति, जल निकाय और स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज) के बारे में जानकारी एकत्रित करना।
-डिजाइन और मानचित्रण: ड्रेनेज नेटवर्क का डिजाइन बनाना, जिसमें मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ एकीकरण और जलभराव वाले हॉटस्पॉट्स पर ध्यान दिया जाएगा।
-वर्षा जल संचयन: हरित स्थानों (पार्क आदि) के माध्यम से जलग्रहण प्रणाली में सुधार के लिए वर्षा जल संचयन की योजनाएं।
आवश्यकताएं
-पुरानी संरचना: वर्तमान ड्रेनेज सिस्टम 50 साल पहले डिजाइन किया गया था और अब यह तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बदलती वर्षा के पैटर्न के कारण अपर्याप्त है।
-गलत ड्रेनेज: सड़क नेटवर्क के अधिकांश हिस्सों में उचित ड्रेनेज की कमी है और वर्षा के पानी को सही तरीके से निस्तारित नहीं किया जा रहा है।
-अवरोधक और अतिक्रमण: कई ड्रेनेज रास्ते भवनों या अतिक्रमण के कारण अवरुद्ध हो गए हैं।
-अंतर-संपर्क की कमी: बहुत से ड्रेनेज सिस्टम एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं, जिससे कार्यक्षमता में कमी आ रही है।
-सीवेज और वर्षा का मिश्रण: सीवेज का वर्षा के पानी में मिलना स्वास्थ्य समस्याओं और प्रदूषण का कारण बनता है।
मौजूदा कमियां
-शहरीकरण का प्रभाव: तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल निकासी चैनल छोटे साबित हो रहे हैं, जिससे भारी वर्षा के दौरान बाढ़ की समस्या हो रही है।
-कीचड़ और कचरा: ड्रेनेज चैनलों में कीचड़ और कचरे का जमा होना, इसके पानी की क्षमता को घटाता है।
-सीवेज और वर्षा का मिश्रण: कुछ क्षेत्रों में सीवेज सिस्टम का अभाव है, जिससे सीवेज और वर्षा के पानी का मिश्रण हो रहा है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है।
-अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर: कई क्षेत्रों में साइड ड्रेनेज की कमी के कारण सड़कें क्षतिग्रस्त होती हैं और वर्षा के दौरान पानी बह जाता है।
जलभराव प्रबंधन के लिए पिछले अध्ययन
1959 रेड्डी समिति, 1966 में मोती राम समिति, 1968 जे.पी. जैन समिति, 1976 जल निकासी मास्टर प्लान लागू हुआ। 1993 में जलभराव और यमुना में बाढ़ पर जलभराव पर उच्च-स्तरीय समिति बनी। 2018 में जलभराव की समस्या पर आइआइटी दिल्ली से रिपोर्ट मांग गई, रिपोर्ट 2021 में आई।
रिपोर्ट को सामान्य माना गया और इसे कार्रवाई योग्य नहीं माना गया। सरकार की समिति के सदस्यों ने दिल्ली में जल निकासी संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए तकनीकी सलाहकारों की नियुक्ति की सिफारिश की। जिस पर दिल्ली के ड्रेनेज मास्टर प्लान पर तीन भागों में काम किया गया।
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